बनावटी बुद्धिमता की चुनौती!

Last Updated 29 Jul 2019 05:59:52 AM IST

कृत्रिम बुद्धि यानी मशीनों द्वारा प्रदर्शित बुद्धिमत्ता। पिछले एक दशक में आर्टििफशियल इंटेलिजेंस (एआई) के अनुप्रयोग ने सेवा से लेकर मनोरंजन, शिक्षा, स्वास्थ्य, वाणिज्य, परिवहन, डिजिटल नेटवर्क, नेविगेशन, वाहन, निगरानी जैसे अनुप्रयोगों पर एकाधिकार जमा लिया है।


बनावटी बुद्धिमता की चुनौती!

दरअसल, एआई में बनावटी बुद्धि के जरिये रोबोट या कम्प्यूटर में मनुष्यों जैसी बुद्धि डालने की कोशिश की जाती है ताकि उन्हें तथ्यों को समझने एवं विचारों पर अपनी प्रतिक्रिया देने आदि के लिए सक्षम बनाया जा सके। अक्सर इसे मनुष्य की बौद्धिक प्रक्रियाओं के साथ विकसित होने वाली प्रणाली के साथ सहबद्ध किया जाता है, जिसमें इंसानी खूबी के साथ तर्क करने की क्षमता, अर्थ की खोज या पिछले अनुभव से सीख सहित निर्णय लेने, जटिल कार्य करने, समस्या हल करने, भाषांतरण करने और बोली की पहचान जैसी विशेषताएं शामिल है।
1950 के दशक के आस-पास विकसित इस कृत्रिम प्रज्ञा की लोकप्रियता और व्यावसायिकता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसी के जरिये एक समय में सर्वकालिक महान खिलाड़ियों में शुमार रहे गैरी कास्पोरोव को शतरंज में हराया जा चुका है। यही नहीं इसके तर्ज पर मैट्रिक्स, आई रोबोट, टर्मिंनेटर ,ब्लेड रनर जैसी सुपरहिट फिल्में भी बनाई जा चुकी है। चीन तो एक कदम आगे बढ़कर आर्टििफशियल इंटेलिजेंस सिस्टम पर आधारित अगली पीढ़ी का मिसाइल भी विकसित कर रहा है। वैश्विक आंकड़ों और तथ्यों पर गौर करें तो इससे जुड़ा खुदरा वैश्विक बाजार 2018 में जहां 2 बिलियन डॉलर का था वहीं वर्ष 2022 तक इसके 7.3 बिलियन तक बढ़ने की संभावना है। ऐसा इसलिए क्योंकि आने वाले समय में कंपनियां एआई टूल्स के लिए ज्यादा से ज्यादा निवेश करेगीं, जिससे उपभोक्ताओ को दी जाने वाली सेवा में विस्तार किया जा सके।

इसके अतिरिक्त दुनियाभर में रोबोट आयात की दर 100,000 से बढ़कर 250,000 तक हो जाने का अनुमान है। अगर उपभोक्ताओं की बात करें तो 38 प्रतिशत उपभोक्ता मानते है कि एआई से उपभोक्ता सेवा में सुधार होगा। वर्तमान में 6 प्रतिशत कंपनियां एआई का प्रयोग डेटा खोज के लिए कर रही है और हेल्थकेयर क्षेत्र में इसके 6.6 बिलियन डॉलर तक बढ़ने का अनुमान है। वि बैंक की रोजगार संबंधी नवीनतम रिपोर्ट में यह चौंकाने वाली बात सामने आई है कि दुनिया के अधिकतर विकसित और विकासशील देशों में कामकाजी आबादी कम हो रही है क्योंकि मानव आधारित कार्यबल को तेजी से आगे बढ़ रहे रोबोट से चुनौती मिल रही है। पिछले दिनों जापानी सरकारी एजेंसी जापान विदेशी व्यापार संगठन (जेईटीआरओ) की तरफ से यह बात सामने आई कि सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) के साथ अन्य कई क्षेत्रों मसलन-हेल्थकेयर, कृषि, अनुसंधान और विकास और सेवा व वित्त आदि में भारी संख्या में नौकरियों को रोबोट या कृत्रिम बुद्धि द्वारा हस्तांतरित कर लिया जाएगा। मानव बुद्धि और कृत्रिम बुद्धि में सबसे बड़ा अंतर यह है कि मानव दिमाग एनालॉग होता है, इसके भीतर पुराने अनुभवों से अनुभव लेने, परिस्थिति के अनुकूल प्रतिक्रिया देने, विचारों से निपटने और अर्जित ज्ञान का उपयोग करने की क्षमता होती है और इसकी बौद्धिक ऊर्जा की क्षमता जहां 25 वाट होती है वहीं रोबोट मानवीय व्यावहारों की नकल भर है और इसे कुशल एजेंटों द्वारा डिजाइन और तैयार किया जाता है। इनकी ऊर्जा क्षमता केवल 2 वॉट की होती है। हालांकि यह बात दीगर है कि तकनीकी को एक अलग मुकाम पर ले जाने के मकसद से एआई धारणा को दुनिया के सामने रखा गया था, जो इंसानों की तरह सोच कर किसी समस्या का हल निकाल सके मगर कई दूसरे वैज्ञानिकों का मानना है कि तकनीकी में इस तरह का विकाम मशीन को सुपर इंटेलिजेंट बना सकता है जो आगे चलकर मानव अस्तित्व को खतरा पहुंचा सकता है।
दूसरी ओर कुछ अनुसंधानकर्ता यह मानते हैं कि आर्टििफशियल इंटेलिजेंस लर्निग ही हमारा भविष्य है। हालांकि इससे होने वाले फायदों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। सीरी, गूगल मैप, नेस्ट इको, जैसी मशीन लर्निग तकनीक इसके उदाहरण हैं। तकनीकी विकास में इसकी अहम भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता लेकिन जरूरी है कि एआई के साथ-साथ मानव कौशल विकास और कुशलता प्रोन्नयन पर भी ध्यान केंद्रित किया जाए ताकि इंसानों को भी रोबोट के मुकाबले प्रतिस्पर्धात्मक रूप से तैयार किया जा सके। भले ही कृत्रिम बुद्धि को निर्देशों के जरिये इंसानी मुकाबले के लिए खड़ा किया जा रहा हो किंतु यह सच है कि बनावटी बुद्धि, वास्तविक बुद्धि को कभी चुनौती नहीं दिया जा सकेगा।

डॉ. दर्शनी प्रिय


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment