वैश्विकी : कालापानी रहे, दोस्ती भी

Last Updated 17 Nov 2019 12:18:09 AM IST

नेपाल में इन दिनों देश के भूभाग को लेकर राष्ट्रवादी भावनाएं उभार पर हैं। कुछ दिन पहले कई स्थानों पर भारत के मानचित्र को लेकर प्रदर्शन हुए थे। कुछ दिनों बाद ऐसे ही प्रदर्शन चीन के खिलाफ भी हुए थे।


वैश्विकी : कालापानी रहे, दोस्ती भी

जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन के बाद भारतीय सव्रेक्षण ब्यूरो ने देश का प्रामाणिक मानचित्र जारी किया था, जिसमें जम्मू-कश्मीर तथा लद्दाख को अलग-अलग केंद्र-शासित प्रदेशों के रूप में प्रदर्शित किया गया था। पुराने नक्शे के अनुरूप ही लद्दाख केंद्र-शासित प्रदेश में अक्साई चीन को शामिल दिखाया गया, जिस पर चीन का अवैध कब्जा है। चीन ने नये नक्शे को लेकर पुराना राग दोहराया तथा जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन को ही अवैध करार दिया। भारत के इस आधिकारिक बयान पर चीन ने कोई तवज्जो नहीं दी कि भारत की सीमाओं में कोई नया बदलाव नहीं किया गया। चीन की आपत्ति तो हमेशा होने वाली कवायद है, लेकिन नक्शे को लेकर नेपाल में कुछ लोगों की प्रतिक्रिया पर अचरज होता है।
नेपाल सरकार ने नक्शे में भारत-नेपाल और चीन की सीमा के मिलन बिंदु कालापानी को लेकर विवाद खड़ा करने की कोशिश की। 372 वर्ग किमी. वाला राजनीतिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण यह भूभाग भारत के अधीन है, और यहां भारत-तिब्बत सीमा बल की चौकी है। नेपाल का दावा है कि कालापानी उसके धारचूला जिले का हिस्सा है,दूसरी ओर भारतीय नक्शे में यह पिथौरागढ़ जिले के अंतर्गत आता है। नेपाल में विरोध प्रदर्शन पर विदेश मंत्रालय ने संयत रुख अपनाया। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने कहा कि नक्शे में भारत के संप्रभु सीमा क्षेत्र को दर्शाया गया है। उन्होंने कहा कि भारत-नेपाल सीमा के सीमांकन को लेकर कुछ मुद्दे हैं, जिनका समाधान निर्धारित प्रक्रिया के तहत खोजा जा रहा है।

नेपाल में भारत विरोधी छिटपुट प्रदर्शन होना नई बात नहीं है,लेकिन इस सप्ताह कुछ स्थानों पर चीन के खिलाफ भी विरोध प्रदर्शन हुए हैं तथा चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के पुतले जलाए गए। यह विरोध प्रदर्शन इस खबर के बाद हुए कि चीन ने नेपाल की छत्तीस हेक्टेयर जमीन पर अतिक्रमण किया है। नेपाली सव्रे विभाग ने एक दस्तावेज जारी कर बताया कि चीन ने जारी सड़क निर्माण कार्य के दौरान नेपाल के सीमाई चार जिला-क्षेत्रों में अतिक्रमण किया है।
वास्तव में नेपाल में इन विरोध प्रदर्शनों की एक राजनीतिक पृष्ठभूमि भी है। देश की राजनीति में दो खेमे हैं-भारत-विरोधी और चीन-विरोधी। अपनी भौगोलिक अवस्थिति के कारण नेपाल सरकार भी अपने दोनों बड़े पड़ोसी देशों के बीच संतुलन कायम करने का प्रयास करती है। वह दोनों पक्षों से अधिक से अधिक रियायत हासिल करने तथा किसी एक ओर अधिक न झुकने की नीति पर चलती है। भारत और नेपाल के संबंधों का मजबूत आधार सांस्कृतिक, धार्मिक और भाषायी निकटता है, जो नेपाल-चीन संबंधों में दिखाई नहीं देता। लेकिन नेपाल-चीन संबंधों की मजबूती का एक आधार यह है कि चीन विकास परियोजनाओं को समय पर पूरी विसनीयता के साथ अमली जामा पहनाता है।
राजशाही के दौर में भारत-नेपाल संबंधों विशेष तल्खी थी। कारण था कि नेपाल की लोकतांत्रिक शक्तियों को भारत का समर्थन हासिल था। राजशाही के खात्मे के बाद यह उम्मीद थी कि दोनों देशों के संबंध प्रगाढ़ होंगे। लेकिन कालांतर में नेपाल में भारत के प्रति झुकाव रखने वाली नेपाली कांग्रेस की राजनीतिक शक्ति का हृास हुआ। पहले माओवादी सत्ता में आए और इन दिनों केपी शर्मा ओली के नेतृत्व वाली मध्यमार्गी कम्युनिस्ट सरकार है। ओली सरकार चीन से रिश्तों को व्यापक बनाने की कोशिश में हैं। इसी का नतीजा रहा चीनी राष्ट्रपति का हालिया नेपाल दौरा।
भारत के विदेश नीति-निर्धारक नेपाल को अपने प्रभाव के दायरे में रखने के लिए निश्चित ही रणनीति तैयार कर रहे होंगे। चीन के नेपाल में बढ़ते प्रभाव को नियंत्रित रखने का सबसे अच्छा उपाय यही है कि नरेन्द्र मोदी सरकार पड़ोसी देशों की विकास यात्रा को और गति प्रदान करे।

डॉ. दिलीप चौबे


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