वैश्विकी : ओली की भारतीय तुरुप

Last Updated 24 May 2020 01:53:11 AM IST

कोरोना वायरस महामारी के बीच दुनिया के दो सबसे निकट पड़ोसी देशों भारत और नेपाल के मध्य सीमा को लेकर तकरार शुरू हो गई है।




वैश्विकी : ओली की भारतीय तुरुप

भारतीय विदेश नीति के लिए यह नया सिरदर्द है। वास्तव में सीमा को लेकर यह विवाद शुरू ही नहीं होना चाहिए था, क्योंकि पिछले दो सौ वर्षो से इस मामले को लेकर दोनों देशों के बीच आमतौर पर सहमति थी। नेपाल की ओर से भारत-चीन-नेपाल की सीमाओं के मिलन बिंदु के पास कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा को लेकर विवाद खड़ा किया जा रहा है। ब्रिटिश भारत और नेपाल के बीच वर्ष 1816 में सुगौली की संधि हुई थी, जिसके तहत नेपाल ने काली नदी के पश्चिमी भूभाग पर अपना दावा छोड़ दिया था। नदी के पूर्व का भाग नेपाल का हिस्सा था। विवादग्रस्त कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा   काली नदी के पश्चिम में आता है। पिछले डेढ़ सौ वर्षो से भारतीय मानचित्र में इन क्षेत्रों को भारतीय भूगाभ में प्रदर्शित किया जा रहा है। अतीत में नेपाल ने इस क्षेत्र पर कभी आपत्ति नहीं की थी। हाल के वर्षो में नेपाल ने इन क्षेत्रों को लेकर अपना दावा पेश किया है। विवाद की जड़ काली नदी और उसकी सहायक नदी के उद्गम स्थल को लेकर है। इस संबंध में दोनों देश अलग-अलग राय रखते हैं।

भारत और नेपाल के बीच यह सीमा विवाद उस समय उभरा जब भारत में जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन के बाद अपना नया राजनीतिक मानचित्र जारी किया। इस मानचित्र में कालापानी, लिम्पियाधुरा और लिपुलेख को भारत का हिस्सा दिखाया गया था। घरेलू मोच्रे पर राजनीतिक विरोध का सामना कर रहे नेपाल के प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली की सरकार ने इस पर आपत्ति व्यक्त की थी। इस महीने के प्रारंभ में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए लिपुलेख दर्रे से होकर जाने वाले मार्ग का वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये उद्घाटन किया था। इसे लेकर पिछले एक पखवाड़े के दौरान दोनों पक्षों के बीच तकरार शुरू हो गई। नेपाल ने सीमा संबंधी अपने दावे पर जोर देने के लिए इस सप्ताह अपना नया राजनीतिक मानचित्र जारी किया है, जिसमें कालापानी, लिम्पियाधुरा और लिपुलेख को नेपाल के भूभाग में दिखाया गया है। इस मानचित्र के आधार पर नेपाल के क्षेत्रफल में 335 वर्गकिलोमीटर का इजाफा हो गया है। नेपाल की इस कार्रवाई का भारत ने प्रतिवाद किया है। विदेश मंत्रालय ने अपनी प्रतिक्रया में कहा है कि मानचित्र बनाकर कोई देश अपना क्षेत्रफल नहीं बढ़ा सकता। नेपाल की इस एकतरफा कार्रवाई को भारत स्वीकार नहीं करता। विवाद में एक और पहलू उस समय जुड़ गया जब भारतीय सेनाध्यक्ष मनोज मुकुंद नरवाणो ने यह बयान दिया कि नेपाल किसी तीसरे पक्ष (चीन) के उकसावे पर ऐसा कर रहा है। वास्तव में वर्ष 2017 में जब डोकलाम में भूटान की ओर से भारत ने चीन की सेना द्वारा किए जा रहे निर्माण कार्य को रोका था, तो चीन की मीडिया ने कालापानी विवाद का हवाला दिया था। चीन की मीडिया का कहना था कि कालापानी विवाद को लेकर नेपाल की ओर से चीन भी ऐसी कार्रवाई कर सकता है।
सीमा संबंधी यह  तकरार भारत और नेपाल के बीच अभी जारी ही थी कि कोरोना वायरस को लेकर नेपाली प्रधानमंत्री ओली ने एक और विवादास्पद बयान दे दिया। उन्होंने नेपाल में कोरोना वायरस के प्रसार के लिए भारत से आने वाले लोगों को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि भारतीय वायरस चीनी या इटली के वायरस से अधिक घातक है। नेपाल ने सीमा संबंधी इस विवाद के बारे में भारत से आग्रह किया है कि इसके समाधान के लिए विदेश सचिव स्तर पर शीघ्र ही वार्ता आयोजित की जाए। भारत भी ऐसी वार्ता के पक्ष में है। तथा लॉकडाउन खत्म होने के बाद इस संबंध में पहल हो सकती है। रक्षा और कूटनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि चीन नेपाल में अपने प्रभाव को बढ़ाने का प्रयास कर रहा है। भारत के साथ सीमा संबंधी विवाद में उलझा चीन नेपाल के जरिये भारत के सामने परेशानी पैदा करने की फिराक में है। हाल के दिनों में लद्दाख और सिक्किम में चीन की सैन्य गतिविधियों में तेजी आई है। चीन नेपाल की घरेलू राजनीति में भी गहरी रुचि ले रहा है। वह नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी में एकता बनाए रखने के लिए विभिन्न धड़ों पर दबाव बना रहा है। उसकी कोशिश है कि प्रधानमंत्री ओली की सरकार बनी रहे। देखने वाली होगी कि अपनी सरकार बचाने के लिए ओली भारत कार्ड को किस सीमा तक खेलेंगे?

डॉ. दिलीप चौबे


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