टिड्डी हमला : वैश्विक समाधान तलाशना होगा

Last Updated 03 Jun 2020 03:18:19 AM IST

कोई नकारात्मक ताकत अकेले आए, तो उससे निपटना कुदरत ही नहीं हम इंसानों के लिए भी कोई ज्यादा मुश्किल नहीं है।


टिड्डी हमला : वैश्विक समाधान तलाशना होगा

लेकिन जब कोरोना वायरस की चुनौती के साथ अर्थव्यवस्थाओं के बैठ जाने का सिलसिला अपने उफान पर हो, उस पर झुंडों में टिड्डियों का दल एक साथ कई राज्यों में हमला बोल दे तो लगता है कि पूरी कायनात हमारा इम्तहान लेने को आमादा हो गई है।
आंकड़ों में देखें और वैज्ञानिक विश्लेषणों पर नजर दौड़ाएं तो फसलों और संपूर्ण हरीतिमा को टिड्डियों के हमले के कारण हो रहे नुकसान को देखकर आत्मा सिहर जाती है। ऐसे में कई सवाल एक साथ मन में उठते हैं। जैसे ये टिड्डी दल अचानक इतनी बड़ी तादाद में कहां से आ गए? आखिर मौसमी आपदाओं पर निगाह रखने वाला वह सरकारी सिस्टम वक्त रहते इनके उमड़ने का अंदाजा क्यों नहीं लगा पाया, जो सुपर कंप्यूटरों से लैस है। और क्या इनके समूल नाश की कोई ग्लोबल व्यवस्था नहीं बन सकती-क्योंकि बताया जा रहा है कि असल में इनका हमला तो पाकिस्तान और ईरान की तरफ से हुआ है। अमूमन ग्लोबल वॉर्मिग के कारण पैदा समस्या जलवायु परिवर्तन और जबर्दस्त बारिशों के दौर को टिड्डियों की पैदावार से जोड़ा जाता है।

इस साल इसका एक उदाहरण उत्तरी अफ्रीका से मिल चुका है, जहां लगातार हुई बारिश ने खाली पड़े खेतों को टिड्डियों के प्रजनन स्थल में तब्दील कर दिया। इधर भारत, पाकिस्तान और ईरान तक के दक्षिण एशियाई दायरे में करीब दस पश्चिमी विक्षोभों ने कुछ ऐसी ही सूरतें पैदा की हैं जिनमें जमीनें टिड्डी के अनुकूल बन गई। कहने को संयुक्त राष्ट्र की एक इकाई-फूूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन (एफएओ) इस बारे में चेतावनी दे चुका था कि मई-जून में एशियाई मुल्क टिड्डियों के हमले से परेशान हो सकते हैं। इस चेतावनी का आधार मौसम में आए बदलाव ही थे, लेकिन झुंड में आने वाली यह प्राकृतिक विपदा इतनी बड़ी होगी कि वर्ष 1993 की ऐसी ही आपदा इसके सामने छोटी पड़ जाए, यह अंदाजा शायद किसी को नहीं था। 1993 में टिड्डी दल के हमले से हुए फसली नुकसान के आंकड़े कहते हैं कि देश के किसानों को इससे करीब 75 लाख रु पयों की हानि सहनी पड़ी थी, लेकिन अबकी बार यह नुकसान इन टिड्डियों के करीब 10 राज्यों में घुसपैठ कर लेने के कारण अरबों रु पये में पहुंच सकता है। इन दो हमलों की समानताएं आश्चर्यजनक हैं। तथ्यों के मुताबिक अगस्त-सितम्बर 1993 में भारत-पाकिस्तान सीमाई इलाके में हुई भारी बारिश से टिड्डियों का बड़ी तादाद में प्रजनन हुआ था और उस वक्त भी हमले को हल्के में लेने की वजह से इस उड़न आपदा का दायरा राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश तक फैल गया था। आम तौर पर राजस्थान और गुजरात के पाकिस्तान से सटे सीमाई इलाकों में पाई जाने वाली टिड्डियों का असर भी ज्यादातर इन्हीं राज्यों तक सीमित रहता है, लेकिन अनुकूल मौसम, हवा की दिशा और गति मिलने पर हरियाली की खोज इन्हें एक झटके में हजारों वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैला देती है।
नब्बे दिन के जीवन चक्र में तीन बार प्रजनन करने वाली इन टिड्डियों को लेकर खौफ यूं ही नहीं है। एक प्रजनन में बीस गुना तक बढ़ोत्तरी कर लेने वाली टिड्डियों का एक वर्ग किलोमीटर वाला दल एक दिन में 35 हजार लोगों की आवश्यकता पूरा करने वाला अनाज-फसल चट कर डालता है। टिड्डियां सिर्फ  इसलिए नहीं बढ़ीं कि उनकी पैदावार और पड़ोसी मुल्कों से इनके आगमन पर सटीक नजर रखकर अलर्ट जारी करने में भारी चूक हुई, बल्कि इसलिए भी बढ़ी क्योंकि पाकिस्तान में इस बार इनके सफाए को लेकर बड़े पैमाने पर वे अभियान नहीं छेड़े गए, जो हर साल वहां चलाए जाते रहे हैं। इससे टिड्डियों को सीमापार कर भारत में आतंक मचाने का मौका मिल गया।
टिड्डी आक्रमण से निपटने के लिए किसानों से बर्तन, थाली, नगाड़े बजाने और केमिकल का छिड़काव करने के उपाय अपनी जगह सही हो सकते हैं, पर वक्त आ गया है कि कोरोना से निपटने की तरह इस संबंध में भी अब साझा ग्लोबल उपायों पर जोर हो। दक्षिण एशियाई देशों के किसानों की समस्याएं ज्यादा अलग नहीं हैं, ऐसे में भारत आगे बढ़कर ईरान-पाकिस्तान को भी टिड्डी-आतंक से बचने की पहलकदमी को कहेगा तो मुमकिन है कि वे इसके लिए आसानी से राजी हो जाएं और समस्या का स्थायी समाधान मिल जाए।

संजय वर्मा


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