बतंगड़ बेतुक : चलो कहीं प्रार्थना कर आयें

Last Updated 14 Jun 2020 12:17:22 AM IST

झल्लन आया तो उसके चेहरे पर फिटकार बरस रही थी और उसकी रुआंसी सूरत जैसे छटंकीभर मुस्कान को तरस रही थी।


बतंगड़ बेतुक : चलो कहीं प्रार्थना कर आयें

वह हमारे पास बैठ तो गया मगर अपनी गर्दन झुकाए रहा और अपनी आंखें खुद अपने ही पैरों पर गढ़ाए रहा। हमने कहा, ‘काहे झल्लन, इतना दुखी काहे नजर आ रहा है, लगता है जैसे जलते कोयले पर पांव धरकर आ रहा है?’ उसने गर्दन उठायी, हमसे नजर मिलायी और बोला, ‘सही कह रहे हो ददाजू, हमें यही लग रहा है जैसे हम जलती आग में से निकलकर आये हैं और हमारे पांव में फफोले उभर आये हैं। लगता है अब हम और नहीं चल पाएंगे और जिंदगी के सफर में यहीं चुक जाएंगे।’ हमने कहा, ‘तेरे फफोले तो हम नहीं देख पा रहे हैं मगर तेरी हालत खराब है यह जरूर समझ पा रहे हैं। अब ऐसा क्या हो गया जो तू जिंदगी के सफर से तंग आ गया है जैसे तू किसी से डर गया है, बुरी तरह घबरा गया है।’ वह बोला, ‘ददाजू, सही कैच किये हो, हम सचमुच घबरा गये है, जो हो रहा है उसे देखकर चकरा गये हैं। कोरोना काबू से बाहर हो गया है, हर इलाज-उपचार बेकार हो गया है। पता नहीं कब, कहां किसकी देह में घुस जाये  और उसे निपटाकर चुपचाप निकल जाये।’
हमने कहा, ‘देख झल्लन, कोरोना से इस तरह डरना भी नहीं चाहिए, इसके खौफ में ऐसे रहना भी नहीं चाहिए और सरकार पर भी थोड़ा भरोसा करना चाहिए।’ झल्लन बोला, ‘पता नहीं ददाजू, आप दिनभर क्या करते हो, न टीवी देखते हो, न सोशल मीडिया पर नजर रखते हो। न केंद्र की सरकार कुछ कर पा रही है न राज्यों की सरकारें कुछ कर पा रही हैं। वे तो जैसे कोरोना को रोकने की औपचारिकताभर निभा रही हैं।’ हमने कहा, ‘ऐसी बात नहीं है झल्लन, सरकार ने पूरी ताकत झोंक दी है, कोरोना की रफ्तार भी रोक दी है।’ इससे पहले कि हम आगे कुछ कहते झल्लन ने हमें टोक दिया, हमारी बात पूरी होने से पहले ही हमें रोक दिया, बोला, ‘ददाजू, काहे सरकारी एजेंट की तरह बात कर रहे हो और काहे असलियत पर ध्यान नहीं धर रहे हो। सरकार और सरकारें पूरी तरह तेल हो गयी हैं, कोरोना को रोकने में एकदम फेल हो गयी हैं। अगर कोरोना इसी रफ्तार से फैला तो अगले दो-तीन महीनों में मरीजों की संख्या लाखों के पार हो जाएगी और हजारों के मरने की जमीन तैयार हो जाएगी।’

हमने कहा, ‘भाई, तुझे अपने देश के अस्पतालों और डॉक्टरों पर भी भरोसा करना चाहिए जो जी-जान से कोरोना का मुकाबला कर रहे हैं और लोगों के दुख-कष्ट हर रहे हैं।’ झल्लन बोला, ‘काहे झूठी दिलासा दे रहे हो ददाजू, अस्पताल तो कोरोना के डर से कांप रहे हैं और जो कोरोना के खिलाफ कुछ करना चाहते थे वे कर-करके हांफ रहे हैं। अब हालत अस्पतालों के बूते से बाहर हो गयी है और डॉक्टर बिरादरी बुरी तरह लाचार हो गयी है। अस्पताल तो अब खानापूर्ति कर रहे हैं, मरीज अब भगवान भरोसे हैं जो बच रहे हैं वो बच रहे हैं और जो मर रहे हैं वो मर रहे हैं। और कुछ अस्पताल तो ऐसे वक्त में भी अपनी कमीनगी नहीं छोड़ रहे हैं, लाचार मरीजों को बेशर्मी से लूट रहे हैं और अपने पैसे में कोरोना का पैसा भी जोड़ रहे हैं।’ हमने कहा, ‘राजनेता इस पर भी ध्यान दे रहे हैं और हालात सुधारने के लिए लगातार फैसले भी ले रहे हैं। उम्मीद करनी चाहिए कि परिणाम अच्छे आएंगे और कोरोना के काले बादल जल्द छट जाएंगे।’ झल्लन बोला, ‘ददाजू, आप तो अपनी सदिच्छा जता रहे हो और जो नंगी सच्चाई है उससे नजर बचा रहे हो। नेता लोग कोरोना से नहीं आपस में लड़ रहे हैं और कोरोना के बढ़ने के आरोप एक-दूसरे पर मढ़ रहे हैं। केंद्र सरकार राज्यों को दोषी ठहरा रही है तो हर राज्य सरकार केंद्र की ओर उंगली उठा रही है। और उधर सरकारें जान रही हैं कि हालात उनके काबू से बाहर हैं सो वे गोटियां सरका रही हैं, अपनी ऊल-जुलूल बातों से जनता को इधर-से-उधर टरका रही हैं।’
हमने कहा, ‘मानते हैं कि बहुत गड़बड़ है पर इतनी गड़बड़ भी नहीं है और हर चीज को गलत ठहराना भी सही नहीं है। कभी-कभी हालात बूते से बाहर हो जाते हैं और क्या करें  और क्या न करें इसे न सरकार समझ पाती है न लोग समझ पाते हैं। यह पहली मुसीबत नहीं है जो इंसानों के ऊपर आयी है, पहले भी बहुत सी मुसीबतें आयी हैं मगर इंसान ने धैर्य और सूझबूझ से इन पर विजय पायी है।’ झल्लन बोला, ‘ददाजू, यहां हमें न तो कहीं धैर्य दिखाई देता है न कहीं सूझबूझ दिखाई देती है, अगर दिखाई देती है तो केवल आपाधापी और खुरपेंच दिखाई देती है। इन्हीं हालात को देखकर लगता है कि आगे बहुत बुरे दिन आएंगे और इन बुरे दिनों को हम टाल नहीं पाएंगे।’ हमने कहा, ‘काहे परेशान होता है झल्लन अब तो मंदिर-मस्जिद भी खुल गये हैं। चल कहीं मत्था टेक आयें, देश के लिए थोड़ी प्रार्थना कर आयें।’

विभांशु दिव्याल


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