मुद्दा : अब बहुविवाह, हलाला पर नजर

Last Updated 10 Feb 2020 12:25:47 AM IST

केंद्र सरकार का यूं तो पूरा ध्यान खस्ताहाल आर्थिक मोर्चे से पार पाने पर है और उनकी यह कोशिश कितनी सफल रहती है, देखने वाली बात है।


मुद्दा : अब बहुविवाह, हलाला पर नजर

इसके बावजूद सरकार कुछ कड़े फैसले लेने की तैयारी में है, जिनमें जनसंख्या नियंत्रण कानून लाना प्रमुख है। फूलप्रूफ तैयारी पर जोर दिया जा रहा है। तीन तलाक पर रोक की सफलता के बाद अब बहु-विवाह व हलाला जैसी कुप्रथा पर रोक लगाने की तैयारी। फिलहाल यह मामला सुप्रीम कोर्ट में है और याचिकाकर्ता व आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड आमने-सामने हैं।
बता दें कि इस सिलसिले में बीजेपी नेता अिनी उपाध्याय समेत कुछ अन्य याचिकाएं दाखिल की गई हैं। याचिकाओं में कहा गया है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) आवेदन अधिनियम, 1937 की धारा 2 को संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21 और 25 का उल्लंघन करने वाला घोषित किया जाए, क्योंकि यह बहुविवाह और निकाह हलाला को मान्यता देता है। भारतीय दंड संहिता, 1860 के प्रावधान सभी भारतीय नागरिकों पर बराबरी से लागू हों। याचिका में यह भी कहा गया है कि ‘ट्रिपल तलाक’ आईपीसी की धारा 498 के तहत एक क्रूरता है। याचिका में आगे कहा गया है कि निकाह, हलाला आईपीसी की धारा 375 के तहत रेप है और बहुविवाह आईपीसी की धारा 494 के तहत एक अपराध है। याचिका में कहा गया है कि कुरान में बहुविवाह की इजाजत इसलिए दी गई है ताकि उन महिलाओं और बच्चों की स्थिति सुधारी जा सके, जो उस समय लगातार होने वाले युद्ध के बाद बच गए थे और उनका कोई सहारा नहीं था पर इसका मतलब यह नहीं है कि इसकी वजह से आज के मुसलमानों को एक से अधिक महिलाओं से विवाह का लाइसेंस मिल गया है।

वहीं मुस्लिम समुदाय में बहुविवाह और निकाह हलाला के खिलाफ याचिकाओं का विरोध करते हुए ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में एक हस्तक्षेप आवेदन दाखिल किया है। इस अर्जी में बोर्ड ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में सुनवाई नहीं करनी चाहिए क्योंकि बहुविवाह, निकाह हलाला, शरिया कोर्ट, निकाह मुतहा और निकाह मिस्यार पर्सनल लॉ पवित्र कुरान और हदीस से लिये गए हैं और ये मौलिक अधिकारों की कसौटी पर परखे नहीं जा सकते। याचिका में ये भी कहा गया है कि 1997 में अहमदाबाद वुमेन एक्शन ग्रुप बनाम भारत संघ मामले में निकाह हलाला और बहुविवाह जैसी प्रथाओं को चुनौती दी गई थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने तब सुनवाई से इनकार करते हुए साफ कर दिया था कि इन मामलों में विधायिका का क्षेत्राधिकार है। न्यायपालिका इनका न्यायिक परीक्षण नहीं कर सकती हैं। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट पहले से ही पांच-पांच याचिकाओं पर सुनवाई के लिए तैयार हो चुका है-दो पीड़ितों नफीसा बेगम और समीना बेगम द्वारा दायर और दो वकील अिनी उपाध्याय और मौलिम मोहिसिन बिन हुसैन काथिरी के साथ-साथ सामाजिक कार्यकर्ता नाइश हसन की याचिका को भी एक साथ टैग किया था, जिन्होंने बहुविवाह और निकाह-हलाला की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी है। याचिकाओं में कहा गया है कि ये मुस्लिम पत्नियों को बेहद असुरक्षित, कमजोर और उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। याचिकाओं में कहा गया है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) आवेदन अधिनियम, 1937 की धारा 2 को संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21 और 25 की उल्लंघन करने वाली घोषित की जानी चाहिए क्योंकि यह बहुविवाह और निकाह हलाला को मान्यता देता है।
कहा गया है कि बहुविवाह और ‘निकाह हलाला’ भी दो न्यायाधीशों की पीठ (अक्टूबर 2015) के आदेश का हिस्सा थे, जिसने मुसलमानों के बीच तीन तलाक के अभ्यास सहित तीनों मुद्दों को संवैधानिक न्यायालय में भेजा था। उस पीठ में कहा गया था कि अगर तीन तलाक, बहुविवाह और निकाह हलाला के परिणामस्वरूप मुस्लिम समुदाय में लिंग भेदभाव माना जाए या इन्हें संविधान के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं माना जाना चाहिए। भारतीय दंड संहिता, 1860 के प्रावधान सभी भारतीय नागरिकों पर बराबरी से लागू हों। याचिका में यह भी कहा गया है कि ‘ट्रिपल तलाक आईपीसी की धारा 498 के तहत एक क्रूरता है। मौलिम मोहिसिन बिन हुसैन काथिरी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर मुसलमानों में प्रचलित मुताशाह और मिस्यार निकाह को भी रद्द करने की मांग की है। इसके अलावा याचिका में निकाह हलाला और बहुविवाह को भी चुनौती दी गई है। इससे पहले जमीयत-उलमा-ए-हिंद ने बहुविवाह और निकाह-हलाला प्रथाओं का समर्थन किया था।

कुमार समीर


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