बतंगड़ बेतुक : दूल्हा-दुल्हन को आशीर्वाद चाहिए
झल्लन झमकते हुए बोला,‘काहे ददाजू, रिजल्ट आते ही आप तो घोषणा कर दिये थे और दो हिंदू राष्ट्रवादियों की सम्मिलित सरकार तुरत-फुरत बना दिये थे।
बतंगड़ बेतुक : दूल्हा-दुल्हन को आशीर्वाद चाहिए |
सरकार तो अभी तक नजर नहीं आयी, उसने अभी तक अपनी सूरत नहीं दिखायी।’ झल्लन की बात पर गुस्सा तो बहुत आया मगर हमने उसे उसी की तर्ज पर समझाया, ‘हिंदूवादी राष्ट्रवादियों का झंडा तो तू ही उठाये था, तू ही उनके पक्ष में हल्ला मचाये था। अब तू ही देख तेरी चहेती दोनों पार्टियों ने कैसा तगड़ा कलेश किया-त्याग, बलिदान, राष्ट्र प्रेम और जनमत के सम्मान का कैसा अनुपम उदाहरण पेश किया।’
झल्लन बोला, ‘ददाजू, अपनी बुढ़ौती की लाज रखिए, तंज मत कसिए। सच्ची बात ये है कि दोनों धर्मवादी, राष्ट्रवादी, निष्ठावादी पार्टियां हैं, सत्ता का मोह नहीं पालती हैं, वे तो जनसेवा करना चाहती हैं और जनसेवा का उच्चतम अधिकार अपने पास रखना चाहती हैं। उनकी भावनाओं को समझिए, संदेह मत करिए।’ हमने कहा,‘तो तू कहना चाहता है कि दोनों घनघोर राष्ट्रवादी पार्टियां मुख्यमंत्री पद के लिए जिद पर नहीं अड़ीं बल्कि जनसेवा के अधिकार के लिए आपस में लड़ीं?’ झल्लन बोला, ‘ददाजू, अपने घिसे-पिटे पुराने नजरिए से थोड़ा नीचे उतरिए और इस महत्त्वपूर्ण मुद्दे को थोड़ी ऊंची नजर से समझिए। जो पार्टियां मुख्यमंत्री पद के लिए नहीं लड़ सकें, यह पद अपने पास रखने के लिए नहीं अड़ सकें, देश रक्षा के लिए कैसे लड़ेंगी, जनता के अधिकर की रक्षा कैसे करेंगी? भले ही आपकी नजर में यह सत्तालोलुपता का नंग नर्तन था, लेकिन हमारी दृष्टि से यह दो जनसेवी, प्रतिबद्ध, विचारवान पार्टियों के सैद्धांतिक शौर्य का प्रदर्शन था।’ हमने कहा, ‘चल शौर्य ही सही, पर बता कांपा और राकांपा जैसी अराष्ट्रवादी पार्टियों के साथ तेरी सेना का तगड़ा झगड़ा था, फिर वह अपने धुरविरोधियों के पाले में कैसे चली गयी, इसमें कौन-सा सैद्धांतिक शौर्य था? यह तो सिद्धांतों का सीधा-सीधा चौर्य था।’ झल्लन बोला, ‘क्या ददाजू, फिर आप अपनी पर आ गये, फिर समझदारी में मात खा गये। हर पार्टी चाहती है कि उसकी विचारधारा का विस्तार हो। सेना तो कांपा-राकांपा के पास इसलिए गयी कि उन जैसी अराष्ट्रवादी पार्टियों को थोड़ा राष्ट्रवाद पढ़ा सके। उनकी काली सोच पर थोड़ा भगवा चढ़ा सके। ऐसा करना न अवसरवादिता है, न सत्तालोलुपता। यह धर्म कार्य है, जो हर पार्टी को करना चाहिए। सच कहूं ददाजू, इस काम में आपको भी हाथ बंटाना चाहिए।’
हमारे भीतर की सिद्धांतवादिता कसमसाई और हमने झल्लन को झाड़ पिलाई, ‘तू ये बेहूदा बात हमसे कह रहा है, हम ऐसा करेंगे यह उम्मीद भी कर रहा है!’ झल्लन पहले मुस्कुराया फिर हमारे कान में फुसफुसाया, ‘ददाजू, अपनी पुरानी नीति-नैतिकता को कहीं दफना आइए, विचारों के झलपने से बाहर आ जाइए। सिद्धांतों के लिए सत्ता नहीं बनती, सत्ता के लिए सिद्धांत बनते हैं और ये सिद्धांत सत्ता के हिसाब से ही बनते-बिगड़ते हैं। ये सिद्धांत आपकी समझ में जितनी जल्दी आ जाएंगे, उतनी जल्दी आप शांति पा जाएंगे। नहीं तो दुनिया अपने चलन के हिसाब से चलती रहेगी और आप सिद्धांतों की पुटलिया पकड़े कुड़मुड़ाते रहेंगे, उधर नये सिद्धांत सिरे चढ़ाते रहेंगे और आप फालतू में बड़बड़ाते रहेंगे।’ हमने कहा, ‘ये बेमेल, बेसिद्धांत सरकार कैसे चलेगी, कब तक टिकेगी?’
वह बोला, ‘जब तक चलेगी तब तक चलेगी, जब तक टिकेगी तब तक टिकेगी। सरकारें कौन-सी हमेशा के लिए आती हैं, वे आती हैं और जाती हैं। जिन्हें टिकना हो टिक जाती हैं, नहीं तो गिर जाती हैं।’ हमने कहा, ‘पर यह तो सोच इससे राज्य का क्या हाल होता है, जनता को कितना नुकसान होता है।’ झल्लन व्यंग्य से मुस्कुराया,‘ददाजू, जनता का क्या है, जैसा करेगी वैसा भरेगी। जनता किसी को स्पष्ट बहुमत नहीं देगी तो उठापटक तो मचेगी।’
हम कुछ कहते इससे पहले ही झल्लन फिर बोला, ‘छोड़िए ददाजू, ये सारी बातें परे खिसकाइए, शुभ विवाह का आनंद उठाइए।’ हमने सवालिया मुद्रा में पूछा, ‘शुभ विवाह?’ वह बोला, ‘और क्या, अंतर्जातीय शुभ विवाह। एक ओर दूल्हा बना तन्नाया हुआ हिंदुत्व होगा, दूसरी ओर दुल्हन बनी संजी-संवरी, शरमाती-सकुचाती धर्मनिरपेक्षता होगी। दुल्हन पंजे उचकाकर दूल्हे के गले में वरमाला डाल रही होगी और गर्दन झुकाकर दूल्हा दुल्हन की मांग में भगवा सिंदूर भर रहा होगा। कभी एक-दूसरे की शक्ल तक न देखने वाले घराती-बराती गलबहियां कर रहे होंगे, कौन क्या भेंट देगा, कौन क्या लेगा इस पर चिमगोइयां कर रहे होंगे। सोचिए, कितना मन मोहक नजारा होगा..।’ हमने कहा, ‘तुझे क्या लगता है, गठबंधन हो जाएगा, हमें तो लगता है मंडप में आने से पहले ही दूल्हा-दुल्हन का तलाक हो जाएगा।’ झल्लन बोला, ‘शुभ-शुभ बोलिए ददाजू, इतने नाज-नखरे, इतनी रूठन-मनावन और इतनी समझावन-बुझावन के बाद छोरा-छोरी का रिश्ता पक्का हुआ है, उनके मन का मैल साफ हुआ है। और आप हैं कि शंका पाल रहे हैं, आगुन का विध्न डाल रहे हैं। चलिए, उठिए, मंडप तक हो आयें, वर-वधू को आशीर्वाद दे आयें।’
आशीर्वाद देने तो क्या जाते, मगर हम झल्लन की बात पर मुस्कुराये और उठकर घर चले आये।
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