मुद्दा : कब पिघलेगा इंग्लैंड का दिल?

Last Updated 17 Sep 2019 03:51:17 AM IST

ब्रिटेन के आर्कबिशप ऑफ कैंटरबरी हाल में भारत आए तो जलियांवाला बाग जाकर सौ साल पहले हुए हत्याकांड पर व्यक्तिगत शर्मिंदगी जताई।


मुद्दा : कब पिघलेगा इंग्लैंड का दिल?

1919 में बैसाखी के दिन रोलेट एक्ट के विरोध में अपने नेताओं की गिरफ्तारी पर मौन प्रतिरोध जताने अमृतसर के जलियांवाला बाग में जमा हजार निर्दोष लोगों की गोली मार कर हत्या पर ब्रिटेन से दर्जनों बार माफी की मांग की जा चुकी है। इस हत्याकांड पर चर्च के उच्च प्रतिनिधि के रूप में शर्मिदगी जताते हुए आर्कबिशप की दंडवत मुद्रा साबित करती है कि इस माफी की कितनी जरूरत है। आर्कबिशप जैसी कोशिशें ब्रिटेन के नेता भी कर चुके हैं पर खुद को शर्मिदा महसूसने इन कृत्यों का औचित्य तभी है, जब ब्रिटिश सरकार इस कांड पर औपचारिक माफी की घोषणा करे।
हालिया इतिहास बताता है कि जलियांवाला बाग सामूहिक नरसंहार पर जब कभी भी ब्रिटेन से माफी मांगने की बात उठी है, उसने इसमें तमाम दिक्कतें बता दी हैं। इसी वर्ष (2019) बैसाखी से ऐन पहले ब्रिटिश विदेश मंत्री मार्कफील्ड ने साफ किया था कि औपनिवेशिक काल के दौरान ब्रिटिश राज से संबंधित समस्याओं के लिए माफी मांगने से अपनी किस्म की दिक्कतें आ सकती हैं। उन्होंने खुद को पुरातनपंथी बताते हुए कहा था कि उन्हें बीती बातों पर माफी मांगने में हिचकिचाहट होती है। ‘जलियांवाला बाग नरसंहार’ पर हाउस ऑफ कॉमंस में बहस में भाग लेते हुए मार्कफील्ड ने कहा था कि ऐसे मामलों में एक सीमा रेखा खींचनी होगी जो इतिहास का ‘शर्मनाक हिस्सा’ हैं, और किसी भी सरकार के लिए यह चिंता की बात हो सकती है वह माफी मांगे। यूं ब्रिटेन ऐसा अकेला मुल्क नहीं है, जिससे अपने कुछ ऐतिहासिक कृत्यों के लिए माफी मांगने की जरूरत बनती है।

1945 में जापान के दो शहरों-हिरोशिमा और नागासाकी पर एटम बम गिराकर लाखों लोगों की जान लेने वाले अमेरिका से भी इसकी मांग की जाती रही है। तीन साल पहले 2016 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की जापान यात्रा के दौरान हिरोशिमा जाने की घोषणा हुई तो अंदाजा लगाया गया कि वहां वे उन कृत्यों का प्रायश्चित करेंगे जो हिरोशिमा-नागासाकी पर एटम बम डालकर अमेरिका ने किया था। पर हिरोशिमा पहुंचने से पहले ही उन्होंने स्पष्ट करना जरूरी समझा कि हिरोशिमा बम कांड के पाप का प्रायश्चित करने का उनका कोई इरादा नहीं है। एक जापानी टीवी चैनल पर उन्होंने बहुत साफ कहा कि वह माफी नहीं मांगेंगे क्योंकि यह मानना महत्त्वपूर्ण है कि युद्ध के दौरान नेताओं को हर तरह के निर्णय लेने पड़ते हैं।
उन्होंने कहा था कि हर नेता को बहुत कठिन फैसले करने पड़ते हैं, खास तौर पर युद्ध के दौरान। लेकिन ऐसा हरेक मुल्क के बारे में नहीं है। कनाडा ने 2016 में ही सौ साल पहले 1914 में कोमगाटा मारू कांड के लिए खुले तौर पर माफी मांगी थी, जिसमें हजारों भारतीय सिख, मुस्लिम और हिंदू यात्रियों को हिंसक तरीके से वापस भारत ठेला गया था। इसी तरह फ्रांस ने हैती में आपराधिक गुलामी के एक मामले में अपनी भूमिका के लिए माफी मांगी थी। दशकों पहले अनाथालय में हिंसा और उपेक्षा झेलने वाले बच्चों के मामले में डेनमार्क ने सार्वजनिक तौर पर माफी मांगने की घोषणा की थी। यही नहीं, खुद ब्रिटेन भी केन्या में 1950 के दशक में माऊ माऊ सैन्य विरोध को कुचलने और 1972 में उत्तरी आयरलैंड में 13 प्रदशर्नकारियों की हत्या के संदर्भ में अपना दोष स्वीकार कर एक प्रकार से माफी की घोषणा कर चुका है।
लेकिन जब कभी भी जालियांवाला बाग त्रासदी की बात उठी है, ब्रिटिश राजघराने से लेकर उसके प्रधानमंत्री तक माफी मांगने से इनकार कर चुके हैं। टेरीजा मे, डेविड कैमरून से लेकर महारानी एलिजाबेथ तक ने माना जरूर कि जलियांवाला बाग हत्याकांड भारत में ब्रिटिशकालीन इतिहास के लिए शर्मनाक धब्बा है। महारानी एलिजाबेथ द्वितीय ने 1997 में जालियांवाला बाग जाने से पहले कहा था कि यह भारत के साथ हमारे बीते हुए इतिहास का दुखद उदाहरण है, पर किसी ने भी इस पर माफी नहीं मांगी। संभवत: इसकी दो बड़ी वजहें हैं। एक, माफी मांगने से औपनिवेशक काल में जाति, रंग आदि भेदभाव की नींव पर टिके पूरे ब्रिटिश शासन पर सवाल खड़े हो जाएंगे जिससे ब्रिटिश सत्ता ने दुनिया में अपने पांव पसारे। दूसरे, इससे ब्रिटेन से नुकसान की भरपाई या हर्जाने की मांग जोर पकड़ लेगी जिससे ब्रिटेन बचना चाहता है। ब्रिटिश सत्ता क्यों भूल जाती है कि जलियांवाला बाग के मामले में ऐतिहासिक भूल पर उसकी माफी इतिहास रच सकती है। माफी का ऐलान करते हुए ब्रिटेन को यह भी सोचना चाहिए कि इतिहास में उसके शासकों ने ऐसे निर्णय क्यों किए जो मानवीय मूल्यों और मानवीय संवेदनाओं, दोनों के खिलाफ थे?

अभिषेक कु. सिंह


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