बतंगड़ बेतुक : ऊपरवाले एक दिया दिल में जला दे
झल्लन हमारे पास आया तो कुछ कहते-कहते ठिठक गया। हमने सर उठाकर उसकी ओर सवालिया नजर से देखा तो बोला,‘क्या बात है ददाजू, आप दुखी लग रहे हो। लगता है जैसे बिन सोये कई दिन से जग रह हो।’
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हमने कहा,‘हमारी छोड़ अपनी बता आज क्या करके आया है, कौन-सी नई खबर लाया है?’ वह बोला,‘क्या ददाजू, आप ये भी याद नहीं रखे हो कि आज दिवाली है और आज अयोध्या दुल्हन सी सज रही है, अपने राम की प्रतीक्षा कर रही है। हम सोचें कि आपको दिवाली की मुबारकबाद दे आयें और आप से थोड़ा ज्ञान-ध्यान ले आयें।’ हमने कहा,‘हम क्या तो मुबारकबाद लेंगे और क्या तुझे ज्ञान-ध्यान देंगे। हमारी समझ में नहीं आ रहा है कि आज देश में जो हो रहा है उसे सहें तो सहें कैसे और उस पर कुछ कहें तो कहें कैसे?’
दरअसल, हमें कमलेश तिवारी की हत्या परेशान कर रही थी, इसके परिणामों की आशंका हमें भय से भर रही थी। अब तक जो असहिष्णुता लिंचिंग से दर्शायी जा रही थी और जिसके साथ गहरी नफरत फैलायी जा रही थी, उससे कई गुना ज्यादा असहिष्णुता तिवारी की गला रेताई में दिखाई गयी थी। सीधे-सीधे नफरत की नई आग भड़कायी गयी थी। झल्लन राम और अयोध्या की बात उठा रहा था और इधर हमें भारत का भविष्य डरा रहा था। हमने कहा,‘आखिर कमलेश तिवारी को क्या जरूरत थी पैगम्बर के खिलाफ भड़काऊ बयान देने की, आग में घी डालने की?’
झल्लन बोला,‘तो आप इसलिए परेशान हैं, मगर हम आपकी इस परेशानी पर हैरान हैं। ददाजू, धर्म-मजहब के झगड़े हजारों साल से चले आ रहे हैं और आगे भी हजारों साल तक चलेंगे, ये न किसी के रोके रुके हैं, न किसी के रोके रुकेंगे। इनकी चिंता मत कीजिए, इस मसले को ऊपरवाले पर छोड़ दीजिए।’ हम झल्लाए, ‘तू कैसी बात करता है झल्लन, इसमें ऊपरवाला कहां से आ गया? न इसमें ऊपरवाले का कोई हाथ है, न नफरत फैलाने वाले कुकर्मो में उसका कोई साथ है। ये तो सिर्फ जाहिल इंसानों का काम है और फैलायी जा रही सारी नफरत सिर्फ और सिर्फ इंसानी करतूतों के नाम हैं। सरकार को कुछ करना चाहिए, अपना कर्तव्य निभाना चाहिए।’ झल्लन हंसा,‘जब देश का मीडिया, पढ़े-लिखे बुद्धिजीवी, चिंतक-विचारक इस मसले को कोई मुद्दा नहीं बना रहे हैं,सरकार पर कोई दबाव नहीं बना रहे हैं तो सरकार क्या करे,आप फालतू में इस पर अपना सर क्यों खपा रहे हैं? हमारा तो स्पष्ट मानना है कि जो कुछ भी हो रहा है, ऊपरवाले की मर्जी से ही हो रहा है।’
हमने कहा,‘तो तू यह मानता है कि कोई ऊपरवाला है जिसकी मर्जी से यह सब हो रहा है, और जो ऊपरवाला है वही इंसानों के दिलों में नफरत के बीज बो रहा है?’ झल्लन बोला, ‘आप भी ददाजू, कभी-कभी बेसिर-पैर की बात करने लगते हो। कोई पैगम्बर के नाम पर नफरत फैलाता है तो कोई भगवान के नाम पर द्वेष जगाता है। ये कौन हैं? ऊपरवाले ही तो हैं जिनकी खातिर यह सब होता है, इसीलिए हम कहते हैं जो भी होता है ऊपरवाले की मर्जी से होता है।’
हम सोचने लगे थे कि इंसानों की फितरत भी क्या है। उन्होंने ऊपरवाले को अपनी-अपनी तरह से गढ़ लिया है, ऊपरवाले की जो भी इबारत हो उसे अपनी-अपनी तरह से पढ़ लिया है। किसी के लिए ऊपरवाला ईश्वर है, किसी के लिए अल्लाह है, किसी के लिए गॉड है, किसी के लिए अखंड अकाल है। किसी ने उसे किसी भगवान में प्रतिष्ठित कर दिया है, किसी ने उसे किसी पैगम्बर में प्रतिष्ठित कर दिया है, किसी ने उसे किसी गुरु में प्रतिष्ठित कर दिया है। सबने उसे अपनी-अपनी समझ या अपनी-अपनी नासमझी से अपनी अलग-अलग पोथियों और ग्रंथों में कैद कर दिया है, उसे इन्हीं तक सीमित कर दिया है। जैसे ऊपरवाला उनकी अपनी निजी मिल्कियत हो और अगर कोई और उस पर अपना दावा करेगा तो वह कुफ्र, पाप करेगा और अगर कोई उनकी मिल्कियत के विरुद्ध कोई बात करेगा या इसमें दखलअंदाजी करेगा तो वह बेमौत मरेगा।
झल्लन हमें मौन देखकर बोला,‘लगता है आप भी हकीकत जान गये हैं और हम जो कह रहे हैं, उसे मान गये हैं।’ हमने कहा,‘अगर ऊपरवाला सचमुच होता और सचमुच उसकी मर्जी चलती तो सबसे पहले अपने दूतों, एजेंटों के दिल-दिमाग साफ करता, इनके पापों को कभी माफ नहीं करता। इसीलिए हम कहते हैं, कहीं कोई ऊपरवाला नहीं है, इंसानों से बाहर इंसानियत का कहीं कोई रखवाला नहीं है। ऊपरवाले के नाम पर जो कुछ होता है वह इंसान द्वारा ही होता है, अच्छा या बुरा सब इंसान का काम होता है। ऊपरवाला तो इंसानी राजनीति और क्षुद्रता का मुहरा है और उसके नाम पर सिर्फ कुहरा ही कुहरा है। झल्लन बोला, ‘छोड़िए ददाजू, अपनी चिंता और अपना यह ज्ञान-ध्यान परे सरकाइए, आज दिवाली है सो खुशियां मनाइए।’
पर हम प्रार्थना कर रहे थे कि हे ऊपरवाले, अगर तू सचमुच है तो ईश्वर-अल्लाह, धर्म-मजहब, संत-महंत, पीर-पैगम्बर का अपना यह जंजाल हटा दे। हो सके तो लोगों के दिल में आपसी मोहब्बत का एक दिया जला दे।
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