विश्लेषण : मतान्तरण का क्रूर खेल
हाल ही में निश्चछल एवं निष्पाप दो संतों की महाराष्ट्र के एक आदिवासी बहुल इलाके में सरेआम निर्मम हत्या कर दी गई। इस हत्या के कारण और अकारण की जांच चल रही है।
विश्लेषण : मतान्तरण का क्रूर खेल |
सत्य कब तक उजागर होगा? समय सीमा तय नहीं है। इसी बीच पता चला है कि, इस इलाके में वर्षो से एक संगठन के जरिये मतान्तरण का गैरकानूनी खेल चल रहा है। जब मैं मतान्तरण कह रहा हूं, तो यह स्पष्ट समझना चाहिए कि, धर्मान्तरण जैसी कोई शब्दावली अविधा, लक्षणा और व्यंञ्जना में नहीं होती है। मत के स्थान पर जान-बूझकर कुछ लोगों द्वारा अर्थ का अनर्थ किया गया है।
हां तो उक्त विषय के संबंध में जन मानस के शक की सुई इसी संगठन विशेष की साजिश की ओर है। इस हत्याकाण्ड पर से पर्दा उठाना पुलिस प्रशासन का दायित्व है। अपना प्रयास मात्र मतान्तरण के चल रहे खेल को अनावृत्त करना है। शुरू में यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि-‘मत परिवर्तन और मतान्तरण अलग-अलग स्थिति और प्रक्रिया है। यद्यपि इसके लिए अंग्रेजी में केवल एक शब्द ‘कन्वर्जन’ है। एक ओर जहां मत परिवर्तन व्यक्ति या समाज के अपने अनुभव और मनोभाव के कारण होता है; वहीं दूसरी ओर सेवा-सहयोग की आड़ में लोभ-लालच देकर मतान्तरण कराया जाता है और यह लौकिक एवं वैधानिक दोनों प्रकार से वर्जित है। मत परिवर्तन की प्रक्रिया को दर्शनशास्त्र में मन-परिवर्तन, रूपान्तरण, जीवन-परिवर्तन आदि प्रत्ययों के माध्यम से व्यक्त किया जाता है। परिवर्तन की इस प्रक्रिया में प्राप्त परिणाम को पुनर्जीवन, अनुकम्पा प्राप्त करना, मत को अनुभूत करना, आश्वासन प्राप्त करना और आशीर्वाद मिलना आदि शब्दों से प्रकट किया जाता है।
दार्शनिक विलियम जेम्स स्पष्ट करते हुए लिखते हैं कि, साधारण अथरे में धर्म परिवर्तन का उक्त अर्थ मान्य होता है। धर्म परिवर्तन के द्वारा कोई व्यक्ति अपनी दुविधा, गलती, हीन-भावना, अप्रसन्नता से मुक्त होकर, अकाट्य, सही, श्रेष्ठ और प्रसन्नता महसूस करने लगता है। वस्तुत: मत-परिवर्तन तो एक पन्थ और राह है। यह किसी खास मत की विरासत नहीं है। सभी मतों जैसे-हिन्दू, ईसाई, इस्लाम, बौद्ध, जैन और सिख आदि में रूपान्तरण के प्रमाण मिलते हैं। रामकृष्ण परमहंस को मां काली के दर्शन हुए और उनका रूपान्तरण हो गया। बुद्ध को बोधि की प्राप्ति हुई। संत पाल को ईसा के दर्शन हुए, तुलसीदास को हनुमान व राम के दर्शन मिले, मुहम्मद साहब को अल्लाह का दर्शन मिला, अर्जुन को कृष्ण के विराट रूप का दर्शन मिला और जीने का मार्ग या पंथ बदल गया। मत-परिवर्तन की यह प्रक्रिया शासन के कानूनी चौखट में है और अन्य विवादों से परे है। इसमें व्यक्ति के मन की पीड़ा, उलझन, संदेह और नैराश्य का शमन होता है। वस्तुत: मत-परिवर्तन के दो प्रकार हैं-पहला, संकल्पनात्मक धर्म- परिवर्तन और दूसरा आत्म-समर्पण विषयक परिवर्तन का समावेश होता है। संकल्पनात्मक धर्म परिवर्तन की वह प्रक्रिया है, जिसके तहत व्यक्ति या समूह अपने अशुभ कर्मो से मुक्ति और शुभ कर्मो की ओर उन्मुख होने के लिए अपने को प्रेरित करता है। अशुभ से आशय बुरी लत से है।
आत्म-समर्पण विषयक धर्म परिवर्तन में साधक को साध्य के लिए अपने इष्ट के समक्ष समर्पित करना होता है। इस प्रकार की साधना में चमत्कार विशेष की अनुभूति होती है। साधक इसे निरन्तर ईश्वरीय आनन्द प्राप्ति की संज्ञा देते हैं। साधक के बताए नये राह पर लाखों अनुयायी चल पड़ते हैं। इनमें नई चेतना और उत्साह का संचार होता है। इस अर्थ में स्पष्ट है कि मत- परिवर्तन सौम्य और शुचिता से परिपूर्ण है। इसको जीवन प्रवाह में अनोखी घटना भी कह सकते हैं, जबकि मतान्तरण उस प्रक्रिया का नाम है, जिसके द्वारा मनुष्य एक मत, जिसका वह अनुगामी होता है, को छोड़कर दूसरे नये मत को स्वीकार करता है। अनुभव में आया है कि, मतान्तरण का स्वरूप लोभ, लालच, छल, प्रपंच, हिंसा, षड्यंत्र और उन्माद से युक्त है। इस पर किसी ने सेवा और चिकित्सा की धवल चादर ओढ़ा रखी है तो किसी ने जर, जमीन, शमशीर और जोरू को आगे रखकर मतान्तरण का चिराग जला रखा है।
इस दोहरी मारक ताकत को शासकों से संरक्षण मिलने के संकेत मिलते रहे हैं। हालांकि भारत में मतान्तरण अभियान को अस्पृश्यता और अशिक्षा ने ज्यादा ताकत दी है। भारत में तलवार के बल पर मत बदलने का दौर मुस्लिम आक्रान्ताओं ने आरम्भ किया। सल्तनतों से मिले सहयोग और संरक्षण के चलते भारत में लाखों हिन्दुओं का अंसारी, खान, पठान के नाम से मतान्तरण हुआ। आज ऐसे लोग भारत, बांग्लादेश और पाकिस्तान में लाखों की संख्या में हैं। मुगल सल्तनत के अवसान के बाद भारत पर अंग्रेजों ने राज किया। बगुला भगत बनकर आई ईसाई मिशनरियों ने सुदूर गांवों में सेवा, चिकित्सा का जाल बिछाया। फिर अस्पृश्यता, अशिक्षा और गरीबी का मिक्सचर बनाया। इसके बाद लोभ, लालच और वैवाहिक प्रस्ताव को परोसना शुरू कर दिया। यह योजना बदस्तूर जारी है। वोट के लालची मतान्तरण जैसे जघन्य अपराध के लिये पोषक आहार बने हुए हैं। उल्लेखनीय है कि निरपेक्ष आधार पर विचार करने वाले मतान्तर को न्याय संगत नहीं मानते। क्योंकि धर्म का अटूट संबंध संस्कृति से है और इसीलिए मत, धर्म नहीं होता; धर्म का आशय कर्तव्य या दायित्व या उत्तरदायित्व से होता है। इसका फलक बहुत व्यापक होता है।
ऐसी दशा में जब कोई धर्म बदलता है तो उसे अपनी संस्कृति भी बदलनी होती है या स्वत: ही बदल जाती है; लेकिन मत के साथ ऐसा नहीं है और इसीलिए मत के बदलने पर संस्कृति अनन्त काल तक अपरिवर्तित रह जाती है। इसी कारण से स्वामी विवेकानन्द ने धर्मान्तरण को अधर्म की संज्ञा दी है। महात्मा गांधी ने भी धर्मान्तरण को मान्यता नहीं दिया है। इनका आग्रह था कि, प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म को सबल बनाने के लिए प्रयास करना चाहिए, धर्म की यही मांग है, जबकि पालघर के सुदूर इलाकों में विपरीत धारा बह रही है। यह इलाका मुम्बई से करीब सौ किलोमीटर दूर है।
मुम्बई में सिनेमा ने जन्म लिया। आलम यह है कि यहां अनेक गांवों के लोगों ने 1980 तक कोई फिल्म नहीं देखी थी। इनकी अज्ञानता और गरीबी का लाभ उठाकर मिशनरियों और वामपंथियों ने इस इलाके में हिंसा के सहारे अपना दबदबा और गढ़ बना रखा है। दो संतों सहित कार चालक की हत्या को इसी मानसिकता और रणनीति का हिस्सा माना जाएगा; परिस्थिति, तथ्य और जन सामान्य का आंकलन ऐसा कहने के लिए विवश करता है।
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