बोडो समझौता : बनेगा अमन का माहौल

Last Updated 31 Jan 2020 06:50:55 AM IST

सत्ताइस जनवरी, 2020 को केंद्र सरकार, असम सरकार और नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (एनडीएफबी), ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन (आब्सू), यूनाइटेड बोडो पिपुल आर्गनाइजेशन तथा बोडो टेरिटोरियल काउंसिल जैसे कुछ आंदोलनकारी बोडो समूहों के बीच नया त्रिपक्षीय शांति समझौता होने के बाद से मिली-जुली प्रतिक्रिया मिल रही हैं।


बोडो समझौता : बनेगा अमन का माहौल

बोडो लोगों ने शांति समझौते का स्वागत करते हुए इसे ऐतिहासिक करार दिया है। लेकिन बोडो बहुल क्षेत्रों के जिलों में आबाद गैर-बोडो लोगों ने इस  समझौते पर गुस्से का इजहार किया है। कहा है कि इससे अनेक गैर-बोडो जनजातीय व गैर-जनजातीय समूहों, जिनमें बंगाली, नेपाली, आदिवासी, कोच राजबोंघसिस, मुस्लिम और असमियों का एक हिस्सा शामिल हैं, की राजनीतिक आकांक्षाओं पर तुषारापात हुआ है। उनका मानना है कि बीटीसी का गठन होने के बाद से ‘अल्पसंख्यक बहुसंख्यकों पर राज कर रहे हैं’,जबकि वहां बोडो कुल जनसंख्या का करीब 40 प्रतिशत हैं।

बोडो असम का सबसे बड़ा जनजातीय समूह है। असम की कुल जनसंख्या में 5.4 प्रतिशत हिस्सा हैं, जबकि राज्य की जनजातीय जनसंख्या का 40.90 प्रतिशत हैं। असम नस्ली पहचान को लेकर चलाए गए आंदोलनों के कारण दशकों से असंतोष और हिंसा की गिरफ्त में रहा है। ये आंदोलन मुख्यत: बोडो समुदाय ने चलाए। हिंसा और असंतोष के प्रभाव राज्य के विभिन्न हिस्सों में अभी भी देखे जा सकते हैं। 1966 में बोडो ने दो पृथक राज्यों-‘उदयाचल’ तथा ‘नीलांचल’ बनाए जाने की मांग की। समुदाय चाहता था कि ब्रह्मपुत्र के उत्तरी किनारे पर आबाद बोडो क्षेत्रों को मिलाकर ‘उदयाचल’ तथा ब्रह्मपुत्र के दक्षिणी किनारे पर आबाद बोडो क्षेत्रों को मिलाकर ‘नीलांचल’ राज्य गठित किया जाए। चरण नरजारी और समर ब्रह्म चौधुरी के नेतृत्व में ‘प्लेन्स ट्राइबल काउंसिल ऑफ असम’ (पीटीसीए) नाम से संगठन गठित किया गया। इस संगठन ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सामने अनेक मांग पत्र पेश किए।
जब इंदिरा गांधी ने राज्य के पुनर्गठन तथा सत्ता  के विकेंद्रीकरण का प्रस्ताव रखा तो ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) के तत्वावधान में बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन आरंभ हो गए। इस प्रकार पीटीसीए और केंद्र सरकार  के बीच कोई समझौता नहीं हो सका। नतीजतन, करेंद्र बासुमतारी के नेतृत्व में ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन का गठन हुआ। शुरुआत में इस संगठन की मांग पृथक राज्य की नहीं थी, बल्कि यह बोडो लोगों के समग्र सामाजिक-आर्थिक विकास की बात कहता था। बोडो क्षेत्रों के विद्युतीकरण, बोडो भाषा को आधिकारिक मान्यता देने जैसी मांग करता था। बाद में जब केंद्र सरकार और असम आंदोलन के नेताओं के बीच ऐतिहासिक असम समझौता हुआ तो बोडो समुदाय में बेहद असंतोष व्याप्त हो गया क्योंकि असम समझौते में बोडो समुदाय के हितों के संरक्षण का जिक्र नहीं था। 1986 में उपेंद्र ब्रह्मा की अध्यक्षता में हुए आब्सू के रोवटा सम्मेलन में ‘असम का 50:50 विभाजन’ की मांग संबंधी नारे लगने लगे। उसके बाद से दो असम हिंसा और उग्रवाद की चपेट में ही आ गया।
प्रेम सिंह ब्रह्मा के नेतृत्व में बोडो सिक्यूरिटी फोर्स नाम का संगठन बनाया गया, जिसका 1993 में नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड नाम रख दिया गया। इस बीच, 1993 में केंद्र सरकार तथा आब्सू के बीच प्रथम बोडो समझौता हुआ जिसे बोडोलैंड ऑटोनोमस काउंसिल एक्ट के नाम से जाना जाता है। उसके बाद से हिंसा का सिलसिला शुरू हो गया। सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक, इस दौरान 2823 नागरिकों को जान से हाथ धोना  पड़ा, 239 सुरक्षा सैनिक शहीद हुए और 949 उग्रवादी मारे गए। 1987 से शुरू हुए हिंसक दौर में बीते 34 साल में तीन समझौते हुए। 1993 के बाद केंद्र सरकार और हथियारबंद उग्रवादी गुट बोडो लिबरेशन टाइगर्स फोर्स (बीएलटी) के तत्कालीन मुखिया हेगराम मोहिलरी, जो अभी बीटीसी के मुखिया भी हैं, के बीच समझौता हुआ। रंजन डैमरिवास के नेतृत्व वाला एनडीएफबी इस समझौते से खुश नहीं था। यह संगठन अभी भी राज्य के कुछ हिस्सों में हथियारबंद आंदोलन चलाए हुए है। काफी दिनों तक उग्र आंदोलनकारियों और केंद्र सरकार के बीच युद्धविराम जैसी स्थिति रहने के पश्चात आखिरकार, परस्पर बातचीत का माहौल तैयार हुआ। इस  प्रकार 27 जनवरी, 2020 को तीसरा शांति समझौता हुआ। इसके तहत ‘बोडोलैंड टेरिटोरियल रिजन’ का गठन किया गया है। उम्मीद है कि नये शांति समझौते से बीटीएडी में उग्रवाद का खात्मा हो सकेगा। बोडो लोगों के दिलोदिमाग में छाया असंतोष खत्म हो सकेगा। उम्मीद है कि इससे आने वाले समय में बोडो समुदाय के समग्र विकास की राह प्रशस्त हो सकेगी।
नये शांति समझौते के मुताबिक, प्रस्तावित बीटीसी को ज्यादा स्वायत्तता दी जाएगी। विधायी, प्रशासनिक और वित्तीय मामलों में इसे ज्यादा अधिकार मिलेंगे। इतना ही नहीं, बल्कि बीटीएडी में पुलिस कप्तान, जिलाधिकारी नियुक्त करने से पूर्व राज्य सरकार बीटीसी के मुखिया से परामर्श करेगी। जिलाधिकारी और पुलिस कप्तान अपने प्रशासनिक कार्यकलाप के लिए बीटीसी मुखिया के प्रति जवाबदेह होंगे। कार्बी आंग्लोंग तथा डिमा हसाओ जिले में रहने वाले बोडो लोगों को जल्द ही एसटी का दरजा दिया जाएगा। ज्यादा बोडो आबादी के अन्य क्षेत्रों को प्रस्तावित नये क्षेत्र में शामिल किया जाएगा। इससे बीटीआर के तहत नये बोडो बहुल गांव शामिल किए जा सकेंगे जो पहले बीटीसी का हिस्सा नहीं थे।
सबसे महत्त्वपूर्ण यह कि देवनागरी लिपि में लिखी जाने वाली उनकी भाषा  असम की सहायक आधिकारिक भाषा मानी जाएगी। बोडो अनेक संस्थानों और संगठनों को प्राप्त करने में भी सफल हुए हैं। उपेंद्रनाथ ब्रह्मा के नाम से एक केंद्रीय विश्वविद्यालय उन्हें मिलने वाला है, जो बरामा में स्थापित होगा। एक राष्ट्रीय खेल विश्वविद्यालय, एक रेल कोच फैक्टरी, उदलगुड़ी, बाक्सा और चिरांग में भारतीय खेल प्राधिकरण के केंद्र, तामुलपुर में कैंसर अस्पताल एवं मेडिकल कॉलेज, इंदिरा गांधी नेशनल ट्राइबल यूनिवर्सिटी का क्षेत्रीय परिसर और बोडो मेमोरियल सेंटर उन्हें मिलने वाला है। यकीनन बोडो लोगों के असंतोष के बादल छांटने का कार्य किया गया है।

डॉ. अरूप कु. नाथ
तेजपुर विश्वविद्यालय, असम में पढ़ाते हैं


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