सरोकार : सबसे बेहतर निरोधक औरत की पढ़ाई-लिखाई
औरतों के प्रजनन के अधिकार पर बात बार-बार उठ आती है। हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि हर चार में से एक गर्भावस्था अनइंडेटेड होती है और इन अनापेक्षित गर्भावस्था वाली 65 फीसद महिलाएं गर्भनिरोध के किसी उपाय का इस्तेमाल नहीं करतीं या पुराने तौर-तरीके अपनाती हैं।
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संगठन ने निम्न और मध्य आय वाले 36 देशों की लगभग 10 हजार औरतों पर अध्ययन के बाद यह निष्कर्ष दिया। ये औरतें 15 से 49 वर्ष के आयु के बीच की हैं। दुखद यह है कि यह किसी एक देश की कहानी नहीं है।
एक अध्ययन बताता है कि भारत में हर सात में से एक महिला को गर्भावस्था के दौरान अस्पताल नहीं ले जाया जाता। इनमें से आधी औरतों को अस्पताल में उचित स्वास्थ्य देखभाल सिर्फ इसलिए नहीं मिलती क्योंकि उनके पति या परिवार वाले इसे जरूरी नहीं समझते। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे 4 के डेटा में यह भी बताया गया है कि गांवों में सिर्फ 16.7% औरतों को देखभाल मिल पाती है, जबकि शहरी इलाकों में 31.1% औरतों को। इस बारे में डब्ल्यूएचओ का कहना है कि हर गर्भवती औरत कम से कम चार बार अस्पताल जरूर जाना चाहिए। इसमें पहला दौरा गर्भावस्था के पहले तीन महीने में होना चाहिए। पर यह तब होगा, जब घर वाले और पति इसे जरूरी समझेंगे। इसके लिए पति-परिवार को शिक्षित होना चाहिए उसे बीवी और होने वाले बच्चे-चाहे उसका जेंडर कोई भी हो-की पूरी चिंता होनी चाहिए।
चिंता हो तो पैसे भी होने चाहिए। मतलब कई फैक्टर्स हैं, जो काम करते हैं। अक्सर औरतें अपनी सेहत के बारे में फैसला होने की स्थिति में ही नहीं होतीं। इसका फैसला परिवार या पति करता है। न्यूयार्क के एशिया पेसेफिक जरनल ऑफ पब्लिक हेल्थ में छपे एक आर्टकिल-विमेन्स ऑटोनॉमी इन डिसिजन मेकिंग फॉर हेल्थ केयर इन साउथ एशिया-में कहा गया है कि भारत में 48.5% औरतें अपनी सेहत के बारे में खुद फैसले नहीं लेतीं। इसकी वजह यह भी है कि शहरी इलाकों में सिर्फ 14.7% और ग्रामीण इलाकों में 24.8% औरतें लेबर फोर्स का हिस्सा हैं। अब जब वह कमाती नहीं तो कई बार फैसले लेने के लिए आजाद भी नहीं होतीं। आर्थिक आजादी दूसरी सभी तरह की आजादियों की शुरु आत है।
अनापेक्षित गर्भावस्था, अक्सर औरत की मर्जी के खिलाफ भी होती है। चूंकि गर्भनिरोध के उपायों पर पुरु षों का हुक्म ही चलता है। पर वे खुद इसका इस्तेमाल नहीं करते। एनएफएचएस के चौथे दौर के आंकड़े कहते हैं कि पुरुष अब भी सोचते हैं कि परिवार प्लान करने का फैसला औरत का ही है। और जो औरतें गर्भनिरोधकों का इस्तेमाल करती हैं, वे सेक्सुअली रिलेशनिशप्स को लेकर बहुत कैजुअल हो जाती हैं, फ्री हो जाती हैं जबकि 83 फीसद शादीशुदा औरतें कहती हैं कि फैमिली प्लान करने का फैसला संयुक्त होता है। एनएफएचएस के सर्वेक्षण में यह भी कहा गया है कि पुरु षों के गर्भनिरोधकों का इस्तेमाल बहुत ही कम होता है। ये दो तरीके नसबंदी और कंडोम हैं। इन दोनों का जोड़ निकाला जाए तो इनका उपयोग लगभग 12 फीसद किया जाता है। गांवों में तो यह दर सिर्फ 9 फीसद है। यह माना जाता है कि कंडोम आनंद को बेदम करता है, और नसबंदी..वह तो मर्दानगी पर बट्टा है। जैसा कि कनाडा की मशहूर फेमिनिस्ट स्कॉलर मिशेल मर्फी कहती हैं,‘आदमजात के लिए दुनिया का सबसे अच्छा कॉन्ट्रासेप्टिव है, औरतों के साथ आदमियों की पढ़ाई-लिखाई।
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