तमिलनाडु : रजनीकांत बदलेंगे क्लाईमेक्स?
दक्षिण के सुपरस्टार रजनीकांत, जो राजनीति में आने की पूरी तैयारी में हैं, का कहना है कि ‘समय आ गया है कि राज्य की दोनों प्रमुख पार्टियों-अन्ना द्रमुक और द्रमुक-को किनारे करते हुए राज्य में नई राजनीतिक संस्कृति का प्रादरुभाव किया जाए।’
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गौरतलब है कि राज्य की राजनीति के दो दिग्गज नेता-डॉ. एम करुणानिधि और डॉ. जयललिता-क्रमश: 2018 और 2016 में स्वर्ग सिधार चुके हैं। इनके न रहने पर राज्य की राजनीति अनाथ जैसी हो गई है। दोनों ही नेताओं-द्रविड़ मुनेत्र कडगम (द्रमुक) के करुणानिधि और अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कडगम (अन्ना द्रमुक) की जयललिता-ने अपने जीवित रहते जान-बूझकर अपनी-अपनी पार्टी में दूसरी कतार का नेतृत्व तैयार नहीं किया। नतीजतन, द्रविड़ राजनीति के केंद्र इस राज्य में आज एक भी ऐसा नेता नहीं है, जिसका पुख्ता जनाधार हो, राज्य की राजनीतिक नब्ज पर पकड़ हो।
हालांकि सत्ताधारी पार्टी-अन्ना द्रमुक-की कमान सेलम के वरिष्ठ पार्टी नेता मुख्यमंत्री इदाप्पदी के. पलानिस्वामी के हाथों में है, लेकिन उन्हें उस तरह के जनाधार वाला करिश्माई नेता नहीं माना जाता जैसी उनकी नेता जयललिता थीं। सच तो यह है कि पार्टी में ही ओ. पन्नीरसेलवम, ई. मधुसूदनन, एम. थंपीदुरै, सी. पोन्नियन, डिंडीगुल, सी. श्रीनिवासन, पी. थंगामनि, एस. पी. वेलुमनि, डी. जयकुमार समेत तमाम अन्य नेता हैं, जिनका मुख्यमंत्री से कहीं ज्यादा जनाधार है। इसी प्रकार, दिग्गज द्रविड़ नेता एम. करुणानिधि के निधन के साथ ही लगने लगा था कि चेहरा-आधारित द्रमुक राजनीति का राज्य में अवसान हो गया है। हालांकि उनके पुत्र एम. के. स्टालिन ने उनके निधन के पश्चात पार्टी की बागडोर संभाल ली है, लेकिन अपने ही भाई एम. के. अलागिरी से कड़ी चुनौती का डर उनका पीछा नहीं छोड़ रहा। अलागिरी का दक्षिण तमिलनाडु की राजनीति पर खासा प्रभाव है। स्टालिन को अपने बहन कनिमोझि से भी कड़ी चुनौती मिलने का खतरा सता रहा है। कनिमोझि करुणानिधि की लाडली थीं, और राज्य में यकीनन वह भी कुछ महत्त्वाकांक्षा पाले हुए हैं। लेकिन स्टालिन के लिए गनीमत यह है कि अप्रैल, 2019 के संसदीय चुनाव में द्रमुक-नीत मोर्चा ने उनके नेतृत्व में राज्य की 38 में से 37 सीटों पर विजय हासिल की। इस तरह उन्होंने एक नेता के रूप में राज्य की जनता में उम्मीद पैदा की है।
बीते कुछ वर्षो में राज्य का राजनीतिक परिदृश्य ऐसा रहा कि द्रमुक और अन्नाद्रमुक ही एक दूसरे के सामने कड़े मुकाबलों में रहे और पीएमके, एमडीएमके, टीएमसी, कांग्रेस, भाजपा, वामपंथी दल और कुछ अन्य पार्टियां कुछेक सीटें जीत लेने के लिए भी हाथ-पांव मारते दिखाई दीं। इस बीच, एक नई राजनीतिक पार्टी के राज्य की राजनीति में आने की चर्चा ने तमिल राजनीति में भूचाल सा पैदा कर दिया है। हालांकि नई पार्टी की अभी औपचारिक घोषणा नहीं हुई है।
इस बीच, द्रमुक, अन्नाद्रमुक और अन्य पार्टियों का कहना है कि ‘जिस पार्टी का नाम घोषित होना अभी बाकी है’, वह उनके जनाधार पर कोई असर नहीं डालेगी। लेकिन इनके मन में डर समा गया है, और इन पार्टियों ने चुनावी रणनीति तैयार करने के लिए समितियों का गठन कर लिया ताकि नई पार्टी के आने से पैदा होने वाली सुनामी जैसी कोई स्थिति बनने ही न पाए। और सुनामी जैसी स्थिति लाने वाले और कोई नहीं, बल्कि सदाबहार सुपरस्टार रजनीकांत हैं, जिन्हें राज्य के लाखों लोग भगवान की तरह मानते हैं। उन्होंने कहा है कि वह मई, 2021 में होने वाला विधानसभा चुनाव लड़ेंगे क्योंकि उन्हें लगता है कि राज्य में ‘यही समय है, जब नई राजनीतिक संस्कृति की स्थापना’ की जाए। तमिलनाडु में मई, 2021 में 234 सदस्यीय विधानसभा के चुनाव होने हैं। पूरी संभावना है कि रजनीकांत चुनाव में अपने उम्मीदवार मैदान में उतारेंगे। तमिलनाडु की भी यह खासियत आंध्र प्रदेश जैसी ही है कि जब कोई बड़ा अभिनेता चुनाव लड़ता है, तो मतदाता उसके पक्ष में मतदान करते हैं। अन्य राज्यों खासकर कर्नाटक की तरह नहीं कि जब डॉ. राजकुमार ने चुनाव लड़ा तो उन्हें शिकस्त खानी पड़ी। पिछले दो वर्षो के दौरान रजनीकांत संकेत देते रहे हैं कि वह अपने तमिल प्रशंसकों से मिले अपार प्रेम का मूल्य चुकाना चाहते हैं। इसका एकमात्र तरीका राजनीति में आकर तमिलनाडु के अवाम के प्रत्येक वर्ग की सेवा करना है। सच तो यह है कि बीते एक साल के दौरान दो बार ऐसा हुआ कि वह अपनी पार्टी का नाम घोषित करने ही वाले थे कि पीछे हट गए। वही बता सकते हैं कि नाम की घोषणा करने से पीछे क्यों हट गए। बारह मार्च, 2020 को चेन्नई में मीडिया को संबोधित करते हुए अपने संभावित उम्मीदवारों की बाबत बताते हुए पूर्व नौकरशाहों, न्यायाधीशों और पैंतालिस से कम आयु के महिला-पुरुषों से आगे बढ़कर अपने हाथ मजबूत करने का आग्रह किया। रजनीकांत ने स्पष्ट संदेश दिया : ‘सरकार में बदला अभी नहीं तो कभी नहीं। मैं 71 वर्ष का हो चुका हूं, और जीवन के नये पायदान पर हूं। यदि आप को मैं अभी मंजूर नहीं हूं तो आने वाले समय पर कब मंजूर होऊंगा? इस संदेश को राज्य के कोने-कोने तक पहुंचा दें। मुझे दरपेश चुनौती का सामना करने दें। वोट बंटन का तो कोई सवाल ही पैदा नहीं होता।’ उन्होंने आगे कहा, ‘हम दो दिग्गजों के बीच दबकर रह गए हैं..एक दस साल से सत्ता में है (अन्नाद्रमुक) तो दूसरा अपने दिग्गज नेता के निधन के बाद सत्ता में आने का सपना देख रहा है। समय आ गया है कि इन दोनों को दरकिनार करके नई राजनीतिक संस्कृति लाई जाए।’ बहरहाल, मई, 2021 के विधानसभा चुनाव से पहले रजनीतकांत राजनीति में प्रवेश करते हैं तो तमिलनाडु में पैठ बनाने के लिए हाथ-पैर मारती रही भाजपा निश्चित ही उनकी सहयोगी हो सकती है। रजनीकांत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रशंसक हैं। बात पक्की है कि रजनीकांत राजनीति में आने का मन बना चुके हैं। यदि वे इस दिशा में गंभीर हैं, तो अभी से पार्टी घोषित करके जुट जाना होगा। चुनाव के ऐन पहले ऐसा करने पर मनोवांछित परिणाम नहीं प्राप्त कर सकेंगे। तमिलनाडु में चुनाव उत्सव सरीखा होता है। समूचे राज्य के मतदाता मतदान करने को उमड़ पड़ते हैं, रजनीकांत को बिना देर किए अपनी चुनावी मंशा जाहिर कर देनी चाहिए।
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