कोरोना : सरकार अपना ‘काम’ कर रही है

Last Updated 04 Jun 2020 12:05:44 AM IST

कोविड-19 के खिलाफ युद्ध के सारे अभिनय के बीच सीएए/एनपीआर/एनआरसी विरोधी प्रदर्शनकारियों की गंभीर आपराधिक आरोपों में पकड़-धकड़ का खेल लॉकडाउन से धीरे-धीरे पीछे हटे जाने के साथ तेजी पकड़ रहा लगता है।


कोरोना : सरकार अपना ‘काम’ कर रही है

दिल्ली में सबसे तेजी से चलते रहे इस सिलसिले की ताजा कड़ी में सीधे अमित शाह द्वारा नियंत्रित दिल्ली पुलिस ने 23 मई को जेएनयू की दो शोध छात्राओं, नताशा और देवांगना को फरवरी के महीने में जाफराबाद में हुए सीएए विरोधी प्रदर्शन में उनकी कथित भूमिका के लिए गिरफ्तार कर लिया। इन छात्राओं की 2015 में दिल्ली विश्वविद्यालय की छात्राओं के बीच से उभरे ‘पिंजड़ा तोड़’ नाम के मंच को संगठित करने में प्रमुख भूमिका थी, जो छात्राओं के अधिकारों तथा आम नागरिकों के अधिकारों के मुद्दे पर सक्रिय रहा है।
बहरहाल, दिल्ली की एक अदालत ने इन छात्राओं की पुलिस रिमांड की मांग खारिज कर दी और दोनों को इस आधार पर जमानत दे दी कि उनके खिलाफ लगाया गया किसी लोकसेवक पर हमला करने या उसे अपने कर्तव्य का पालन करने से रोकने के लिए आपराधिक बल प्रयोग करने का मामला तो बनता ही नहीं है। ‘वे तो सिर्फ एनआरसी तथा सीएए के खिलाफ विरोध जता रही थीं।’ बहरहाल, अदालत के फैसले के चंद मिनट में ही दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच की पूर्वी-दिल्ली की फरवरी के आखिर में हुई हिंसा की तफ्तीश के लिए गठित विशेष जांच टीम ने हत्या, हत्या की कोशिश, बलवा तथा आपराधिक साजिा रचने जैसे गंभीर आरोपों में दोनों छात्राओं को नये सिरे से गिरफ्तार कर लिया। इस बार पुलिस अदालत से दो दिन का रिमांड हासिल करने में भी कामयाब रही।

उससे पहले दिल्ली पुलिस के स्पेशल सैल ने सीएए/एनपीआर/एनआरसी विरोधी प्रदर्शनों में सक्रिय रहे जामिया मिल्लिया के छात्र तथा इन प्रदर्शनों के संचालन से जुड़ी जामिया कोआर्डिनेशन कमेटी के सदस्य आसिफ इकबाल तन्हा को अवैध गतिविधि निरोधक कानून (यूएपीए) के तहत पकड़ लिया। उन पर उत्तर-पूर्वी दिल्ली में फरवरी के ‘दंगों के पीछे की वृहत्तर साजिश का हिस्सा होने’ का आरोप लगाया गया है। इसी सिलसिले में कमेटी से ही संबद्ध शोध छात्रा सफूरा जरगर, मीरन हैदर तथा जामिया एल्युमनाई एसोसिएशन के शिफा उल रहमान को  पहले ही गिरफ्तार किया जा चुका था। इसी प्रकार, जेएनयू के छात्र शर्जील इमाम तथा जेएनयू के पूर्व छात्र उमर खालिद को भी ऐसे ही आरोपों में गिरफ्तार किया गया। इससे भी पहले, अप्रैल के पहले ही पखवाड़े में सीलमपुर के प्रदर्शन से सक्रिय रूप से जुड़ी रही एमबीए की छात्रा गुलफिशां को राजद्रोह के आरोप में जेल में डाला जा चुका था। इसी प्रकार, कांग्रेस की पूर्व-कॉरपोरेटर इशरत जहां को उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा में शामिल होने के आरोप में और भी पहले गिरफ्तार किया जा चुका था।
सीएए-विरोधी पढ़े-लिखे मुस्लिम युवाओं और उसमें खास तौर पर युवतियों और बुजुर्ग महिलाओं की विशाल कतार सामने आई थी।  वे बिल्कुल स्पष्ट थे कि वे धर्मनिरपेक्षता और जनतंत्र के सिद्धांतों के आधार पर और डॉ. अंबेडकर के बनाए संविधान को आगे रखकर अहिंसक सत्याग्रह के जरिए नागरिक अधिकारों तथा नागरिक समानता की लड़ाई लड़ने जा रहे हैं।
और पिंजड़ा तोड़ जैसे मंचों की गैर-मुस्लिम कार्यकर्ताओं को इस मुहिम में गिरफ्तारियों की उपकथा की तरह जोड़ दिया गया है। इस आख्यान में उनकी भूमिका वही है, जो भीमा कोरोगांव मामले में कथित शहरी नक्सलों की गिरफ्तारी की है। इसके जरिए, अल्पसंख्यकों के हितैषी होने के इस नये, उभरते हुए, धर्मनिरपेक्ष मुस्लिम नेतृत्व के दावे को, अतिवादी-स्त्रीवादी की तोहमत लगाकर कमजोर किया जा सकता है। इसके ऊपर से इस दमनकारी मुहिम के पीछे मुस्लिम-विरोधी मंतव्य होने के सवालों को कुछ भोंथरा तो किया ही जा सकता है। लेकिन, क्या यही सरकार का काम रह गया है?

राजेंद्र शर्मा


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