कोविड-19 : एक मुखाग्नि यात्रा
कोरोना काल में बहुत सारे अनुभव दिल दहलाने वाले हुए, अंदर तक झकझोरने वाले हुए, लेकिन आज दिनेश सोनी द्वारा सौंपे गए दायित्व को निभाते हुए बहुत गहरा आध्यात्मिक अनुभव हुआ। दिनेश के पिता के. एल. सोनी जी, जो 84 वर्ष के थे, कोविड-19 पॉजिटिव पाए जाने के बाद एलएनजेपी में भर्ती कराए गए और 5 जून, 2020 को उनका देहांत हो गया।
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मुसीबत यह हो गई कि पूरे का पूरा परिवार कोरोना पॉजिटिव पहले से ही था और नियम के अनुसार उनका बाबूजी के देह को स्वीकार करना और फिर संस्कार करना असंभव था। अस्पताल इस बात पर आमादा था कि बगैर परिवार के किसी व्यक्ति के आए न तो वे बाबूजी के देह को सौंपेंगे और ना ही उनका दाह संस्कार हो पाएगा।
दिनेश जी ने अपनी पूरी कोशिश कर ली, लेकिन दूर के रिश्तेदार को या साथी को ढूंढ नहीं पाए और पिता के जाने के कारण और ऐसी स्थिति में अपने आप को पाने के कारण बहुत दुखी थे। मेरे मित्र अनिल शर्मा ने मुझे बताया कि दिनेश जी बहुत ज्यादा चिंतित हैं। उसी वक्त दिनेश जी से मेरी बात हुई और उन्होंने कहा कि इस काम को आप करवा दें। दिनेश जी को मैंने कहा कि आप मेरे नाम से एक एनओसी बनवा कर व्हाट्सएप कर दें। दिनेश जी ने मुझे एनओसी व्हाट्सएप कर दिया, जिसे मैंने दफ्तर भेजकर तैयारी करने को कहा। अस्पताल ने सोमवार यानी 8 जून, 2020 को आने की बात कही और मैं तैयार हो गया। पूरा सोमवार इंतजार करता रहा लेकिन पेपर वर्क खत्म ही नहीं हो रहा था और शाम को मुझे बताया गया कि आप कल आ जाएं लेकिन आएं तभी जब आपको यहां से फोन कॉल जाए।
मंगलवार यानी 9 जून, 2020 को दिनेश जी को मैंने 1:30 बजे दोपहर का समय दे दिया क्योंकि उनकी मंशा थी कि जब बाबूजी का वहां दाह संस्कार हो रहा हो; उस वक्त घर में ही परिवार समेत वह उनकी याद में बैठ जाएं या पूजा-पाठ कर लें। करीब दोपहर 1:00 बजे एलएनजेपी के मेडिकल निदेशक डॉ. सुरेश कुमार ने मुझे और मेरे साथियों को अपने गार्ड के साथ मोर्चरी के लिए विदा किया। जब वहां पहुंचा तो चेहरे पर फेस मास्क होने के कारण लोग पहचान नहीं पा रहे थे। किसी को फुसफुसाते सुना कि यह व्यक्ति तो सोमनाथ भारती लगता है। शायद उन्होंने मेरी आवाज पकड़ ली थी। फिर मोर्चरी के कार्यालय में मुझे ले जाया गया, जहां डॉ. मोनिका से मुलाकात हुई और बाकी कार्रवाई को पूरा किया गया और मुझे बाबूजी का मृत्यु प्रमाण पत्र सौंपा गया। डॉ. मोनिका से जब मैंने पूछा कि क्या कोरोना वायरस से पीड़ित व्यक्तियों के पार्थिव शरीर से कोरोना वायरस का कोई डर होता है, तो उन्होंने हां में जवाब दिया, लेकिन यह भी कहा कि ऐसा डर तभी होता है, जब कोई पार्थिव शरीर को ज्यादा हिलाए-डुलाए। फिर भी मेरे मन में रंच मात्र भी डर पैदा ना हुआ। एक भाव जरूर मन में आया कि अगर कोरोना संक्रमण मुझे हो गया तो मेरी पत्नी, मां और दोनों बच्चों को संक्रमण का खतरा बढ़ जाएगा लेकिन तभी मदर टेरेसा का मुझे ख्याल आया, कैसे उन्होंने छुआछूत की बीमारियों से पीड़ित लोगों की सेवा की। इसी बीच आवाज लगी। मैं साथियों के साथ के. एल. सोनी जी के पार्थिव शरीर की पहचान करने के लिए दौड़ पड़ा। बाकी की कार्रवाई के बाद हम लोग निगम बोध घाट पहुंचे। वहां बहुत सारे लोग अपने- अपने प्यारों के पार्थिव शरीर को लेकर पहुंचे हुए थे क्योंकि मेरे साथी रवि नंदन ने पहले से ही वहां के पंडित अमन शर्मा से बात करके तैयारी करवा ली थी। जल्दी से पर्ची काट दी गई। लकड़ियों के लिए रिक्वेस्ट दे दी गई और एंबुलेंस को लेकर दाह संस्कार वाली जगह पर हम पहुंच गए, वहां मारामारी थी।
इस बीच बाबूजी को लकड़ियों की शैय्या पर सुला दिया और मुझे पंडित जी ने पूछा ‘परिवार में से कौन है, आग कौन देगा’ उस पर मैंने कहा मैं दूंगा, मैं इनके परिवार से हूं। उन्होंने एक लकड़ी के फट्टे पर कपूर की कई ढलियां रखकर कई बार प्रयास करने के बाद आग लगाई और मुझे मंत्रोचार करते हुए चक्कर काटने को कहा। उनकी आज्ञा का पालन करते हुए पार्थिव शरीर को पंचतत्व में विलीन करने के लिए आग के सुपुर्द कर दिया गया। मुझे नहीं पता कि मैं दिनेश भाई की आशाओं पर खरा उतरा या नहीं उतरा, लेकिन मुझे अपने पिताजी को आग के सुपुर्द करते हुए जो अनुभव 1 मई, 2018 को हुआ था, वही अनुभव एक बार फिर महसूस हुआ। के.एल. सोनी जी के जाने और मेरे द्वारा उनका दाह संस्कार किए जाने पर एन ब्लॉक के गौरव माटा ने यहां तक कह दिया ‘सुख के सब साथी, दुख में ना कोई’, को सोमनाथ जी ने झूठा साबित कर दिया। लेकिन मैं कौन हूं करने वाला? मैं निमित्त मात्र हूं! कर्ता का भाव ही तो हर दुख का कारण है, करने वाला वो, कराने वाला वो।
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