सरोकार : नींद चुराना, नहीं कोई रोमांटिक बात

Last Updated 19 Apr 2020 12:17:09 AM IST

औरतों के पास आदमियों से ज्यादा काम होता है-अगर हम यह कहें तो ज्यादातर लोगों का यही जवाब होगा कि उनके पास करने को काम ही कितने होते हैं।


सरोकार : नींद चुराना, नहीं कोई रोमांटिक बात

घर पर रहती हैं तो घर के काम ही तो करती हैं। ऑफिस या काम पर जाने वाली दूसरी औरतों के पास घर का काम करने के लिए हाउस हेल्प्स होती हैं। पर यहां काम पर बहस करने की बजाय मुद्दा यह है कि औरतें कम सोती हैं। इस बात पर ध्यान तब गया, जब एक मशहूर वॉशिंग पाउडर ने हैशटैग शेयर द लोड की टैगलाइन के साथ अपना प्रॉडक्ट बेचना शुरू किया।
इस विज्ञापन में महिला अलसुबह वॉशिंग मशीन में कपड़े धोते-धोते झपकी ले रही है। पति देखता है तब उसके साथ कपड़े धोना शुरू करता है। विज्ञापन बताता है कि सत्तर प्रतिशत से ज्यादा औरतें घर के कामों के चलते कम सो पाती हैं, इसलिए औरतों के काम में उनका हाथ बंटाएं। जेन एक्स की औरतें-1965 और 1980 के बीच जन्मी-अपने पहले या बाद की पीढ़ी की औरतों के मुकाबले कम सोती हैं। वे सात घंटे से कम की नींद लेती हैं। जेन एक्स के पुरु षों के मुकाबले भी, उनकी नींद कम है। मेनोपॉज से पहले वाली औरतों और मेनोपॉज के बाद वाली औरतों, दोनों की स्थिति एक जैसी है। बहुत-सी अपनी वित्तीय स्थिति को लेकर चिंतित रहती हैं, बहुत-सी में इस बात का अपराध बोध रहता है कि वे अपने परिवारीजन, अपने चहेते लोगों की अच्छी तरह से देखभाल नहीं कर पाई हैं। कुछ और वजहें भी हैं-अमेरिकन राइटर अदा कालहून की किताब ‘वाई वी कांट स्लीप: विमेन्स न्यू मिडलाइफ क्राइसिस’ बताती है कि मदरिंग, मैरिज और कॅरियर में डूबी औरतें के लिए इनसोमनिया यानी अनिद्रा कोई बड़ी बात नहीं। तमाम तरह की प्रगति के बावजूद औरतों को अपनी परंपरागत भूमिका भी निभानी पड़ती है। वैसे वॉशिंग पाउडर का विज्ञापन घर के काम में कायम गैर-बराबरी के मुद्दे को उठाता है। 2018 में नीलसन के एक सर्वे में 52 प्रतिशत पुरु षों ने कहा था कि घर के काम औरतों या बेटियों की जिम्मेदारी होते हैं। सर्वे किसी छोटे शहर में नहीं, मुंबई, दिल्ली, बेंगलुरू और चेन्नई में किया गया था। ‘ऑर्गेनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक कोऑपरेशन एंड डवलपमेंट’ के आंकड़ों के मुताबिक औरतें एक दिन में पुरु षों के मुकाबले घर के काम में 577 फीसद अधिक समय बिताती हैं। वैसे भी दुनिया भर में ज्यादातर अनपेड वर्क औरतें ही करती हैं।

ऑक्सफेम इंटरनेशनल की एक रिपोर्ट एक डोमेस्टिक वेज को शुरू करने की वकालत करती है, या वह एक मैरिज कॉन्ट्रैक्ट हो, जिसमें अधिक कमाने वाला पार्टनर, दूसरे पार्टनर को अपने वेतन का कुछ परसेंटेज दे। अगर हम ज्यादा कमाने वाले यानी अधिकतर मदरे को इसके लिए राजी भी कर लें तो औरतें खुद इस वेतन को लेने के लिए शायद ही तैयार हों। बाकी, एक आंकड़ा पेश है-30 से 60 साल की औसत औरतें वर्किग वीक में 6।41 घंटे ही सो पाती हैं। तो समस्या काम का बोझ और नींद है। पिछले साल कामकाजी औरतों को उद्योगपति आनंद महिंद्रा ने सलाम किया था। उन्होंने अपने नाती को पालने के दौरान महसूस किया था कि काम और परिवार, दोनों की जिम्मेदारियां साथ-साथ निभाना कितना मुश्किल होता है। इसके बाद उन्होंने ट्विटर पर अपना कमेंट पोस्ट किया और कहा कि कामकाजी औरतों को हमें सलाम करना चाहिए पर सिर्फ  सलाम से काम चलने वाला नहीं है। नींद चुराना कोई रोमांटिक बात नहीं, बहुत बड़ी प्रॉब्लम है। जब मर्द हाथ बंटाएंगे, तभी औरतों को भी पूरी नींद लेने का मौका मिलेगा।

माशा


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