आवारा कुत्ते : खौफ का खात्मा जरूरी

Last Updated 10 Aug 2020 02:21:49 AM IST

दो साल पहले उत्तर प्रदेश के सीतापुर में आदमखोर आवारा कुत्तों का ऐसा खौफ था कि आम लोगों ने शाम-रात के वक्त घर से बाहर निकलना बंद कर दिया था।


आवारा कुत्ते : खौफ का खात्मा जरूरी

दावा था कि चार महीने के अरसे में ही करीब डेढ़ दर्जन बच्चों को आवारा कुत्तों के हमले में जान गंवानी पड़ी थी। यह माना गया कि ये हमलावर अगर भेड़िये नहीं हैं, तो बूचड़खानों के बंद होने या किसी आनुवांशिक कारण से कुत्ते हिंसक उठे हैं और वे इंसानों पर हमला कर रहे हैं। इधर हाल में ऐसी खबरें भी आई कि मध्य प्रदेश के कुछ इलाकों में कुत्ते बाघ जैसे वन्यजीव पर हमला करने से भी नहीं चूके, जबकि आम तौर पर बाघों का खौफ कुत्तों पर बुरी तरह हावी रहता है। आवारा कुत्तों (स्ट्रे या स्ट्रीट डॉग्स) के हिंसक व्यवहार के ये वाकये दुर्लभ नहीं हैं। शहरों, कस्बों और गांवों तक में लोग इनसे आजिज आ चुके हैं।
देश की राजधानी दिल्ली में आरटीआई से मिली जानकारी (2018) में पता चला कि यहां प्रतिदिन औसतन 1100 लोग कुत्ते के काटने के कारण अस्पताल पहुंचते हैं और इस वजह से अक्सर वहां रेबीज के इंजेक्शनों की कमी बनी रहती है। इस साल लॉकडाउन लागू होने से पहले उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले से खबर आई थी कि जंगल से भटककर आए कांकड़ प्रजाति के हिरनों को आवारा कुत्ते किस तरह शिकारी बनकर नोचते-काटते हैं और मौका मिलने पर वे उनके पेट फाड़ डालते हैं। हालांकि आवारा कुत्तों की समस्या जंगल से ज्यादा शहरों-कस्बों में मुश्किलें पैदा कर रही है क्योंकि जानवरों के प्रति दयाभाव की मांग के कारण इनसे निपटने में बाधा आ रही है।

आम तौर पर समस्या का एक इलाज आवारा कुत्तों की नसबंदी माना जाता है। हालांकि इस तरीके की अपनी समस्याएं पहले से ही हैं, क्योंकि नगर निगमों के पास इन्हें रखने के इंतजाम नहीं हैं। नतीजतन यहां-वहां घूमते ये कुत्ते लोगों को अपना शिकार बनाते हैं। रात में दफ्तरों से लौटते लोग अक्सर शिकायत करते हैं कि गलियों के भीतर पसरे अंधेरे के बीच कब कोई आवारा कुत्ता उन्हें काट ले इसका कोई ठिकाना नहीं रहता है। शहरी सोसायटियों के घरों-फ्लैटों में पाले जा रहे कुत्ते एक अलग समस्या है। अक्सर उनके मल-मूत्र के सार्वजनिक विसर्जन पड़ोसियों और सोसायटी के रहवासियों के बीच विवाद का विषय बनते हैं। समस्या का इलाज क्या है? सीतापुर में 2018 में स्थानीय प्रशासन ने समस्या से निजात पाने का ‘कानून सम्मत तरीका’ अपनाया और खोज-खोज कर आवारा कुत्तों को मार डाला गया। हालांकि कुछ आरोप भी प्रशासन पर लगे। कहा गया यह पहचान किए बिना उनका सफाया हो रहा है कि बच्चों को उन्होंने ही नुकसान पहुंचाया था। हमारे देश में ही नहीं, पड़ोसी पाकिस्तान के कराची में भी अगस्त, 2016 में स्थानीय प्रशासन ने 800 से ज्यादा कुत्तों को जहर देकर मार दिया था। यूक्रेन जैसे देश में भी कई शहरों पिछले कुछ वर्षो में डिथिलिनम इंजेक्शन देकर हजारों कुत्तों को मारा गया है। हिंसक हो चुके आवारा कुत्तों से निपटने का यह तरीका कुछ अथरे में में कानून-सम्मत इसलिए माना जाता है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट कुछ शतरे के साथ इसकी इजाजत पहले ही दे चुका है। नवम्बर, 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के बाद फैसले में कहा था कि कुत्तों के प्रति दया भाव ठीक है, लेकिन इंसानी जान ज्यादा महत्त्वपूर्ण है। इसलिए इंसानों के लिए खतरा बन चुके बीमार और आवारा कुत्तों को खत्म कर देना चाहिए।
अदालत ने कुत्तों के कारण होने वाली दुर्घटनाओं के मद्देनजर देश भर के तमाम म्युनिसिपल कॉरपोरेशंस से कहा था कि वे इस मामले में मौजूद कानून के तहत कुत्तों पर कार्रवाई करें। अदालत ने साफ किया था कि प्रीवेंशन ऑफ क्रूएलिटी टू एनिमल के तहत एनिमल बर्थ कंट्रोल (डॉग्स) रूल्स 2001 के प्रावधान के अनुसार आवारा कुत्तों को हटाया या खत्म किया जा सकता है। देश में आवारा कुत्तों की संख्या करीब साढ़े चार करोड़ है, ऐसे में उनसे पैदा होने वाली समस्याओं का अंदाजा लगाया जा सकता है, लेकिन क्या आवारा-हिंसक कुत्तों को मार डालना ही इकलौता इलाज है। बंध्याकरण (स्टेरलाइजेशन) के अलावा टीकाकरण (वैक्सिनेशन) भी एक तरीका है। असल में आवारा कुत्तों की आबादी काबू में रखने के तौर-तरीकों का देश के ज्यादातर इलाकों में सही ढंग से पालन नहीं हुआ। ऐसे में आवारा-हिंसक कुत्तों से निपटने के लिए कुत्तों को ही रातोंरात ठिकाने लगाना सबसे प्रभावी उपाय करार दिया जाता है, जिससे समस्या शायद ही पूरी तरह खत्म हो।

डॉ. संजय वर्मा


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment