अमेरिका : मुश्किल में पड़ता लोकतंत्र
लोकतंत्र एकाएक ध्वस्त हो जाते थे, और टैंक राष्ट्रपति आवास की तरफ बढ़ते दिखते थे।
अमेरिका : मुश्किल में पड़ता लोकतंत्र |
लेकिन 21वीं सदी में यह प्रक्रिया कहीं ज्यादा जटिल हो चली है। सत्तावाद समूचे विश्व में दिनोंदिन बढ़ने पर है, लेकिन इसकी बढ़त अपेक्षतया मौन और धीमी है। ऐसे में उस घड़ी को इंगित करके नहीं बताया जा सकता कि लो, हो गया लोकतंत्र ध्वस्त। आप किसी सुबह सोकर उठते हैं, और पाते हैं कि लोकतंत्र तो कहीं बिला ही गया है।
2018 में प्रकाशित अपनी पुस्तक ‘हाउ डेमोक्रेसीज डाई’ में राजनीतिविज्ञानियों स्टीवेन लेविटस्की और डैनियल जिब्लॉट ने इस प्रक्रिया को कलमबद्ध किया है, जो अनेक देशों-व्लादिमिर पुतिन के रूस से लेकर रेसेप तय्यिप एडरेगन के तुर्की से लेकर विक्टर ऑरबन के हंगरी तक-में दोहराई जा चुकी है। लोकतंत्र के ताने-बाने को एक एक करके छिन्न-भिन्न किया गया जैसे कि जनता की सेवा करने वाली संस्थाएं सत्ताधारी पार्टी के हितों की पूर्ति का जरिया हों। इनका इस्तेमाल विरोधियों को डराने-धमकाने और दंडित करने के लिए किया गया। हालांकि ये तमाम देश अभी भी बाकायदा लोकतांत्रिक देश हैं, लेकिन व्यवहार में किसी एक पार्टी के शासनाधीन। बीते सप्ताह की घटनाओं से पता चलता है कि अमेरिका में भी यह सब हो सकता है। डोनाल्ड ट्रंप के यह स्वीकारने में नाकामी कि उन्होंने मौसम संबंधी गलतबयानी की थी। मौसमी संभावना संबंधी गलत दावा किया था कि डोरियन तूफान से अलबामा को खतरा पैदा हो गया था। हास्यास्पद जैसा ही था, हालांकि डरावना भी था। सहसा विास नहीं हो रहा था कि अमेरिका का राष्ट्रपति वास्तविकता का सामना नहीं कर पा रहा था। लेकिन बीते शुक्रवार को मजाक बनने-बनते रह गया जब नेशनल ओश्यानिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) ने बयान जारी करके उनकी लाज रख ली। बयान में ट्रंप के दावे का झूठमझूठ में समर्थन किया कि उन्होंने तो पहले से ही अल्बामा खतरे के बारे में चेता दिया था।
यह तरीका भयभीत क्यों करता है? इसलिए करता है कि इससे एनओएए, जिसे सर्वाधिक तकनीकी और गैर-राजनीतिक एजेंसी होना ही चाहिए, का नेतृत्व तक आज ट्रंप की जी-हुजूरी पर उतर आया है। अपने विशेषज्ञों की सुनने के बजाय झूठ बोलने से भी गुरेज नहीं कर रहा ताकि राष्ट्रपति को रंच मात्र भी असुविधा न होने पाए। मौसम वैज्ञानिकों को अपने प्रिय नेता के लिए ऐसी नरमाई दिखानी पड़े तो कहना ही होगा कि ये संस्थान भ्रष्टाचार से मुक्त नहीं हैं। आकंठ भ्रष्टाचार में डूबे हैं। एक और महत्त्वपूर्ण मामला मेरे सामने है। न्याय विभाग का वह फैसला जिसके तहत वाहननिर्माताओं के ज्यादा जिम्मेदारी दिखाने की जांच की बात है। पर्यावरणीय विनियमन के खिलाफ अपने जेहाद के अंग के रूप में ट्रंप प्रशासन ने ओबामा के कार्यकाल के दौरान के नियमों को वापस लेने की घोषणा की है। ये नियम ईधन दक्षता अनिवार्यत: धीरे-धीरे बढ़ाने की मंशा थी।
आपको लग सकता है कि प्रदूषण के नजरिए से वाहन उद्योग को यह सराहनीय फैसला लगेगा। लेकिन सच यह है कि वाहन निर्माता पहले से ही अपनी कारोबारी योजनाओं को इस प्रकार से तैयार कर चुके हैं ताकि ईधन बचत के मानकों में सुधार आ सके। वे नहीं चाहते कि उनकी योजनाओं में कोई छेड़छाड़ हो। उन्हें लगता है कि जलवायु परिवर्तन की सच्चाई ही ऐसी है जो इन नियमों के मुताबिक पुनर्निवेश करने को विवश कर देगी। इसलिए वे ट्रंप प्रशासन के फैसले के विरुद्ध हैं। उन्होंने चेताया है कि इससे ‘मुकदमेबाजी और अस्थिरता’ बढ़ेगी। अनेक कंपनियां तो मात्र विरोध करने से भी आगे निकल गई हैं। प्रशासन को झटका ही है कि उन्होंने कैलिफोर्निया राज्य के साथ अनुबंध किया है ताकि मानक उतने भर प्रतिबंधात्मक रह जाएं जितने कि ओबामा के कार्यकाल में थे। हालांकि संघीय सरकार को इन नियमों की अब जरूरत नहीं रह गई है। द वॉल स्ट्रीट जर्नल के मुताबिक अब न्याय विभाग इन कंपनियों के खिलाफ विासविरोधी कार्रवाई करने की तैयारी में है। जैसे कि पर्यावरणीय मानकों को लेकर कोई भी समझौता या सहमति प्राइस फिक्ंिसग जैसा कोई अपराध हो। दिक्कत तो यह है कि यह फैसला ऐसे प्रशासन ने किया है, जिसने पहले वास्तविक विासविरोधी नीति में कुछ रुचि दिखाई थी। यह ऐसे लोगों का किया-धरा है जिन्हें एकाधिकारवादी सत्ता के प्रति जरा भी चिंता नहीं है।
यह साफ-साफ विासविरोधी कार्रवाइयों को कारगर बनाने का प्रयास है, उन्हें डराने-धमकाने का जरिया बनाने का प्रयास है। यह भी स्पष्ट हो चला है कि न्याय विभाग पूरी तरह से भ्रष्टाचार में डूबा है। तीन वर्षो से भी कम समय में यह एक ऐसी एजेंसी की शक्ल अख्तियार कर चुका है जो ट्रंप के विरोधियों को दंडित करने की गरज से किसी भी संगठन पर जबरिया कानून लादने की कोशिश करती है। अब कौन? कम से कम दो मामलों में ट्रंप अमेजन को दंडित करने के लिए अपने पद का दुरुपयोग करते दिखाई दिए हैं। अमेजन के संस्थापक जेफ बिजोस वाशिंगटन पोस्ट के मालिक हैं। राष्ट्रपति को लगता है कि यह समाचार पत्र उनका शत्रु (जैसा कि इस समाचार पत्र को भी लगता है) है। पहले तो उन्होंने पोस्ट ऑफिस की शिपिंग दरों के पैकेज में इजाफा किया जिससे अमेजन की डिलीवरी लागत बढ़ जाएगी। उसके बाद पेंटागन ने एकाएक क्लाउड-कंप्यूटिंग परियोजना को रिवार्ड करने की प्रक्रिया की फिर से जांच शुरू करने की घोषणा कर दी।
सर्वाधिक संभावना इसी बात की थी कि अमेजन को यह प्रोजेक्ट हासिल हो सकता है। इन तमाम बातों से लगता है कि सरकारी विभागों को ऐसे अधिकार दिए जा रहे हैं जिनसे वे घरेलू आलोचकों के खिलाफ कार्रवाई करने में सक्षम हों। कहना यह कि स्वेच्छाचारिता की तरफ कैसे बढ़ा जाता है, इन मामलों से समझा जा सकता है। आज के दौर में अपने विरोधी की हत्या नहीं की जाती। बस यही करना काफी होता है कि सरकारी मशीनरी को अपने नियंत्रण में इस प्रकार से ले लिया जाए कि किसी के भी जीवन को मुश्किल में डाला जा सके। तब तक तो ऐसा किया ही जा सकता है, जब तक विपक्ष प्रभावी तरीके विरोध करने में सक्षम न हो। तो यही कुछ अमेरिका में हो रहा है।
(लेखक अमेरिका के प्रिन्सटन विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र और अंतरराष्ट्रीय मामलों के प्रोफेसर हैं। वे न्यूयॉर्क टाइम्स अखबार में नियमित कॉलम भी लिखते हैं। उन्हें अर्थशास्त्र के क्षेत्र में वर्ष 2008 के नोबेल पुरस्कार के लिए चुना गया हैं)
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