वैश्विकी : संकट में अमेरिका

Last Updated 14 Jun 2020 12:19:08 AM IST

अमेरिका में कोरोना महामारी और आंतरिक असंतोष के बीच इस वर्ष के अंत में राष्ट्रपति चुनाव हो रहे हैं।


वैश्विकी : संकट में अमेरिका

इन चुनाव को विपक्षी डेमोक्रेटिक पार्टी ‘करो या मरो’ की संज्ञा दे रही है। अमेरिका का पूरा  अदृश्य सत्ता प्रतिष्ठान भी डेमोक्रेटिक पार्टी की तरह ट्रंप को दोबारा व्हाइट हाउस नहीं पहुंचने देने के लिए हरसंभव कोशिश कर रहा है। बहुत से राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अेत नागरिक जॉर्ज फ्लॉयड की मौत के बाद देश में जो आंतरिक असंतोष फैला है, वह ट्रंप को राजनीतिक रूप से नुकसान पहुंचाने की कोशिश था। हालात का तकाजा था कि कोरोना महामारी से जूझ रहा पूरा देश सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करता और एकजुटता प्रदर्शित करता लेकिन हुआ इसके विपरीत। बीमारी के बचाव के निर्देशों का खुलेआम उल्लंघन हुआ और सामाजिक विभाजन खतरनाक हद तक बढ़ गया। इसका एक नतीजा यह हुआ कि पिछले एक पखवाड़े के दौरान अमेरिका के अनेक राज्यों में कोरोना के मामले में उछाल आया।
राष्ट्रपति ट्रंप ने व्हाइट हाउस में सीमित रहकर विपक्षियों को जवाब देने की कोशिश की। मीडिया ब्रीफ्रिंग के दौरान भी उन्हें घोर विरोधी पत्रकारों का सामना करना पड़ा। ट्रंप का आरोप है कि पूर्वाग्रह से ग्रस्त मीडिया उनकी बातों को तोड़-मरोड़ कर पेश करता है और उनके विरुद्ध दुष्प्रचार अभियान चलाया जा रहा है। चुनाव का दिन नजदीक आने के साथ ही ट्रंप ने अब मतदाताओं के बीच जाने का फैसला किया है। महामारी के मद्देनजर सोशल डिस्टेंसिंग के जो निर्देश जारी किए गए थे, उनके तहत बड़ी सभाओं के आयोजन पर रोक थी, लेकिन जॉर्ज फ्लॉयड की मौत के बाद जिस तरह हजारों लोग सड़कों पर उतरे और एहतियाती उपायों की धज्जियां उड़ाई गई उससे दिशा-निर्देशों का कोई मतलब नहीं रह गया।

ट्रंप ने यही तर्क दिया कि जब हजारों लोग सड़कों पर उतर सकते हैं और डेमोक्रेटिक पार्टी शासित राज्यों में कोई कार्रवाई नहीं हुई तो उनकी सभाओं को टालने का क्या औचित्य है? ट्रंप अब 20 जून को ओक्लाहोमा राज्य के तुलसा में सार्वजनिक रैली को संबोधित करेंगे। ट्रंप के अनुसार इस रैली में भाग लेने के लिए 2 लाख से अधिक लोगों ने टिकट का अनुरोध किया है। रैली में ट्रंप के भाषण और श्रोताओं की प्रतिक्रिया पर अमेरिका ही नहीं पूरी दुनिया के लोगों की नजर रहेगी। वह अपने चुनाव अभियान के केंद्र में किन मुद्दों को रखेंगे इसका खुलासा पहली बार होगा।
देश में सामाजिक विभाजन और अभूतपूर्व राजनीतिक कटुता के बीच देश को नये संकट का सामना करना है। अभी से यह आशंका व्यक्त की जा रही है कि चुनाव नतीजों के बाद देश में क्या होगा? डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जो बाइडेन ने यह आरोप लगाकर राजनीतिक हलकों में खलबली मचा दी है कि ट्रंप इस चुनाव को चुराना चाहते हैं। उनके अनुसार चुनाव हारने के बाद यदि ट्रंप ने व्हाइट हाउस छोड़ने से इनकार किया तो सेना उन्हें बाहर का रास्ता दिखाएगी। जो बाइडेन का यह बयान अमेरिकी की पूरी लोकतांत्रिक प्रणाली पर सवालिया निशान लगाता है। इससे यह भी संकेत मिलता है कि चुनाव का जो भी नतीजा निकलेगा दूसरा पक्ष उसे स्वीकार नहीं करेगा। ट्रंप यदि दोबारा निर्वाचित होते हैं तो अमेरिका की सड़कों पर विरोध का हालिया दौर दोबारा सामने आ सकता है। ट्रंप के हारने की सूरत में उनके समर्थक मतदाता चुपचाप इसे स्वीकार करेंगे, यह मानना भी भूल होगी। मतदान की प्रक्रिया को लेकर भी असमंजस की स्थिति है। कई राज्यों की ओर से पहल की जा रही है कि मतदान डाक या ऑनलाइन के जरिए कराए जाएं। कोरोना दिशा-निर्देशों के मद्देनजर लोगों के मतदान केंद्रों पर एकत्र होने की बजाय मतदान पत्र उनके यहां पहुंचाएं जाएं। यह अपनी तरह का पहला प्रयोग होगा। इसकी पारदर्शिता और वैधता को लेकर देश में अभी से सवाल उठाए जा रहे हैं।
चुनाव परिणामों के बाद इसके आधार पर भी नतीजों को मानने से इनकार किया जा सकता है। यदि कम अंतर से हार-जीत का फैसला हुआ तो विवाद और तीव्र होने की आशंका है। पिछले चुनाव में ट्रंप ने अपनी प्रतिद्वंद्वी हिलेरी क्लिंटन को क्रूक हिलेरी की संज्ञा दी थी। इस बार वह अपने प्रतिद्वंद्वी को ‘स्लीपी बाइडेन’ (उनींदा बाइडेन) कहकर पुकार रहे हैं। अमेरिकी चुनाव के कारण देश में राजनीतिक अनिश्चितता पैदा हो सकती है। इसे लेकर पूरी दुनिया में आशंका है।

डॉ. दिलीप चौबे


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