मीडिया : गूगल की डिजिटल क्रांति

Last Updated 09 Aug 2020 12:13:47 AM IST

एक सूचना के अनुसार, गूगल भारत में ‘डिजिटल क्रांति’ करना चाहता है। उसने भारत में 10 बिलियन डॉलर खर्च करने का प्लान किया है।


मीडिया : गूगल की डिजिटल क्रांति

एक एक्सपर्ट की मानें तो यह भारत के बजट में डिजिटल इंडिया के लिए निर्धारित राशि से बीस गुना अधिक है।
इस डिजिटल क्रांति के जरिए  हर आदमी ‘डिजिटली एम्पावर’ हो जाएगा। इंटरनेट हाईस्पीड होगा। मोबाइल इंटरनेट सक्षम होंगे। मार्केट, बिजनेस व बैंकिंग, इनकम टैक्स, खरीद-फरोख्त, खबर मीडिया, मनोरंजन व शिक्षा आदि सब ‘हाईस्पीड ऑनलाइन’ होंगे। सब कुछ ‘एन्क्रिप्टेड’ (कूट भाषा में) होगा। अभी भारत में जितने इंटरनेट यूजर हैं, उनकी संख्या कुल आबादी का 34.7 प्रतिशत है। यह शहरों में अधिक है। आर्थिक रूप से जो अधिक  सक्षम हैं और पढ़े-लिखे हैं, वे ही उसका अधिक उपयोग करते हैं। इनकी अपेक्षा निम्न वगरे का प्रतिशत काफी कम है और गांव इसका प्रतिशत और भी कम है। गूगल सबको डिजिटल सक्षम कर देना चाहता है।

डिजिटल क्रांति के बाद हर आदमी एक बार फिर विश्व बाजार से जुड़ जाएगा। निवेश बढ़ेगा। ऑनलाइन कामकाज बढ़ेगा और नये किस्म के रोजगार बढ़ेंगे। यह होता है तो कहने की जरूरत नहीं कि भारत का मीडिया सीन एकदम बदल जाएगा। मीडिया ही क्यों हमारा सारा जीवनबोध बदल जाएगा। लेकिन यह डिजिटल क्रांति, जो भारतीय मिजाज के हिसाब से धीरे-धीरे होती, गूगल की कृपा से तेजी से होने जा रही है। कोरोना ने उन स्थितियों को तैयार कर दिया है, जो कहती हैं कि अब देश में ‘डिजिटल क्रांति’ हो जानी चाहिए। कोरोना ने डिजिटल के फायदे सबके लिए स्पष्ट कर दिए हैं। ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ ने उसे और भी जरूरी बना दिया है। आप न नकदी दे सकते हैं, न ले सकते हैं। कोरोना-संक्रमण का खतरा  रहता है। यों भी नोटों तथा सिक्कों में बहुत से बैक्टीरिया रहते बताए जाते हैं। कोरोनाकाल में नकदी कोरोना की कॅरियर भी हो सकती है। इसलिए भी लोग इन दिनों ‘नकद लेन देन’ से बचते हैं और ऑनलाइन खरीद-फरोख्त को बेहतर मानते हैं। लेकिन इस ‘ऑनलाइन’ बिजनेस का लाभ गांवों और कस्बों में, सबको नहीं मिल पाता क्योंकि वे डिजिटल सक्षम नहीं होते।
गूगल अब सबको डिजिटल-सक्षम करने वाला है। कर सका तो भारत छलांग लगाकर सीधे ‘फस्र्ट र्वल्ड’ के देशों की लाइन में शुमार हो जाएगा। क्या हुआ पक्की सड़कें नहीं हैं, सबको पीने का पानी नहीं है, सबके शिक्षा व स्वास्थ्य की सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं और इस सबके लिए जरूरी ‘उदार नागरिक बोध’ भी नहीं है, डिजिटल क्रांति तो है। यह विकास की क्रिया को बदल देगी। अब विकास ऊपर से नीचे न जाएगा, बल्कि नीचे से ऊपर की ओर दबाव डालेगा। शायद यही सोच है जो विकास की क्रमिकता को छोड़ सीधे डिजिटल में छलांग लगाने का इच्छुक है, लेकिन एक खतरा उधार की इस डिजिटल क्रांति में भी नजर आता है। और यह वैसा ही है जैसा चीन के ‘टिकटॉक’ आदि ‘ऐप्स’ ने पैदा किया था जिसके कारण उनको ‘बैन’ करना पड़ा।
गूगल एक बेहद बड़ी रकम को यहां खर्च करने जा रहा है तो क्या ‘धर्मादे खाते’ करने जा रहा है? क्या इतने बड़े निवेश का कुछ लाभ न चाहेगा? गूगल जो दुनिया की इस वक्त इंटरनेट मोनोपॉली है, अगर कहीं धेला भी खर्च करता है तो सैकड़ों कमाने के चक्कर में रहता है। तब क्या अपने ‘डाटा’ को लेकर जिस भितरघात का खतरा हमें चीन से नजर आया, क्या वैसा खतरा गूगल से नहीं हो सकता? क्या वो हमारी जनता के डाटा का दुरुपयोग नहीं करेगा? जिन दिनों डाटा सबसे बड़ी पूंजी सिद्ध हो रही है, उन दिनों डाटा के चोर और बिजनेसमैन व सट्टेबाज न होंगे, यह कैसे संभव है? भविष्य का बिजनेस ‘डाटा’ का ही तो बिजनेस है। उसकी कोई चोरी न करेगा, खरीद-फरोख्त न करेगा और उससे अपनी राजनीति न करेगा और अपना उल्लू सीधा नहीं करेगा, यह कैसे संभव है? जो भी डिजिटल सक्षम हैं, वे ही ‘सूचना निर्माण’ करते हैं।  यह सूचना ही ‘डाटा’ होता है जिसे बेचा-खरीदा जाता है। गूगल इसे न करेगा, यह कौन गारंटी दे सकता है और आजकल तो किसी की गारंटी भी ‘गारंटी’ नहीं होती।
हमें नहीं मालूम कि गूगल के इस ऑफर पर भारत सरकार की प्रतिक्रिया क्या है? लेकिन सरकार गूगल को ‘डिजिटल क्रांति’ करने लिए ‘ओके’ करती है, तो  उसके लिए पहले गूगल को देश हित की कड़ी शतरे में बांधना जरूरी है। और अगर हम ऐसा न करेंगे तो यकीनन हम एक नये किस्म की ‘डिजिटल गुलामी’ को ही निमंतण्रदे रहे होंगे। इसीलिए हमारा तो कहना यही है कि सरकार जो भी कदम उठाए, खूब सोच-समझ कर ही उठाए।

सुधीश पचौरी


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