सामयिक : कथनी और करनी में भेद

Last Updated 05 Jul 2019 03:42:14 AM IST

पिछले 26 जून को इंदौर के विधायक आकाश विजयवर्गीय द्वारा नगर निगम अधिकारी धीरेन्द्र सिंह वैश्य की क्रिकेट बैट से पिटाई की घटना की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भर्त्सना की और गुस्से का इजहार भी किया।


सामयिक : कथनी और करनी में भेद

मालूम हो कि आकाश विजयवर्गीय भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के पुत्र हैं। भाजपा संसदीय दल की बैठक को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा कि इस तरह का व्यवहार स्वीकार्य है और जो लोग ऐसे व्यवहार को प्रोत्साहन देते हैं, उन्हें पार्टी से बाहर किया जाना चाहिए। इतना ही नहीं, प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि उनके लिए इस बात का कोई मतलब नहीं कि इस घटना में किस व्यक्ति का बेटा शामिल है। यह अनावश्यक और अस्वीकार्य है। अपने संबोधन के दौरान मोदी ने उन लोगों को भी आड़े हाथों लिया, जो आकाश के जेल से रिहा होने के बाद उनकी आगवानी के लिए पहुंचे थे और फायरिंग की थी। मोदी ने अपने उद्बोधन में ऐसे लोगों को पार्टी से बाहर किए जाने की दलील दी।
ऊपरी तौर पर प्रधानमंत्री की बात बिल्कुल वाजिब है और उनके उपरोक्त वक्तव्य में कहीं कोई खोट भी नजर नहीं आ रहा है। तो क्या हमें मान लेना चाहिए कि मोदी जो कह रहे हैं, वही उनकी मंशा भी है? किसी भी व्यक्ति की मंशा का उचित आकलन उसकी कथनी और तदनुरूप उसके आचरण व व्यवहार में तादात्म्य के मद्देनजर ही की जा सकती है। इसलिए नरेन्द्र मोदी के बयान की असलियत का पता उनके कार्य व्यवहार से ही लगाया जाना चाहिए। वैसे यह कोई पहला मौका नहीं है, जब मोदी ने अपने सांसदों, नेताओं के व्यवहार को लेकर ऐसा तेवर अख्तियार किया है। इसके पहले भी अनेक अवसरों पर उन्होंने ऐसे सद्वाक्य कहे हैं। याद कीजिए, चुनाव के दौरान उन्होंने साध्वी प्रज्ञा सिंह  ठाकुर के बारे में भी ऐसा ही बयान दिया था। उन्होंने कहा था कि वह प्रज्ञा सिंह को कभी माफ नहीं करेंगे।

इसी तरह गोरक्षकों की गुंडागर्दी को भी उन्होंने अनुचित बताया था। लेकिन आज तक पार्टी के किसी भी सांसद, विधायक या नेता के खिलाफ कोई भी कार्रवाई नहीं हुई। भाजपा में ऐसे अनेक सांसदों के साथ-साथ समर्थकों की एक भारी भीड़ भी है, जो विरोधियों के खिलाफ गाल-गलौज और मारपीट करते हैं। आज प्रज्ञा सिंह सांसद हैं और मोदी जी के साथ बैठती हैं। चुनाव के बाद मोदी जी की जबान बंद है और वे ऐसा आचरण कर रहे हैं, जैसे उन्हें याद ही नहीं कि प्रज्ञा सिंह ने हेमंत करकरे की अनावश्यक आलोचना कर एक शहीद की शान में बट्टा लगाने का काम किया था। आज भी गोरक्षकों की गुंडागर्दी ज्यों की त्यों बरकरार है। आए दिन भाजपा समर्थक भीड़ द्वारा देश के नागरिकों की लिंचिंग होती ही रहती है। यह जानने के लिए किसी शोध की जरूरत नहीं कि मोदी के सत्ता में आने के बाद अल्पसंख्यकों के विरुद्ध अपराध करने वालों को सजा बमुश्किल ही मिलती है यानी नहीं मिलती है। भाजपा की यह भीड़ बड़े सुकून से अपने तथाकथित विरोधियों की हत्या कर बच निकलती है। जहां तक आकाश विजयवर्गीय की बात है, तो उसके खिलाफ भी मोदी और उनकी पार्टी ने कोई कदम नहीं उठाया है। कौन नहीं जानता है कि आकाश के पिता कैलाश विजयवर्गीय भी अपने भड़काऊ बयानों और अनियंत्रित आचरण के लिए कुख्यात रहे हैं। लेकिन आज तक ऐसे लोगों के खिलाफ भाजपा नेतृत्व ने कोई कदम नहीं उठाया है।
इसके विपरीत कई बार ऐसे कृत्यों और बयानों का न केवल बेशर्मी से बचाव किया जाता रहा है, बल्कि उन्हें प्रोत्साहित भी किया जाता रहा है। आकाश की धृष्टता तो देखिए कि मोदी के बयान के बावजूद उन्होंने अपने आचरण पर खेद नहीं जताया है, बल्कि प्रकारांतर से अपने आचरण को सही भी साबित करने में जुटे हैं। उनके समर्थक भी उन्हें पाक साफ मानते हैं और उनके जेल से रिहा होने के बाद फायरिंग करना अपना परम कर्तव्य समझते हैं। सच तो यह है कि अपने आचरण से पूरा संघ परिवार ऐसी घटनाओं को वाजिब बताता रहा है और उनका समर्थन भी करता रहा है। ऐसे में यदि कोई कहता है कि मोदी का यह बयान भी एक जुमला ही है, तो उसे कैसे गलत करार दिया जा सकता है? इस सवाल को कैसे अनदेखा किया जा सकता है कि क्यों मोदी के बार-बार नसीहत देने के बावजूद आज तक पार्टी के किसी भी नेता के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई है? जाहिर है कि मोदी के कथनी और करनी में साम्य नहीं है। उनका कथन केवल कथन के लिए होता है, ताकि उनके ऊपर उंगली न उठे।
मोदी आराम से कह सकते हैं कि उन्होंने तो ऐसे कृत्य करने वालों के खिलाफ गुस्से का इजहार किया, अब पार्टी कोई कदम नहीं उठाती, तो वह क्या कर सकते हैं। लेकिन उनकी यह मासूमियत जिंदगियां निगलती जा रही हैं। ऐसा कैसे संभव है कि मोदी अपने दल के किसी सांसद, विधायक या नेता के खिलाफ कार्रवाई करना चाहें और कर नहीं पाएं। ऐसा सोचना केवल अपने को धोखा में रखना है। देश का बच्च-बच्चा जानता है कि आज भाजपा में वही होता है, जो मोदी-शाह चाहते हैं। यदि मोदी की मंशा वास्तव में आकाश जैसे तत्वों के खिलाफ कार्रवाई करने की होती, तो कोई कारण नहीं कि वैसे लोगों के विरु द्ध कार्रवाई नहीं होती। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की वास्तविक मंशा यह है कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। वह केवल इतना चाहते हैं कि उनकी तरफ उंगली न उठे और लोग उन्हें गलत न करार दें। दूसरी तरफ कोई कार्रवाई नहीं कर वह अपने नेताओं सहित अपने कॉडर और समर्थकों को यह संदेश देने में भी कामयाब हैं कि वे अपना काम करते रह सकते हैं। उनकी कथनी और करनी का भेद हमारे लोकतंत्र के लिए भयावह संकेत दे रहा है।
पिछले पांच सालों से उनकी पार्टी के नेताओं ने न जाने कितने दुर्भाग्यपूर्ण बयान दिए, लेकिन आज तक एक के खिलाफ भी कोई कार्रवाई नहीं की गई। इसलिए हमें मुगालते में नहीं रहना चाहिए कि मोदी वास्तव में अपने नेताओं के कु-बोल को नियंत्रित करने का कोई प्रयास कर रहे हैं या करेंगे। हमारे प्रधानमंत्री को इतना अवश्य समझना चाहिए कि कथनी और करनी का उनका भेद देश पर बहुत भारी पड़ सकता। क्या हम इस बात से इनकार कर सकते हैं कि यदि इस प्रवृत्ति पर रोक नहीं लगी, तो दलों की विसनीयता ही तिरोहित हो जाएगी, क्योंकि तब यह एक संस्कृति बन जाएगी, जहां बोलबाला उसका होगा, जिसकी कथनी और करनी में सबसे ज्यादा भेद होगा।

कुमार नरेन्द्र सिंह


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment