पूर्व सांसद एवं राज्यमंत्री कीर्ति वर्धन सिंह के पिता कुंवर आनंद सिंह का निधन
विदेश राज्यमंत्री कीर्ति वर्धन सिंह के पिता एवं गोंडा से चार बार के सांसद कुंवर आनंद सिंह का लखनऊ में निधन हो गया। वह 87 वर्ष के थे।
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पारिवारिक सूत्रों के अनुसार रविवार देर रात लखनऊ स्थित आवास पर उनका स्वास्थ्य अचानक खराब होने के बाद उन्हें तुरंत अस्पताल ले जाया गया, जहां सिंह ने अंतिम सांस ली।
समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव समेत कई नेताओं ने उनके निधन पर शोक व्यक्त किया है।
आनंद सिंह का जन्म चार जनवरी 1939 को मनकापुर रियासत के तत्कालीन राजा एवं स्वतंत्र पार्टी से विधायक रहे राघवेंद्र प्रताप के घर हुआ था। लखनऊ के कॉल्विन तालुकेदार स्कूल में अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में कृषि संस्थान से बीएससी की।
उनका विवाह बाराबंकी जिले की कोटवा विधानसभा क्षेत्र से विधायक एवं राज्यसभा सदस्य रहीं बिंदुमती देवी की बेटी वीणा सिंह से हुआ। दंपति की तीन बेटियां निहारिका सिंह, राधिका सिंह व शिवानी राय तथा एक बेटा कीर्ति वर्धन सिंह हैं। कीर्तिवर्धन वर्तमान में लोकसभा में गोंडा का प्रतिनिधित्व करते हैं और विदेश, वन एवं पर्यावरण राज्य मंत्री हैं।
स्वतंत्र पार्टी के विधायक रहे उनके पिता राघवेंद्र प्रताप सिंह के निधन के उपरांत कुंवर आनंद सिंह ने राजनीति में कदम रखा और 1964, 1967 तथा 1969 में उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए चुने गए।
उनके पारिवारिक सूत्रों ने बताया कि आनंद सिंह ने पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के कहने पर कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की थी। इसके बाद वह 1971, 1980, 1984 और 1989 में गोंडा से लोकसभा के लिए चुने गए।
हालांकि, राम जन्मभूमि आंदोलन के दौरान 1991 के आम चुनावों में वह बृजभूषण शरण सिंह से हार गए। इसके बाद 1996 में बृजभूषण सिंह की पत्नी केतकी देवी सिंह ने उन्हें दोबारा शिकस्त दी।
इसके बाद उन्होंने संसदीय चुनाव से दूरी बना ली। लंबे अंतराल के बाद 2012 के विधानसभा चुनाव में वह जिले की गौरा विधानसभा सीट से विधायक चुने गए तथा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली उत्तर प्रदेश सरकार में कृषि मंत्री रहे। इसके बाद उन्होंने राजनीति से संन्यास ले लिया।
‘यूपी टाइगर’ के नाम से प्रख्यात सिंह का पूर्वी उत्तर प्रदेश की राजनीति में काफी दबदबा था। गोंडा जिले में उनका ऐसा प्रभाव था कि पार्टी उन्हें विधानसभा चुनावों के लिए अक्सर खाली चुनाव चिह्ल यानी बिना उम्मीदवार के नाम वाले नामांकन फॉर्म दे दिया करती थी।
ऐसा माना जाता था कि विधायक, जिला पंचायत अध्यक्ष या ब्लॉक प्रमुख जैसे पदों को हासिल करने के लिए मनकापुर राजघराने की सहमति ही काफी थी।
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