जल संकट : सामाजिक अभियान चले

Last Updated 21 Jun 2019 02:39:39 AM IST

पूरा देश जल संकट से जूझ रहा है। देश के अधिकतर राज्यों में त्राहि-त्राहि मची हुई है। कह सकते हैं कि वह दिन दूर नहीं जब हम जल संकट को लेकर किंकर्त्तव्यविमूढ़ हो जाएंगे।


जल संकट : सामाजिक अभियान चले

यह हम सबकी जानकारी में है, लेकिन हम हैं कि मौन साधे बैठे हुए हैं। पता नहीं किस दिन का हम इंतजार कर रहे हैं। दिन-प्रतिदिन विकराल स्थिति होती जा रही है। कहीं पर एक चुल्लू भर पानी नहीं मिल रहा है, तो कहीं-कहीं हजारों लीटर पानी गाड़ियों के धोने में बर्बाद किया जा रहा है।
अभी हाल ही में 2018 में ‘नीति आयोग’ ने जल संकट को लेकर एक रिपोर्ट जारी की है। इसमें  देश के साठ करोड़ लोगों के जबरदस्त जल संकट से जूझने का पता चला है। दो लाख लोग प्रत्येक वर्ष साफ पीने का पानी उपलब्ध न होने से जान गंवा रहे हैं। देश में 70 प्रतिशत पेयजल दूषित है।
नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार 2030 तक देश में पानी की मांग उपलब्ध जल वितरण की दुगुनी हो जाएगी। मतलब यह कि हमारे सामने घोर संकट पैदा होगा। एक तो पीने के पानी की समस्या दूसरी तरफ अगर जहां पानी है, वहां दूषित है। कहीं आर्सेनिक तो कहीं फ्लोराइड मिला हुआ है। इन सभी कारणों से भारत को पानी की गुणवत्ता के सूचकांक में 122 देशों में 120वें स्थान पर रखा गया है। रिपोर्ट के अनुसार झारखंड, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और बिहार जल प्रबंधन के मामले में सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले राज्यों में शुमार हैं। ऐसा नहीं है कि सरकारों ने प्रयास नहीं किए बल्कि बहुत सारी नीतियां और योजना बनाई। राष्ट्रीय जल नीति, 1987 राष्ट्रीय जल नीति, 2002 राष्ट्रीय जल बोर्ड, राष्ट्रीय नदी संरक्षण निदेशालय, भूजल के कृत्रिम पुनर्भरण की योजना, भूमि जल संवर्धन पुरस्कार और राष्ट्रीय जल पुरस्कार, मिशन क्लीन गंगा, जल संचयन एवं संवर्धन परियोजना इत्यादि योजनाओं की अनदेखी नहीं की जा सकती। ऐसी तमाम नीतियां, योजनाएं, नियम-कानून सभी बनाए गए हैं। लेकिन इन सबके बावजूद आज भी पूरा देश संकट का सामना कर रहा है।

हम सबको जल को जितनी प्राथमिकता देनी चाहिए उतनी हम नहीं दे रहे। समाजिक आंदोलन चला कर इस संकट को कम करना होगा। चौतरफा प्रयास करने होंगे। सर्वप्रथम इसे कानून के दायरे में लाना होगा। कठोर कानून बनाने की नहीं बल्कि उनका जमीनी स्तर पर कड़ाई से पालन भी कराना होगा। बिना सामाजिक भेदभाव के सार्वजनिक वितरण प्रणाली बनानी होगी, जिस प्रकार घरेलू गैस के  आवंटन का नियम है, या उसी प्रकार की कोई और प्रणाली लानी होगी। तब जाकर हम इस समस्या पर नियंत्रण कर पाएंगे। तब जाकर पानी का दोहन रुक पाएगा।
बड़ी आम बात है कि कोई पानी बिना मरता है, और कहीं दिन-दिन भर स्नान किया जाता है, या गाड़ियां धोई जाती हैं, या दरवाजे और छत धोई जाती हैं। इस चलन पर नियंत्रण करनांही होगा। जल संरक्षण को बढ़ावा देना होगा। प्राथमिक स्तर से लेकर विविद्यालय स्तर तक के शैक्षणिक पाठ्यक्रमों में अनिवार्य रूप से जल संकट एवं संरक्षण के उपायों के बारे में बताना होगा। पंचायत स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक लगातार अभियान बनाकर गोष्ठियों एवं कार्यशालाओं का आयोजन करना होगा।
विद्यालयों और विविद्यालयों में जल संकट को कम करने में सहयोग देने वालों को पुरस्कृत किया जाना चाहिए। अधिक से अधिक वृक्ष लगाने के लिए कार्ययोजना के साथ कार्य करना होगा और सिर्फ  वृक्ष लगाना ही नहीं, उन्हें  बचाना भी होगा। जवाबदेही एवं उत्तरदायित्व तय करना होगा। उसमें बरगद, पीपल, पाकड़, जामुन, आम जैसे पेड़ों की अधिकता रखनी होगी। माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा तालाबों के अतिक्रमण के संबंध में पारित आदेश का क्रियान्वयन राज्य सरकारों द्वारा गंभीरता से कराया जाना चाहिए। जल संकट, जल संरक्षण के लिए अनवरत जागरूकता अभियान रैली पोस्टर, नुक्कड़ नाटक, रेडियो, टीवी, फ्लैक्सैआदि सभी माध्यमों से लगातार चलाना होगा। जल संरक्षण को लेकर स्वयं अपने-अपने घरों से शुरू करना होगा। बरसात के पानी को कैसे संचय किया जाए, इसकी नीति और तरीके खोजने होंगे। जल उपलब्धता की दिक्कतों का अध्ययन महिला आयोग ने भी किया है। आयोग ने जल की व्यवस्था करने में महिलाओं द्वारा उठाए जा रहे कष्टों का अध्ययन करने के बाद यह जानकारी दी है कि घरेलू उपयोग के लिए जल का प्रबंध करने में 15 करोड़ महिला जुटती हैं, और 10 करोड़ रुपये के समतुल्य श्रम खर्च होता है जल लाने के लिए महिलाएं प्रतिदिन 9-10 किमी. पैदल चलती हैं। अनेक अध्ययनों के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत प्रदत्त मौलिक अधिकारों में ‘पेयजल प्राप्त करने’ को मौलिक अधिकार का दर्जा दिया है।
क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा, पंच रचित अति अधम शरीरा अर्थात हमारा शरीर पंच तत्वों तथा क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा से मिलकर बना है। इन पंच तत्वों में जल सबसे महत्त्वपूर्ण है। यह जल ही है, जो जीवन की उत्पत्ति का स्रोत माना जाता रहा है। वर्तमान समय में जल हमारे दैनिक जीवन के साथ-साथ अन्य कई क्षेत्रों तथा विभिन्न माननीय क्रियाकलाप में प्रमुखता से प्रयुक्त हो रहा है। यह किसी भी राष्ट्र के आर्थिक, राजनीतिक तथा सामाजिक विकास एवं प्रगति का एक आधारभूत संकल्प भी है।  कहना अतिश्योक्ति नहीं है कि जल के बिना जीवन की कल्पना करना असंभव है। यहां पर सामाजिक आंदोलन से तात्पर्य यह भी है कि इसे अभियान के रूप में चलाना पड़ेगा। घरों, मुहल्लों, सार्वजनिक पाकरे, स्कूलों, अस्पतालों, दुकानों, मन्दिरों आदि में लगी नल की टोटियां खुली या टूटी रहती हैं। अनजाने ही प्रतिदिन हजारों लीटर पानी बेकार हो जाता है। इस बरबादी को रोकने के लिए भी हमें सामाजिक आंदोलन, सामाजिक जागरूकता का अभियान चलाना होगा। स्वयं से ही शुरू करना होगा।
निश्चय ही ‘जल संरक्षण’ आज की सर्वोपरि चिंता होनी चाहिए। चूंकि उदार प्रकृति हमें निरंतर वायु, जल, प्रकाश आदि का उपहार देकर उपकृत करती रहती है, लेकिन स्वार्थी आदमी सब कुछ भूलकर प्रकृति के नैसर्गिक संतुलन को ही बिगाड़ने पर तुला हुआ है। आइए,  जल संकट से स्वयं को उबारने के लिए हम सामाजिक आंदोलन का हिस्सा बनें और जल संकट को खत्म करने में सहायक बनें।

राजेश मणि


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