समाज : तनाव घटाने के भी उपाय हों
विश्व के कई सामाजिक वैज्ञानिकों ने कोरोना संक्रमण के कारण आगामी दिनों में इसके सामाजिक दुष्परिणामों को लेकर चेतावनी जारी की है।
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उनका कहना है कि लॉकडाउन का यह समय आगे महिलाओं, बच्चों और बूढ़ों के लिए काफी तकलीफदेय हो सकता है। इससे जुड़े आंकड़े भी बताते हैं कि पिछले दो हफ्तों में ब्रिटेन और स्पेन में 20 फीसद और फ्रांस में घरेलू हिंसा के 30 फीसद मामले बढ़ गए। आस्ट्रेलिया में तो घरेलू हिंसा की दर 40 फीसदी तक पहुंच गई। आस्ट्रेलिया सरकार ने तो घरेलू हिंसा के मामलों में वृद्धि के चलते 15 करोड़ डॉलर का बजट भी अलग से रखा है। डीसी सेफ नामक संस्था का कहना है कि पिछले तीन सप्ताह में घरेलू हिंसा से जुड़ीं फोन्स कॉल दोगुनी हो गई हैं। अमेरिका की स्थिति यह है कि चार में से एक महिला और सात में से एक पुरुष आपस में शारीरिक हिंसा के शिकार हो रहे हैं।
गौरतलब है कि इस समय वैश्विक स्तर पर इसी कोरोना वायरस के संक्रमण के चलते सोशल डिस्टेन्सिंग को लेकर 30 करोड़ से भी अधिक आबादी लॉकडाउन का हिस्सा बनी है। इसी वजह से घर से ऑनलाइन काम कर रहीं महिलाओं पर इस समय बर्क फ्रॉम होम के साथ में घरेलू काम की जिम्मेदारी भी आ गई है। ऐसे में निहायत एकल जिंदगी जीने वाले परिवारों में खासकर महिलाओं पर काम का अतिरिक्त बोझ बढ़ गया है। इस स्थिति में जहां महिलाएं प्रभावित हो रही हैं, वहीं बच्चे भी स्कूल बंद होने से अपने पीयर समूह के साथ अपनी बातें साझा करने के लिए बेचैन हैं। विशुद्ध एकल जीवन जीने वाले परिवारों में महिलाएं दोहरे काम के बोझ के चलते जहां थकावट, चिंता, अवसाद, निराशा जैसी मनोवैज्ञानिक समस्याओं से जुझ रही हैं, वहीं बच्चों में भी ऐसे ही मनोवैज्ञानिक लक्षण दिखाई देने लगे हैं। जरा गौर करें, पहले ऐसी समस्याओं से निबटने के लिए सरकारी सस्थाएं सक्रिय रहती थीं परंतु लॉकडाउन के कारण वे भी ऐसे समय पीड़ितों की सहायता नहीं कर पा रही हैं। इसी वजह से वहां एकल परिवारों में सामाजिक तनावों के बढ़ने की शिकायतें लगातार मिल रही हैं।
वैश्विक स्तर के बाद भारत में भी इस समय दुनिया की सबसे बड़ी आबादी का लॉकडाउन है। आज भारत में तकरीबन एक अरब से भी अधिक लोग सोशल आइसोलेशन में हैं। यहां भी संपूर्ण बंदी के कारण घरेलू हिंसा से प्रभावित महिलाओं और बच्चों से जुड़ी खबरें बाहर आने लगी हैं। राष्ट्रीय महिला आयोग के विगत 24 मार्च से लेकर एक अप्रैल तक के आंकड़े बताते हैं कि इस एक सप्ताह में प्राप्त कुल 257 शिकायतों में से 69 शिकायतें घरेलू हिंसा से जुड़ी थीं। इनमें से अधिकांश शिकायतें उत्तर भारत और पंजाब से मिली हैं। घरेलू हिंसा से जुड़ी इन घटनाओं का स्वरूप बताता है कि इनमें काफी कुछ शिकायतें उन लोगों की ओर से मिली हैं, जो लॉकडाउन के समय घर पर हैं और घर में समय व्यतीत न कर पाने के कारण असहनशीलता के शिकार हो रहे हैं। इससे जुड़े आंकड़ों का विश्लेषण बताता है कि घरेलू तनाव और मारपीट की ज्यादातर शिकायतें उन मध्यम और निम्न मध्यम वर्गीय परिवारों की ओर से आई थीं जो खासतौर पर कारोबार से विरत हैं और घर से कारोबारी काम न होने से चिंता और तनाव के शिकार हो रहे हैं।
वैसे तो आज पूरी दुनिया ही अकेलेपन की शिकार है। मगर परिवार के एकल से आणविक होने से जीवन का यह अकेलापन और अधिक बढ़ गया है। ऐसे परिवारों में सामाजिक संबंधों के भावनात्मक ढांचे की दीवारें पहले से ही दरक रही थीं। ऊपर से यह समय तो बिल्कुल ही सोशल डिस्टन्सिंग और आइसोलेशन का है। ऐसे समय में तो परिवारों के अकेलेपन ने तमाम सामाजिक व्याधियों को पैदा करना शुरू कर दिया है। शायद यह पीढ़ी वह है जिसने आजादी के बाद पहली बार ऐसा सेल्फ लॉकडाउन देखा है। लिहाजा, घरों में कैद रहकर स्वजनों के बीच कम समय में तो स्वस्थ संवाद संभव है, परंतु लंबे समय तक एक ही प्रकार के संवाद की यह कड़ी कमजोर होकर तनाव, चिन्ता और निराशा के स्तर को बढ़ाने लगती है। इसलिए लॉकडाउन के तीसरे सप्ताह के बाद हमें अपने पारिवारिक संबधों के बीच बढ़ती भावनात्मक दूरी को कम करने के स्वस्थ उपाय करने होंगे। देखा जाए तो परिवार के सभी परिजनों को आपस में समझने का यही सही समय है।
ध्यान रहे इस समय परिवार की महिलाओं पर काम का अतिरिक्त बोझ है। उन्हें तनाव से बचाने के लिए उनके साथ घरेलू काम की साझेदारी समय की मांग है। बच्चों के साथ मां-बाप की भूमिका के साथ में उन्हें एक अच्छे शिक्षक और पीयर समूह, दोनों की भूमिका को निभाना भी इस समय बहुत जरूरी है। इसके अलावा बड़े-बूढ़ों का ध्यान रखने के साथ-साथ उनसे लंबे अनुभव बांटना और उनके साथ निरंतर संवाद करना होगा। तभी इस जनरेशन गैप को कम करते हुए हम लॉकडाउन से उभरने वाले सामाजिक तनावों को कम कर सकते हैं। अन्यथा की स्थिति में यह लंबा लॉकडाउन अपने देश में भी कहीं अमेरिका, इटली और फ्रांस जैसे घरेलू तनाव और आक्रामकता के हालात न पैदा कर दें, हमें इस फ्रंट पर भी सजग होकर इस मुद्दे की भी चिन्ता करनी चाहिए।
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