बतंगड़ बेतुक : राजनीति के ये सदाबहार झुनझुने
जब झल्लन ने पार्क में हमें लगातार अनुपस्थित पाया तो वह लॉकडाउन की आंखों में धूल झोंककर सीधे हमारे घर चला आया और बोला, ‘का ददाजू, आप तो लॉकडाउन को ऐसा ओढ़ लिये कि पार्क में आना ही छोड़ दिये।’
बतंगड़ बेतुक : राजनीति के ये सदाबहार झुनझुने |
हमने कहा, ‘तो इसका मतलब तू पार्क में जाता रहा लेकिन वहां करता क्या रहा?’ झल्लन बोला, ‘अब आप से क्या छिपाएं ददाजू, सरकार ठेका खुलवा दिये सो हम भी खुद को दारू पिलवा दिये।’ हमने कहा, ‘दारू पीकर तो तेरे भीतर विद्वता का बंदर गुलाट मारने लगता है और तू लंबे-लंबे भाषण झाड़ने लगता है। इस बार दारू ने तुझे किस विषय पर बुलवाया, तेरे प्रवचन में क्या कहलवाया?’
झल्लन बोला, ‘इस बार हम शहर से अपने गांव की ओर पलायन करने वाले प्रवासी मजदूरों के दर्द से द्रवित हो रहे थे और रोज आती उनकी दुखभरी कहानियों के दुख में बह गये थे। ऐसा क्यों होता है ददाजू कि सरकार चाहे नोटबंदी करे या जीएसटी लागू करे या कोरोना काल में लॉकडाउन करे, सबसे ज्यादा मार गरीब मजदूरों पर ही पड़ती है और जो पहले से ही बेसहारा हैं उन्हें और अधिक बेसहारा करती है?’ हमने कहा, ‘देख झल्लन, गरीब लोकतंत्र के सबसे मजबूत स्तंभ हैं और गरीबी इसकी सबसे बड़ी पूंजी है। गरीबी अैर गरीबों की वजह से ही हमारे महान लोकतंत्र की नाक ऊंची है।’ झल्लन ने अपनी आंखें हमारी आंखों पर फिराई फिर अपनी पुतलियां ऊपर-नीचे घुमाई और बोला, ‘ददाजू, बोतल तो हम पीते रहे हैं पर लगता है चढ़ आपको रही है तभी आपके मुंह से निकलकर ये बेतुकी बात बह रही है। काहे बात का बतंगड़ बनाते हो और काहे हमारी सीधी कहन पर अपनी उलटबांसी की चद्दर चढ़ाते हो? यहां गरीबी सारे मुल्क को शर्मिदा कर रही है और इधर आपकी जुबान गरीबी के कसीदे पढ़ रही है।’ हमने कहा, ‘देख झल्लन, हम सच कह रहे हैं और सच के सिवा कुछ नहीं कर रहे हैं। तू ही बता, अगर गरीबी नहीं होगी तो हमारे क्रांतिकारी, परिवर्तनवादी, कल्याणकारी राजनीतिक दल अपना नामकरण कैसे करेंगे और बड़े-बड़े राजनेता किसके उद्धार और कल्याण के नाम पर खर्चीले-भड़कीले चुनाव लड़ेंगे, किसकी भलाई के नाम पर घोषणा-पत्र बनेंने और किसके हित के नाम पर भाषण-बयान होंगे?’ झल्लन बोला, ‘ददाजू, आपकी बात फिर हमारे सर के ऊपर से जा रही है मगर यह छोटी सी बात आपकी समझ में नहीं आ रही है। गरीबी मिटाना और गरीब का पेट भरना हर सियासी दल का पहला कर्तव्य है, गरीब और गरीबों की बात करने के पीछे उनका यही मंतव्य है।’
हमने कहा, ‘काश! वैसा ही होता जैसा तू कह रहा है। सच बात यह है कि नेताओं के मुंह से निकल कुछ और रहा है मगर हो कुछ और रहा है।’ झल्लन बोला, ‘ददाजू, काहे जलेबी बनाते हैं जो कहना चाहते हैं वो सीधे-सीधे काहे नहीं समझाते हैं?’ हमने कहा, ‘अच्छा सोच, एक नेता राजनीति में छोटा सा कद पाते ही देखते-ही-देखते करोड़पति हो जाता है, जरा सोच उसका यह पैसा किसके हिस्से से आता है? किसी ऐसे अधिकारी का नाम बता जो थोड़ा सा भी वक्त गरीबी मिटाने के काम में लगाता हो या जिसका सारा वक्त नेताओं की चरण-चप्पी और अपने तई पैसा बनाने में नहीं जाता हो? किसी ऐसे पूंजीपति का नाम बता जिसके व्यापार-व्यवसाय से गरीबों का सीधा नाता हो या जो सरकारी सिस्टम में सेंध मारकर अपनी काली-सफेद पूंजी नहीं बढ़ाता हो? किसी ऐसे न्यायालय का नाम बता जहां गरीबों को सीधा न्याय मिल जाता हो या जहां से न्याय पैसे वालों के हक में न जाता हो या न्याय बिक न जाता हो? इन सबकी आपस में मिलीभगत रहती है और धन समृद्धि की जो नदी गरीब की ओर बहनी चाहिए वो इनके घर की ओर बहती है। इनमें से किसी की भी चिंता में न गरीब आता है न गरीबी आती है, इन्होंने लोकतंत्र को ऐसा बना दिया है कि गरीब के हिस्से में हमेशा बदनसीबी आती है।’
झल्लन बोला, ‘तो आप कहना चाहते हैं कि इस लोकतंत्र में कुछ नहीं हो पाएगा, न गरीबी मिटेगी न गरीब को भरपेट मिल पाएगा?’ हमने कहा, ‘भले ही कड़वी हो मगर सच्चाई यही है कि इस लोकतंत्र की बुनावट न गरीबी विरोधी है और न गरीब समर्थक। दरअसल हमने लोकतंत्र के नाम पर लूट तंत्र विकसित किया है जिसमें जिसे भी थोड़ा-सा भी पद-कद मिल जाता है वह अपने अस्तित्व के लिए लूट में लग जाता है और दूसरे लुटेरों के साथ गुटबंद हो जाता है।’ झल्लन बोला, ‘तो गरीब जैसे हैं वैसे ही रहेंगे, इनके दिन कभी नहीं फिरेंगे?’ हमने कहा, ‘जब तक लोकतंत्र का ढांचा यही रहेगा तब तक गरीब गरीब ही रहेगा। घर में रहकर भी मरेगा और सड़क पर आकर भी मरेगा। गरीब और गरीबी राजनीति के सदाबहार झुनझुने हैं जिन्हें सब बजाते रहेंगे, घड़ियाली आंसू भी बहाते रहेंगे, मगर इनके नाम पर झोली अपनी ही भरेंगे और अपनी ही किस्मत चमकाते रहेंगे।’
झल्लन बोला, ‘ठीक है ददाजू, अब हम गरीब और गरीबी की बात पर कान नहीं धरेंगे, रास्ते में मिल गयी तो दो घूंट लगाएंगे और घर का रुख करेंगे।’
| Tweet |