हरित ऊर्जा : महामारी के बाद दिखेगी तेजी

Last Updated 04 Jun 2020 12:08:56 AM IST

यह 1962 का साल था, जब बेल लैब्स ने पहला दूरसंचार उपग्रह लॉन्च किया था।


हरित ऊर्जा : महामारी के बाद दिखेगी तेजी

टेलस्टार के नाम से कई ‘सबसे पहले हासिल की गई उपलब्धियां’ जुड़ी हुई थीं और इनमें ही टेलस्टार की सतह का सौर कोशिकाओं से ढका हुआ होना शामिल था, जो 14 वॉट विद्युत शक्ति का उत्पादन करती थी। लगभग छह दशक बाद हाल ही में एमआईटी के एक शोध पत्र में बताया गया है कि सोलर मॉड्यूल की कीमत पिछले 40 वर्षो में 99% कम हुई है। और जो मैं देख रहा हूं, उसके अनुसार मुझे अगले 40 वर्षो में कीमतों में 99% की और कमी आने की उम्मीद है, जो संभवत: बिजली की सीमांत लागत शून्य कर देगा।

मतलब कि दो व्यावसायिक मॉडल के सह-अस्तित्व का होना-एक जीवाश्म ईधन पर आधारित मॉडल और दूसरा नवीकरणीय ऊर्जा द्वारा संचालित मॉडल। लेकिन लंबी अवधि में देखें तो नवीकरणीय ऊर्जा का भविष्य बेहतर दिखता है। आज जब कोविड-19 हमारे जीवन की मूलभूत धारणाओं को चुनौती दे रही है, तो ऊर्जा क्षेत्र में हरित क्रांति की जरूरत को अधिक महत्त्व मिलता दिख रहा है। हमारे सामने कम कार्बन वाले भविष्य में तेजी से रूपांतरित होने के लिए ठहर कर विचार करते हुए डिजाइन करने का अवसर है। इसके अलावा, यूरोप में कई सिस्टम ऑपरेटर, जो गिरती मांग के साथ इसका सामना कर रहे हैं, एनर्जी मिक्स में जो अक्सर 70% तक रहता है, नवीकरणीय ऊर्जा के उल्लेखनीय उच्च स्तर पर ग्रिड का प्रबंधन करना सीख रहे हैं। कोविड-19 महामारी के बाद के दौर में यह नया मानदंड हो सकता है।

जब अर्थशास्त्र और उद्देश्य मिलते हैं तो नतीजे विघटनकारी हो सकते हैं। आज हम ऐसी प्रवृत्ति देख रहे हैं, जहां जलवायु परिवर्तन पर सरकारों की नीतियां, जनजागरूकता और कार्रवाई के लिए जन समर्थन और बड़ी अर्थव्यवस्थाएं नवीकरणीय ऊर्जा के माध्यम से बड़े पैमाने पर बाजार में मांग और रोजगार सृजन को बनाए रख रही हैं। साथ ही, ऊर्जा आयात पर निर्भर देशों के लिए ऊर्जा सुरक्षा को संबोधित करती हैं। मुझे यह भी उम्मीद है कि प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में इनोवेशन के कारण और ऑन-शोर एवं ऑफ-शोर नई पवन परियोजनाओं के लागू होने से पवन ऊर्जा की इकाई लागत में कमी आएगी। सौर और पवन ऊर्जा में निवेशकों के बढ़ते भरोसे और विभिन्न भंडारण प्रौद्योगिकियों के साथ उनका एकीकरण ऊर्जा में परिवर्तन की गति को और तेज करेगा। हाइड्रोजन आने वाली प्रमुख भंडारण प्रौद्योगिकी प्रतीत होती है।

मैं हाइड्रोजन को लेकर व्यक्तिगत रूप से आशान्वित हूं। हाइड्रोजन का उत्पादन करने के लिए पानी के अणु का अपघटन हमेशा ईधन के रूप में सपना रहा है जो ऊर्जा भंडारण का दोहरा लाभ देता है। औद्योगिक दुनिया हाइड्रोजन से परिचित है, और 90% से अधिक भाप सुधार से पैदा होता है, जो अंतर्निहित कार्बन-गहन प्रक्रिया होती है। हालांकि अक्षय ऊर्जा के भविष्य की सीमांत लागत में तेजी से कमी आने की संभावना के कारण विभाजित पानी द्वारा उत्पादित ग्रीन हाइड्रोजन गेम-चेंजर हो सकती है। यह हाइड्रोजन वितरण के लिए मौजूदा गैस पाइपलाइन नेटवर्क का अधिक उपयोग कर सकता है, प्राकृतिक गैस के साथ मिश्रित हो सकता है और रासायनिक उद्योग के लिए ग्रीन फीडस्टॉक हो सकता है। इसके अलावा, एक किलोग्राम हाइड्रोजन की ऊर्जा घनत्व गैसोलीन की तुलना में लगभग तीन गुना है, और आपके पास एक गति है जिसे रोकना असंभव होगा क्योंकि हाइड्रोजन ईधन सेल वाहन की कीमतें नीचे आती हैं। हो सकता है कि हाइड्रोजन काउंसिल भविष्यवाणी कर दे कि ग्रीन हाइड्रोजन अगले दशक में 70 अरब डॉलर के निवेश को आकर्षित कर सकता है। इस पैमाने पर होने वाला व्यय कई उद्योगों को बाधित कर सकता है और साथ ही उन्हें बना भी सकता है, जिसके के बारे में कुछ कहना मुश्किल है।

आज की राजनीति और अर्थशास्त्र आवश्यक रूप से रोजगार सृजन से संबंधित हैं, यहां तक कि कोविड-19 से रिकवरी के दौर में भी यही सच है। इंटरनेशनल रिन्यूएबल एनर्जी एजेंसी (आईआरईएनए) का अनुमान है कि स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्र में रोजगार, जो फिलहाल 12 मिलियन है, 2050 तक चौगुना हो सकता है, जबकि ऊर्जा दक्षता और सिस्टम फ्लेक्सिबिलिटी में नौकरियां 40 मिलियन तक बढ़ सकती हैं। हाल में आईआरईएनए की रिपोर्ट में बताया गया है कि यह परिवर्तन 2050 तक सौर, पवन, बैटरी भंडारण, ग्रीन हाइड्रोजन, कार्बन प्रबंधन और ऊर्जा दक्षता में 19 ट्रिलियन डॉलर के निवेश के अवसर पैदा कर सकता है। 

भारत के लिए लाभ का अच्छा अवसर है। हमारा देश स्वाभाविक रूप से बहुत उच्च स्तर के सौर संसाधनों से संपन्न है और लंबा तटीय क्षेत्र पवन ऊर्जा के लिए एक आकषर्क संभावना है। स्थापित क्षमता के मामले में भारतीय नवीकरणीय ऊर्जा उद्योग पहले से ही दुनिया भर में चौथे स्थान पर है, और अनुकूल भूगोल, उपकरणों की गिरती कीमतों, बढ़ती मांग और विश्वस्तरीय ट्रांसमिशन नेटवर्क के संयोजन का मतलब ऐसे उद्योग का होना है जिसके अगले दो दशकों तक बढ़ते रहने की उम्मीद है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि इस क्षेत्र में पिछले एक दशक में 10 बिलियन डॉलर से अधिक का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) प्राप्त हुआ है। तथ्य यह है कि नई और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) ने पहले ही नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता का लक्ष्य पेरिस में स्थापित 175 गीगाबाइट के 2015 के प्रारंभिक लक्ष्य से 2022 तक 225 गीगाबाइट का लक्ष्य रखा है और उसके बाद 2030 तक लक्ष्य को बढ़ाकर 500 गीगाबाइट कर दिया है, जो भारत को वैश्विक ऊर्जा के क्षेत्र में प्रवेश करने में मदद करने के लिए सरकार की गंभीरता के साथ-साथ उसकी क्षमता का संकेत है। यद्यपि महामारी की तुलना में जलवायु परिवर्तन का प्रभाव धीमा है, लेकिन मानवता के लिए इसका खतरा अधिक महत्त्वपूर्ण है। इसलिए एक स्वच्छ ऊर्जा भविष्य को अपनाने का मामला न केवल सरकारों द्वारा बल्कि उद्योग द्वारा भी लिया जाना चाहिए। भारत धीरे-धीरे और मजबूती से आगे बढ़ रहा है। कोविड-19 एक महत्त्वपूर्ण मोड़ हो सकता है, जहां समाज स्वच्छ भविष्य के लिए गति में तेजी लाते हुए आर्थिक पुनर्निर्माण के प्रयासों का लाभ उठाये।

गौतम अदाणी
अदाणी ग्रुप के चेयरमैन


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