चमकी बुखार : डबल इंजन सरकार बेमानी
जुलाई, 2017 में नीतीश कुमार ने महागठबंधन को छोड़ भाजपा के साथ सरकार बनाई, जिसके बारे में दोनों ने बड़े गर्व के साथ कहा था कि यह ‘डबल इंजन की सरकार’ है।
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कहने का तात्पर्य यह था कि केंद्र और राज्य, दोनों जगहों पर एनडीए की सरकार होने की वजह से बिहार में विकास की रफ्तार दोगुनी हो जाएगी। हालांकि तकनीकी दृष्टिकोण से दूसरे इंजन की जरूरत पहले इंजन पर भरोसा नहीं होने को इंगित करती है। कारण यह कि दोनों इंजनों को प्राय: एक साथ इस्तेमाल नहीं किया जाता है।
बीते दो वर्षो में सुशासन, विधि व्यवस्था और विकास के मुद्दों पर बिहार सरकार कई बार घिरी है, और उसे चौतरफा फजीहत भी झेलनी पड़ी है। पिछले साल शेल्टर होम में बेसहारा बच्चियों का यौन शोषण और बलात्कार की घटना तथा इस वर्ष चमकी बुखार के प्रकोप से सैकड़ों गरीब और वंचितों के बच्चों की मौत की घटना तथा हाल के समय घटी अन्य घटनाओं के संदर्भ में सरकार की नाकामी ने मुजफ्फरपुर को असफलताओं की राजधानी ही बना दिया है। हालांकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विधानसभा में कहा है कि चमकी बुखार के प्रकोप से बच्चों की मौत बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। यह बहुत ही गंभीर मसला है।
उन्होंने यह भी साफ किया कि गरमी और सूखे के कारण सरकार के लिए मजबूरी का सामना रहा। सच है कि परिस्थितियां विकट थीं, लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि इन परिस्थितियों में सरकार की तरफ से कार्रवाई में विलम्ब और तैयारी में कमी दिखी और इस कारण नीतीश सरकार विपक्षियों के निशाने पर रही है। इस परिप्रेक्ष्य में सर्वोच्च न्यायालय ने भी कड़ी टिप्पणी की। राजद के नेतृत्व में विपक्षी एकता ने शेल्टर होम के मुद्दे पर समाज कल्याण मंत्री मंजू वर्मा का इस्तीफा दिलाने के लिए सरकार को मजबूर किया था। ठीक उसी प्रकार चमकी बुखार से सैकड़ों बच्चों की मौत के लिए जिम्मेदार स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय के इस्तीफे की भी मांग कर रही है। जहां विधान सभा में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने माना कि स्वास्थ्य विभाग के स्तर पर लापरवाही हुई है, वहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संसद में इस तरह की घटना को शर्मनाक बताया। ऐसी स्थिति में तो ‘डबल इंजन की सरकार’ पूरी तरह विफल दिखाई पड़ रही है। दोयम दर्जे के इंजन के राज्यस्तरीय नेता सुशील मोदी का खुद अपनी सरकार की विफलता को मानने के बजाय लालू-राबड़ी शासनकाल की तरफ ध्यान देना, बेहद दुर्भाग्यपूर्ण और अमानवीय है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हषर्वर्धन द्वारा 2014 में किए हुए वादे को पूरा न करना, स्वास्थ्य राज्य मंत्री अिनी चौबे और राज्य के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे का इस प्रकरण के दौरान संवेदनहीनता प्रदर्शित करना स्वास्थ्य प्रणाली को ठीक करने के बिंदु पर इस सरकार की मंशा पर गंभीर सवाल खड़ा करता है। विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी और मुख्य विपक्षी दल राष्ट्रीय जनता दल का 5 जुलाई को स्थापना दिवस है, और अगले ही दिन 6 जुलाई को राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक भी बुलाई गई है। लोक सभा चुनाव 2019 में दल के खराब प्रदशर्न पर मंथन और आगे की रणनीति के साथ कई विषय मुख्य एजेंडा में शामिल होंगे। मुजफ्फरपुर सहित कई जिलों में चमकी बुखार के कहर के साथ-साथ लचर कानून व्यवस्था, हाल में सारण जिले में घटित सामूहिक बलात्कार की घटना इत्यादि को सरकार की बड़ी विफलता और घोर लापरवाही के रूप में राजद के नेतृत्व में विपक्ष वर्तमान विधानसभा में मुद्दा बनाएगा। इस मुद्दे को विपक्ष किस तरह से आंदोलन का रूप देता है, यह तो आने वाले समय में उसकी विपक्षधर्मिंता को साबित करेगा। बिहार में 2005 से अभी तक ज्यादातर समय राजग ही सत्ता में रही है, और नीतीश कुमार लगातार मुख्यमंत्री रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट में दिए हलफनामे में बिहार सरकार ने माना कि सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों के 12206 स्वीकृत पदों की जगह मात्र 5205 डॉक्टर ही कार्यरत हैं। वैसे ही नसरे के 19155 स्वीकृत पदों की जगह मात्र 5634 नर्स ही कार्यरत हैं। तो इस बात का जवाब कौन देगा कि ऐसे हालात हुए क्यों? स्वास्थ्य सेवा के लिए आवंटित राशि कहां गई? वहीं बिहार में स्वास्थ्य सुविधाओं, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों की हालत दयनीय है। संवैधानिक तौर पर तो स्वास्थ्य राज्य सूची में आता है, लेकिन यहीं पर तो डबल इंजन वाली सरकार के समक्ष चुनौती है। जब केंद्र और राज्य मिलकर विकास के मुद्दे पर मिलकर किसी प्रोजेक्ट को सफल अंजाम तक नहीं पहुंचा पा रही है, तो फिर कैसा सुशासन। ऐसे में तो स्वास्थ्य प्रणाली सहित विभिन्न स्तर पर सुशासन के मुद्दे पर विफलताओं के लिए मुख्य तौर पर एनडीए ही जिम्मेदार है।
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