योग दिवस : जानें बिना न करें योग

Last Updated 21 Jun 2019 02:36:45 AM IST

अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखने के लिए आधुनिक विश्व में योग बहुत ही सशक्त माध्यम है। 2015 के बाद योग ने समाज में काफी तेजी से जगह बनाई है।


योग दिवस : जानें बिना न करें योग

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रयास से संयुक्त राष्ट्र ने 21 जून को अंतरराष्ट्रीय दिवस मानना शुरू किया है, जिसके कारण योग करने का चलन और मांग तेजी से बढ़ी है।  किसी चीज की मांग बढ़ने से उसके कुछ बुरे परिणाम भी होते हैं, जिसका असर व्यक्ति को भुगतना पड़ता है।
हजारों साल पहले जब योग का प्रादुर्भाव जीवन पद्धति के रूप में हुआ था। ऋषि-मुनियों ने योग-अभ्यासों को विकसित किया और उसे शिष्यों माध्यम से समाज तक पहुंचाया। ऋषि-मुनियों ने आध्यात्मिक उन्नति के लिए योग के विभिन्न मार्ग बतलाए जैसे ज्ञान  योग, भक्ति योग, क्रिया योग, सांख्य योग, हठ  योग, स्वर योग आदि। ऋषि पतंजलि ने ‘अष्टांग योग’ का सिद्धांत दिया, जिसे राज योग भी कहा जाता है-यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि। इनके अनुसार योग का उद्देश्य है- ‘योग : चित्तवृत्तिनिरोधा’ यानी अपनी चित्त की वृत्तियों का निरोध करना ही योग है। इनके सिद्धांत को मानक माना  गया है, लेकिन आज जो कुछ हो रहा है, वह सही नहीं है। योग का व्यापार ही नहीं हो रहा, बल्कि लोगों को शारीरिक नुकसान भी उठाना पड़ रहा है। 90 प्रतिशत लोग आसन सीखा रहे हैं या अभ्यास कर रहे हैं, जो सिर्फ  सर्कस बनकर रह गया है। हालांकि कुछ अच्छे लोग और संस्थान भी हैं, जो बिना किसी व्यावसायिक लोभ के समाज को फायदा पहुंचा रहे हैं। इनको पहचान कर आगे बढ़ाने की जरूरत है।

दरअसल, एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ होने से लोग योग की तरफ आकषिर्त हुए हैं। लिहाजा, संस्था या शिक्षक कुछ भी ऊटपटांग सिखा रहे हैं-जैसे न्यूड योगा, बीयर योगा, पावर योगा, चॉकलेट योगा, सेक्स बढ़ाने के लिए तंत्र योगा आदि, जो योग का उद्देश्य नहीं है। हर स्वामी संन्यासी, बाबा या योगी योग शिक्षक नहीं है। इस बारे में भ्रम की स्थिति ज्यादा है। 2015 के बाद हर स्वामी और बाबा इस ‘खेल’ में कूद पड़े। इसी तरह, योग और आयुर्वेद सामग्री एक दूसरे से अलग मामला है। योग के नाम पर आयुव्रेद की दवा बेची जाने लगी है, जो गलत है। योग समग्र जीवन पद्धति है। ऐसे में अगर आयुव्रेद की दवा बेची जाएगी तो योग का क्या महत्त्व? शिक्षकों की गुणवत्ता में भी गिरावटैआई है। योग की मांग बढ़ने से टीचर ट्रेनिंग स्कूल कुटीर उद्योग की तरह खुल गए हैं। कहीं भी चले जाइए-ऋषिकेश, दक्षिण भारत या इंडोनेशिया, बाली और यूरोप या अमेरिका -हर जगह ऐसी दुकान मिल जाएगी। 50 घंटे, 100 घंटे, 200 घंटे का कोर्स कीजिए और योग शिक्षक की डिग्री ले लीजिए।
इसी तरह का कोर्स अमेरिका में ‘योग एलायंस’ संचालित करती है। यूरोपियन और अमेरिकन शिक्षकों का योग पर काफी प्रभाव पड़ा है क्योंकि भारत में कोई मानक नहीं रहने से लोग ‘योग एलायंस’ से सीख कर प्रभुत्व स्थापित कर रहे हैं। वहां शोध होता है, बोलने का सलीका सिखाते हैं और इस मामले में भारत पिछड़ा हुआ है। हम भारतीय योग पद्धति से हटकर अपने तरीके से योग स्टाइल या आसन सिखा रहे हैं। मन और आत्मा की बात नहीं करते। यही वजह है कि अंतरराष्ट्रीय योग दिवस महोत्सव सांकेतिक बन कर रह गया है। स्कूल, कॉलेज और अस्पतालों में योग क्लास का न होना दुखद है। योग दिवस मनाने का चलन शुरू हुए पांच साल हो गए मगर स्कूलों में कायदे से शिक्षकों की नियुक्ति तक नहीं हुई है। योग के वास्तविक उद्देश्य को लोग जानना नहीं चाहते। वहीं योग की ब्रांडिंग होने लगी है। सेलिब्रिटी को बुलाकर फोटो खिंचाकर लोगों को बरगलाया जाता है जबकि यह सर्वविदित है कि एक ही अभ्यास से फायदा नहीं होता है। इसके लिए समग्र अभ्यास की जरूरत है। योग से अन्य सामग्री की मार्केटिंग बढ़ी है। कुशन, मैट, मेडिटेशन के लिए कुर्सी, पैंट, टी शर्ट आदि का व्यवसाय अरबों में है।
हठयोग और हठयोगी के अंतर को समझना जरूरी है? पहले के बाबा एक पैर पर सालों खड़े रहते थे, अगर इसे योग मानकर अनुसरण करेंगे तो नुकसान हमारा ही होगा।  जानकारी के अभाव में लोग ऐसा करते हैं। कह सकते हैं योग आज आतिथ्य उद्योग में बदल गया है। कहीं चले भी जाइए। होटल आदि में कुछ घंटों का कोर्स कराकर पैसे ऐंठे जाते हैं। रूम सर्विस वाला तक आसन सिखाता मिल जाएगा। लोगों को गूगल और यू ट्यूब से बचना चाहिए। सतर्क रहकर सही मार्गदर्शन में ही योग करना चाहिए। बहरहाल, स्वास्थ्य सेवा महंगी होने से ही लोग योग की तरफ गए हैं, मगर सही चीज नहीं सीख रहे।

संजीव चतुर्वेदी


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