सरोकार : महिलाएं राजनीतिक बैठकों से नदारद
अफगानिस्तान में लोग सोशल मीडिया पर विरोध दर्ज करा रहे हैं- इस बात का कि उच्चस्तरीय सरकारी बैठकों में महिलाएं नदारद हैं।
सरोकार : महिलाएं राजनीतिक बैठकों से नदारद |
जिस बात ने अफगानिस्तान में लोगों को विरोध दर्ज कराने पर मजबूर किया, वह दरअसल एक फोटो है जिसमें प्रेजिडेंशियल पैलेस में 12 राजनैतिक नेता बैठक कर रहे हैं और उसमें एक भी महिला शामिल नहीं। बस, इसके बाद आम जनता ने इस बात पर चिंता जताई कि देश की किसी प्रभावशाली और महत्त्वपूर्ण नेता को इस बैठक में शामिल नहीं किया गया।
अफगानी महिलाओं को दो स्तरों पर संघर्ष करना पड़ रहा है-पहला, तालिबान से संघर्ष कर रही हैं; दूसरा, अपनी सरकार से। तालिबान के साथ महिला अधिकारों पर बातचीत करने की बजाय सरकार खुद महिलाओं को बेदखल कर रही है। कई सालों के तालिबान शासन के बाद महिलाओं को बुनियादी अधिकारों, जैसे शिक्षा और स्वतंत्रता से इधर-उधर जाने के अधिकार से भी वंचित कर दिया गया है। लेकिन ऐसा नहीं है कि अफगानिस्तान में प्रभावशाली महिला नेता नहीं। फाजिया कूफी जैसी एक्टिविस्ट नेशनल एसेंबली की वाइस प्रेजिडेंट हैं। संसद के निचले सदन हाउस ऑफ पीपुल्स में 67 महिलाएं हैं।
इससे पहले राष्ट्रपति गनी और उनके प्रतिद्वंद्वी अब्दुल्ला अब्दुल्ला के बीच राजनैतिक समझौते की बैठक में भी कोई महिला नेता शामिल नहीं थी। इस बैठक में समझौते पर हस्ताक्षर हुए हैं और इसका मतलब यह है कि जल्द ही नई कैबिनेट का गठन होगा। क्या इस कैबिनेट में किसी महिला नेता को मौका दिया जाएगा? 2015 में गनी के पहले चुनाव के बाद सिर्फ तीन महिलाओं को कैबिनेट में मंत्री पद के लिए चुना गया था। यूं अफगानिस्तान सरकार तालिबान के साथ बातचीत की तैयारी कर रही है। उनके साथ बातचीत के लिए जो नेगोसिएशन टीम बनाई गई है, उसमें भी महिलाओं की बड़ी संख्या नहीं है। अफगानी मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को अंदाजा है कि कैबिनेट में भी सिर्फ पुरु षों को रखा जाएगा। इससे संदेश जाएगा कि सरकारी नेतृत्व महिलाओं को लेकर गंभीर नहीं-बेपरवाह है। फरवरी में अमेरिका और तालिबान के बीच शांति समझौता हुआ था। इसमें अमेरिकी सैनिकों को हटाए जाने और अफगान सरकार तथा आतंकवादियों के बीच सीधी बातचीत पर सहमति हुई थी। तब सरकार ने बातचीत के लिए 21 प्रतिनिधियों का एक दल बनाया था। उसमें सिर्फ पांच महिलाएं थीं। वैसे अफगानिस्तान ही नहीं, पूरी दुनिया में महिला सांसदों की स्थिति कोई बहुत अच्छी नहीं। इंटर पार्लियामेंटरी यूनियन और यूनाइटेड नेशंस के 1 जनवरी, 2020 तक के आंकड़े कहते हैं कि 152 निर्वाचित राष्ट्र प्रमुखों में से सिर्फ 10 महिलाएं हैं।
दुनिया भर के सांसदों में 75 फीसद पुरु ष हैं। इसकी एक वजह यह है कि महिला नेताओं को लेकर जनता अलग दिशा में सोचती है। 2018 में द गार्डियन नामक अखबार ने इसी पर एक लेख छापा था। इसे ब्रिटिश पत्रकार विव ग्रॉसकोप ने लिखा था। उनकी किताब हाउ टू ओन द रूम, महिलाओं और वक्तृत्व यानी आर्ट ऑफ स्पीकिंग पर केंद्रित थी। लेख में विव ने बताया था कि आम लोग वाचाल औरतों को पसंद नहीं करते। नेताओं में वक्तृत्व का गुण होना चाहिए, और चूंकि इस गुण से भरपूर औरतें पसंद नहीं की जातीं, इसलिए राजनीति में औरतों के लिए टिकना मुश्किल होता है।
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