वैश्विकी : इस्लाम का दुश्मन पाकिस्तान

Last Updated 09 Aug 2020 12:10:35 AM IST

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने जम्मू-कश्मीर मामले का अंतरराष्ट्रीयकरण करने की धुन में देश का नया राजनीतिक नक्शा जारी किया।


वैश्विकी : इस्लाम का दुश्मन पाकिस्तान

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के पहली वषर्गांठ की पूर्वसंध्या पर इमरान खान ने यह शिगूफा छोड़ा। नक्शे में सियाचीन सहित जम्मू-कश्मीर के भूभाग को शामिल किया गया है। आश्चर्य की बात यह है कि नक्शे में गुजरात के समुद्री क्षेत्र के सरक्रीक और जूनागढ़ को नक्शे में दर्शाया गया है। उल्लेखनीय है कि देश विभाजन के समय निजाम हैदराबाद के साथ ही जूनागढ़ के हुक्मरान ने भी पाकिस्तान का हिस्सा बनने की कोशिश की थी। नक्शे में गौर करने वाली बात यहैहै कि इसमें जम्मू-कश्मीर से चीन के कब्जे वाले भूभाग को नहीं दर्शाया गया है।
पाकिस्तान में भी इस बात को लेकर बहस हो रही है कि इमरान खान ने अपनी ओर से यह नक्शा क्यों जारी किया? प्रमाणित नक्शा जारी करने का अधिकार जियोलॉजिकल सव्रे को होता है। उसी के नक्शे देश के कार्यालयों और शिक्षण संस्थानों में टांगे जाते हैं। वास्तव में 5 अगस्त को काला दिवस घोषित करने के बाद पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर में भारत की कथित गैरकानूनी कार्रवाइयों और कथित मानवाधिकार उल्लंघन के मुद्दे प्रचारित करना चाहता था। इसी क्रम में पाकिस्तान कब्जे वाले कश्मीर के राजमार्ग का नामकरण श्रीनगर हाईवे कर दिया गया। 5 अगस्त को पाकिस्तान की नेशनल एसेंबली की बैठक पाक अधिकृत कश्मीर में हुई। इतना सब करने के बावजूद पाकिस्तान अपनी मंशा में सफल नहीं हुआ। भारतीय उपमहाद्वीप ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए 5 अगस्त से ज्यादा बड़ी खबर अयोध्या में राममंदिर के शिलान्यास की थी। पाकिस्तान की मीडिया में यह खुलकर लिखा जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी ने ‘प्रचार युद्ध’ में इमरान खान को बुरी तरह मात दी।

पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन के बीच सैन्य संघर्ष और तनाव को लेकर पाकिस्तानी सेना और राजनीतिक तंत्र से जुड़ा एक वर्ग पाकिस्तान के लिए एक अवसर मान रहा था। कुछ लोग यह भी दिवास्वप्न देख रहे थे कि पाकिस्तान के लिए बांग्लादेश का बदला लेने का समय आ गया है। भारत ने पूर्वी लद्दाख की स्थिति के बारे में जैसा कड़ा तेवर अपनाया उससे पाकिस्तान के हौसले पस्त हो गए। भारत और चीन के सैन्य और राजनीतिक नेतृत्व में भी सीमा विवाद को आगे बढ़ने से रोकने के लिए कारगर कदम उठाए। कुल मिलाकर पाकिस्तान के लिए यह मौका नहीं आ पाया कि वह फायदा उठा सके।
5 अगस्त आया और बीत गया। इसे लेकर दुनिया में कोई हलचल नहीं हुई। यह पाकिस्तान के लिए बड़ा झटका था। उसकी हताशा का एक कारण यह भी है कि इस्लामी देश और इस्लामी संगठन भारत विरोधी एजेंडे को समर्थन नहीं दे रहे हैं। पाकिस्तान इस्लामी सहयोग संगठन (ओआईसी) में कश्मीर को लेकर इस्लामी देशों द्वारा सामूहिक कार्रवाई करने पर जोर देता रहा है। शक्तिशाली इस्लामी देश सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात पाकिस्तान के एजेंडे को कोई तवज्जो नहीं देते। पाकिस्तान खुलकर यह आरोप लगाता रहा है कि व्यापार और आर्थिक हितों के कारण ये इस्लामी देश जम्मू-कश्मीर के आवाम की अनदेखी कर रहे हैं। पाकिस्तान की वजह से इस्लामी देश लगातार अलग-थलग होने के खतरे में पड़ रहा है।
इमरान खान की नई रणनीति यह है कि वह ओआईसी से अलग हटकर अन्य किसी इस्लामी मंच पर जम्मू-कश्मीर के मुद्दे को आगे बढ़ाए। पिछले दिनों पाकिस्तान, तुर्की और मलेशिया ने एक समानांतर मंच तैयार करने की कोशिश की थी। सऊदी अरब ने इस मुहिम को अपने नेतृत्व के लिए खतरा माना था। यही कारण है कि अगले कदम के रूप में जब तुर्की, मलेशिया, कतर और ईरान ने एक बैठक आयोजित की तो पाकिस्तान ने इसमें भाग नहीं लिया। जहां तक भारत का संबंध है, उसने तुर्की के  हाल के रवैये को लेकर कड़ा रुख अपनाया है। विदेश मंत्रालय में इस बात पर गौर किया जा रहा है कि पिछले एक वर्ष के दौरान तुर्की कश्मीर सहित भारत के आंतरिक मामलों में दखलंदाजी कर रहा है। पाकिस्तान के राजनीतिक नक्शे का जहां तक सवाल है, विदेश मंत्रालय ने इसे मुंगेरी लाल के हसीन सपने बताकर खारिज कर दिया। वास्तव में इस तरह की बचकाना हरकत जगहंसाई का कारण बनती है।

डॉ. दिलीप चौबे


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