पाकिस्तान : गुमराह करते इमरान

Last Updated 16 Sep 2019 07:08:55 AM IST

पाकिस्तान में प्रधानमंत्री इमरान खान को दुर्भाग्यशाली मानने वालों की संख्या बढ़ रही है। 5 अगस्त से वे जो कुछ बोल रहे हैं, उससे उनके मानसिक असंतुलन का पता चलता है किंतु उसके पीछे रणनीति होती है।


पाकिस्तान : गुमराह करते इमरान

यह बात अलग है कि उनकी सारी रणनीति उल्टी पड़ रही है। अभी रूस के चैनल आरटी को उन्होंने एक साक्षात्कार दिया है। इसमें उन्होंने कहा कि 1980 के दशक में पाकिस्तान  मुजाहिद्दीन लोगों को प्रशिक्षण दे रहा था ताकि जब सोवियत संघ, अफगानिस्तान पर कब्जा करेगा तो वे उनके खिलाफ जेहाद करें। इनके लिए पाकिस्तान को पैसा अमेरिका की एजेंसी सीआईए द्वारा दिया गया। उनकी पीड़ा है कि एक दशक बाद जब अमेरिका, अफगानिस्तान में आया तो उसने उन्हीं समूहों को आतंकवादी नाम दे दिया। वे कह रहे हैं कि पाकिस्तान ने तो अमेरिका की मदद की और आज वही पाकिस्तान पर आतंकवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगा रहा है। इमरान खान कह रहे हैं कि यह सोचकर बड़ा अजीब लगता है कि हमने साथ देकर क्या पाया है? पाकिस्तान को इससे अलग रहना चाहिए था, क्योंकि अमेरिका का साथ देकर हमने इन समूहों को पाकिस्तान के खिलाफ कर लिया। लगभग हमने 70 हजार लोगों की जिंदगी गंवाई, अर्थव्यवस्था को 100 अरब डॉलर से ज्यादा का नुकसान हुआ।आखिर इमरान ने रूसी टीवी से इस तरह की बात क्यों की? उन्होंने जो कहा वह कितना सच है?

अमेरिका यात्रा में भी इमरान खान ने अपने देश में 35 से 40 हजार हथियारबंद जेहादी होना स्वीकार किया था। उनकी रणनीति विश्व समुदाय खासकर अमेरिका और पश्चिमी देशों की सहानुभूति पाने की रही है। वे यह संदेश देना चाहते हैं,‘हमारा तो कोई दोष है नहीं, हम स्वयं इनसे लड़ रहे हैं और जन-धन की क्षति उठा रहे हैं।’ उनको उम्मीद थी कि अमेरिका में इस बयान का अच्छा असर होगा। तालिबान से बातचीत तक उनको उम्मीद थी कि अमेरिका उनका अहसानमंद होगा। पर ट्रंप ने वार्ता ही नहीं तोड़ी है अफगानिस्तान सरकार की इस बात को स्वीकार किया है कि पाकिस्तान से पोषित और संरक्षित आतंकवादी सीमा पार कर हमले कर रहे हैं। जम्मू-कश्मीर पर भारत के निर्णय से विचलित पूरा पाकिस्तान इमरान को कोस रहा है। यह स्थिति उन्होंने स्वयं पैदा की है। यदि वे केवल भारत की आलोचना करने तक सीमित रह जाते तो पाकिस्तान के लिए इतना बड़ा मुद्दा नहीं बनता। आखिर गिलगित-बाल्तिस्तान की संवैधानिक स्थिति में बदलाव का भारत ने विरोध किया, लेकिन इमरान सरकार की तरह अतिवाद तक नहीं गया। इमरान ने सेना के दबाव में इसे इतना आगे बढ़ा दिया कि उनके पास पीछे हटने का कोई सम्मानजनक कोना नहीं बचा है। उनके बयानों से ही भय पैदा हुआ कि नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में बदला हुआ भारत पाक अधिकृत कश्मीर पर कब्जा करने के लिए बालाकोट से काफी बड़ी कार्रवाई करेगा। चीन को छोड़कर कोई देश उसके साथ नहीं।
इमरान एवं उनके साथी हर तरफ से नाउम्मीद होने के बाद मझधार से निकलने के लिए हाथ-पैर मार रहे हैं। रूस ने जम्मू-कश्मीर में किए गए संवैधानिक एवं राजनीतिक परिवर्तन का मुखर समर्थन किया है। इसमें इमरान ने हारे को हरिनाम की तरह चारा फेंका है कि अमेरिका ने रूस के खिलाफ हमारे यहां मुजाहीद्दीन तैयार किए जिसमें हमारे देश को सहयोग नहीं करना चाहिए था। यह रूस को समझाने की कोशिश है। राष्ट्रपति पुतिन केजीबी से संबद्ध रहे हैं। उनसे क्या छिपा है। पूरे शीतयुद्ध में पाकिस्तान अमेरिका के साथ रहा। सच यह है कि पाकिस्तान राष्ट्र-राज्य की नींव जिस इस्लाम मजहब के आधार पर पड़ी उसमें मुजाहिद्दीन तैयार करना एवं जेहाद के नाम पर कम्युनिस्ट शासन से युद्ध करना उसकी विचारधारा का हिस्सा था। सोवियत सेनाओं के साथ लड़ाई के नाम पर पाकिस्तान ने इस्लामी जगत से भी काफी सहायता ली। इस्लामी देशों से लड़ाके और धन आने लगे। सोवियत संघ की वापसी के बाद पाकिस्तान ने अपने द्वारा गठित किए गए तालिबान को अफगानिस्तान की सत्ता पर बिठा दिया। तालिबान के माध्यम से अफगानिस्तान पाकिस्तान का उपनिवेश बन गया।
तो इमरान एकपक्षीय बात बोल रहे हैं। वे ़कह रहे हैं कि पाकिस्तान ने 100 अरब डॉलर की क्षति उठाई। 2 जनवरी 2018 को डोनाल्ड ट्रंप ने पाकिस्तान को दी जाने वाली 255 मिलियन डॉलर की सैन्य मदद को रोकते हुए यह बताया था कि अमेरिका पिछले 15 सालों में पाकिस्तान को 33 अरब डॉलर से ज्यादा की सहायता दे चुका है। पाकिस्तान का रक्षा बजट सालाना 8.7 अरब डॉलर है, जिसका चार गुना वह 15 साल में अमेरिका से वसूल चुका है। अगर शीतयुद्धकाल की घोषित रकम को देखें तो अमेरिका के एक रिसर्च थिंक टैंक सेंटर फॉर ग्लोबल डवलवमेंट की रिपोर्ट में बताया गया है कि 1951 से लेकर 2011 तक अलग-अलग मदों में अमेरिका ने पाकिस्तान को 67 अरब अमेरिकी डॉलर की मदद दी है। 11 सितम्बर 2001 के हमले के बाद अमेरिका ने पाकिस्तान के लिए अपना खजाना खोल दिया। इमरान आज स्वयं को पीड़ित बता रहे हैं, लेकिन सच यही है कि उस समय के शासक जनरल परवेज मुशर्रफ ने अमेरिका को अपनी भूमि का इस्तेमाल करने की छूट देकर पाकिस्तान को बचा लिया और अरबों डॉलर से देश का भला किया।ये मदद इसलिए दी गई कि  पाक अपने यहां आतंकवाद के तंत्र को खत्म करेगा पर उसने अमेरिका को धोखा दिया।
अमेरिका ने शीतयुद्ध काल में इतने हथियार और सैन्य सामग्री पाकिस्तान में डाल दिया जिसकी उसे कल्पना नहीं थी। पाकिस्तान ने उन्हीं का उपयोग करते हुए पूर्वी क्षेत्र में भी भारत को लहूलुहान करने के लिए समानांतर आतंकवादी ढांचा खड़ा किया। पहले पंजाब और उसके बाद जम्मू-कश्मीर। ओसामा बिन लादेन से मिलना नेता एवं सैन्य अधिकारी अपना सम्मान समझते थे। इमरान इन सबको छिपाकर किसे मूर्ख बनाना चाहते हैं? भारत ने तथ्यों के साथ पूरा सबूत दुनिया के सामने रखा है। इसी कारण अनेक संगठनों और व्यक्तियों को प्रतिबंधित किया गया है। इमरान को इसका तो अफसोस है कि उनके पूर्वजों ने अमेरिका की मदद करके गलती की। वे भूल गए कि यह उनके देश की विचारधारा थी, जो आज भी है। अगर इमरान पूर्वजों की गलती ढूंढ़ेंगे तो पूर्वी पाकिस्तान में सैन्य कार्रवाई सबसे बड़ी गलती लगेगी।1971 के युद्ध ने पाकिस्तान को आर्थिक दृष्टि से डांवाडोल कर दिया था। उसमें अमेरिकी डॉलर एवं मदद के कारण उनका खर्च चलता था। इस तरह अगर वे अपने पूर्वजों की भूल देखेंगे सूची बड़ी हो जाएंगी। उनका स्वयं का नाम भी आ जाएगा।

अवधेश कुमार


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