गांधी जयंती : अहिंसा से बचेगी मानवता
आज महात्मा गांधी को हम याद कर रहे हैं। पूरी दुनिया के लोग आज गांधीजी की 150वीं जयंती मना रहे हैं। विश्व 2 अक्टूबर को अहिंसा दिवस के रूप में मनाता है।
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यह हमारे लिए गौरव की बात है, साथ ही इससे साबित होता है कि गांधी की स्वीकार्यता पूरी दुनिया में है। गांधीजी ने दुनिया को अहिंसा का जो मार्ग दिखाया, वह आज के समय में और प्रासंगिक हो गया है। इसका निहितार्थ यह है कि गांधी के रास्ते की प्रासंगिकता मौजूदा दौर में है और भविष्य में भी रहेगी। इसकी अपनी वजह भी है। गांधी द्वारा प्रयोग की गई अहिंसा का सिद्धांत पूरी मानवता के लिए वरदान है। गांधीजी की अहिंसा व्यावहारिक है, जो प्रत्येक व्यक्ति को निर्भीक बनाता है। यह राष्ट्र को सबल और सक्षम बनाता है।
गांधीजी ने अहिंसा को अपनी संस्कृति से ग्रहण किया है। भारत की प्राचीन संस्कृति में अहिंसा को प्रमुख स्थान दिया गया है। अगर हम अहिंसा को अपनी संस्कृति की धुरी मानें, तो यह वाजिब ही होगा। सबसे पहले महाभारत के अनुशासन पर्व में अहिंसा का उल्लेख आता है। जहां ‘अहिंसा परमो धर्म:’ की बात कही गई है। दरअसल, अहिंसा सभी धर्मो का आधार है। जैन और बौद्ध धर्म में तो अहिंसा को सबसे प्रबल माना गया है। आज हमने अपनी जरूरतों को को बढ़ा दिया है। इसके परिणामस्वरूप हम दूसरों के हक की चीजों पर कब्जा कर रहे हैं। संसाधन को जुटाने के प्रयास में हमने अपना मूल माननीय स्वभाव भुला दिया है। आज हम अपनी आवश्यकता पूरी करने के लिए इतने उग्र हो गए हैं कि किसी भी कीमत पर संसाधन को पाने से पीछे नहीं हटना चाहते हैं। इस प्रक्रिया में प्रकृति को तो नष्ट कर ही रहे हैं, साथ-साथ मनुष्य से भी हम उसकी जरूरत का हक भी छीनते जा रहे हैं। इस पूरी प्रक्रिया ने व्यक्ति समाज, राष्ट्र और दुनिया भर के लिए प्रतिस्पर्धा का माहौल बना दिया है।
इस प्रतिस्पर्धा से युद्ध जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है। गांधीजी कहते हैं, ‘व्यक्ति की जरूरत के लिए प्रकृति के पास पर्याप्त संसाधन हैं, लेकिन उसकी लिप्सा को प्रकृति पूरी नहीं कर सकती है।’ आज पूरी दुनिया में आपाधापी का माहौल नजर आता है। यह माहौल सभी राष्ट्रों ने मिलकर बनाया है क्योंकि विकसित देश, अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए सामरिक दृष्टि से व बाजार के रूप में मजबूत करना चाहता है। विकास की प्रक्रिया में लगे अन्य देश भी इस चक्रव्यूह में फंसे नजर आते हैं। सभी देश शांति को नजरअंदाज तो नहीं करते पर उन्होंने चाहे-अनचाहे अपने लिए प्रतिस्पर्धा का माहौल स्वत: ही चुन लिया है। अहिंसा की शक्ति सवरेपरि है। गांधीजी कहते हैं, ‘अहिंसा सबसे ऊंची श्रेणी का सक्रिय बल है। वह आत्मा का बल है, अथवा हमारे भीतर रहने वाला ईश्वरीय बल है। अपूर्ण मानव उस दिव्य बल को पूर्णतया समझ नहीं सकता, वह पूर्ण तेज को सहन करने में समर्थ नहीं है। परन्तु जब उसका अणु जितना भी अतिसूक्ष्म अंश भी हमारे भीतर सक्रिय बनता है, तब वह आश्चर्यजनक परिणाम लाता है। हम स्वभावत: अहिंसक होते हैं। मनुष्य और पशु का यह सबसे बड़ा फर्क है।’
दरअसल, गांधीजी ने सम्पूर्ण स्वाधीनता आन्दोलन में जनमानस को लड़ाई लड़ने के लिए तैयार किया। गांधी का सम्पूर्ण स्वाधीनता आन्दोलन अहिंसक था। दक्षिण अफ्रीका से लेकर भारत तक की यात्रा में गांधीजी ने अहिंसा को अपना सबसे प्रमुख शस्त्र बनाया। दुनिया को अहिंसा की शक्ति से परिचय करवाया। दुनिया को यह बताया कि अहिंसा कायरों का नहीं अपितु उच्च नैतिक बल वाले बहादुरों का कार्य है। 1 मई 1947 के हरिजन सेवा के अंक में गांधीजी लिखते हैं, ‘तलवार के जोर से अगर कोई आदमी कुछ ले लेता है, तो उससे बड़ी दूसरी तलवार से यह छीन लिया जाता है। हिन्दुस्तान ने दुनिया को नया रास्ता बताया है, यही हमारी स्वतंत्रता का कारण है। वैसे तो दुनिया में तलवार का बदला तलवार से लेने वाले लोग बहुत होते हैं। बदला क्या, वे तो एक के बदले दस को काटने की बात करते हैं। मैं कहूंगा, दस नहीं एक बदले सो काटो, फिर भी शांति नहीं होगी, मारकर मरने में कोई बहादुरी नहीं है। वह झूठी बहादुरी है। न मारकर मरने वाला ही सच्चा शहीद है।’
दरअसल, मानव की सबसे बड़ी शक्ति उसके अहिंसक होने में है। हिंसा कमजोर लोगों की परिचायक है। विश्व भर की शांति का रास्ता अहिंसा धर्म ही है। हिंसा, मनुष्य के अस्तित्व को ही संकट में डालने की स्थिति पैदा कर देती है। युद्धों का इतिहास तो हम बचपन से पढ़ते आ रहे हैं। युद्ध का आकलन किया जाए तो हमें क्या प्राप्त हुआ? तो हम हिसाब लगा सकते हैं कि जिस मनुष्य की कीमत पर हमने जीत या बढ़त पाई है, वह निर्थक था। आज हम चारों तरफ अणु और परमाणु बम की चर्चा सुनते हैं। अणु-परमाणु बम का असर भी हमने विश्व युद्ध में देख लिया है। वर्तमान में इसका खतरा और बढ़ा है। आज सभी को इस जैसे संहारक अस्त्र की निर्बलता को समझना चाहिए। जो मनुष्य के लिए खतरा हो वह सबसे दुर्बल चीज है। एक अंग्रेज पत्रकार ने गांधीजी से सवाल किया, ‘अणु बम के बारे में आपका क्या ख्याल है? गांधीजी कहते हैं, ‘ओह! इस मामले में तो आप सारी दुनिया के सामने डंके की चोट पर ऐलान कर सकते हैं कि मेरे विचार में अंतर आना असंभव है। आदमियों, औरतों और बच्चों का आम खून करने के लिए अणुबम के प्रयोग को मैं विज्ञान का बहुत बड़ा राक्षसी प्रयोग समझता हूं।’ फिर पत्रकार ने पूछा, ‘तो फिर इसका इलाज क्या है? क्या इसने अहिंसा को खत्म नहीं कर दिया है। गांधीजी कहते हैं, ‘नहीं उल्टे अब तो यही दुआ है कि यही एक ऐसी चीज हैं, जिसे अणुबम खत्म नहीं कर सकता। हिरोशिमा पर अणुबम गिरने और उसके बरबाद होने की खबर पाकर मैं जरा भी विचलित नहीं हुआ। उल्टे मैंने अपने मन में यही कहा कि यदि दुनिया अब भी अहिंसा को नहीं अपनाती तो मानव जाति आत्महत्या से नहीं बचेगी।’ आज गांधी को याद करने और उनके रास्ते पर चलने का बड़ा अवसर है। अगर हम उनके सिद्धांतों को आत्मसात कर सकें, तो यह मानवता की सबसे बड़ी सेवा होगी।
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