सरोकार : फेक न्यूज पर कानून बनाने की दरकार

Last Updated 19 May 2019 06:16:24 AM IST

तेज गति से बढ़ते सूचना संसार ने कई तरह की मुसिबतें खड़ी कर दी हैं। हिंदुस्तान में फर्जी खबरों को लेकर कई बड़ी घटनाएं पूर्व में घट चुकी हैं।


सरोकार : फेक न्यूज पर कानून बनाने की दरकार

झूठी खबरों से भारत ही आहत नहीं, बल्कि दूसरे मुल्क भी परेशान हैं। लेकिन इस समस्या का तोड़ कानूनी रूप से सिंगापुर ने खोजा है। सिंगापुर की सरकार ने फेक न्यूज मसले पर इस माह यानी दस मई को बाकायदा संसद का विशेष सत्र बुलाकर फेक न्यूज को रोकने के लिए नया काूनन पारित कर दिया।
सिंगापुर में कानून बनने के बाद भारत में भी उम्मीद जगी है कि देर-सवेर यहां भी ऐसा ही कानून बनेगा। करीब तीन वर्ष पहले जब कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी सूचना एवं प्रसारण मंत्री थीं, उस दौरान उन्होंने फेक न्यूज पर लगाम लगाने के लिए नया कानून लाने को लेकर हामी भरी थी। लेकिन उसके कुछ दिनों बाद उनका मंत्रालय छिन गया। बात आई-गई हो गई। लेकिन तब स्मृति ईरानी की बात का कुछ वगरे ने जमकर विरोध किया था, जिनमें खबरिया न्यूज चैनलों को मॉनीटर करने वाली सफेद हाथी के भांति ‘एडिटर्स गिल्ड’ संस्था प्रमुख रूप से शामिल थी। एडिटर्स गिल्ड के अलावा कुछ सियासी दलों ने भी मुद्दा बना दिया था। राजनीतिक पंडितों ने स्मृति ईरानी की मुहीम को प्रेस व अभिव्यक्ति की आजादी पहरा डालना बता दिया था। हिंदुस्तान के भीतर पूर्व में घटी तमाम ‘मॉब लिंचिंग’ की घटनाएं फेक न्यूज की ही देन रहीं।

सिंगापुर में बने फेक न्यूज कानून का उल्लंघन करने पर दस साल की कठोर सजा का प्रावधान किया गया है। साथ ही पौने चार करोड़ रुपये का हर्जाना भी भुगतना पड़ेगा। दरअसल, यह डर उन लोगों के लिए काफी है जो फेक न्यूज को फैलाने के आदी हो चुके हैं। भारत में फेक न्यूज फैलाने को लेकर बाकायदा सक्रिय गिरोह पनप चुके हैं। झूठी खबरों के संसार से हम ज्यादा नहीं, पिछले पांच-एक साल से परिचित हुए हैं। लेकिन समस्या का विस्तार लगातार होता जा रहा है। एंड्रोयड फोन की जबसे क्रांति आई है तब से देश का हर दूसरा व्यक्ति मोबाइल पत्रकार बन गया है। वाट्सएप पर आने वाले संदेश की बिना सत्यता जाने ही आगे भेजने में देरी नहीं करता। मुख्य समस्या यहीं से उत्पन्न हुई है। सामाजिक व्यवस्था के लिए फर्जी खबरें बड़ा मुद्दा बनी हुई हैं। लेकिन निवारण को लेकर कोई इस मसले को छूना नहीं चाहता।
गौरतलब है कि फेक न्यूज का मुद्दा सियासी दलों के लिए बरैया के छत्ते की तरह है क्योंकि अगर किसी एक पार्टी ने फेक न्यूज पर अंकुश लगाने की बात कही, तो दूसरी पार्टी उसके विरोध में खड़ी होने में देर नहीं लगाएगी। इसे सीधा स्वतंत्रता से जोड़ दिया जाएगा और अभिव्यक्ति की आजादी पर बंदिशें लगाने, जैसे न जाने क्या-क्या आरोप लगा दिए जाएंगे। ये सच है, झूठी खबरों का समंदर बहुत गहरा गया है। न समाज के लिए और न सरकार के लिए अब निजात पाना उतना आसान नहीं। सोशल मीडिया के बल पर आज देश की राजनीति चल रही है। सियासी पार्टियां सबसे ज्यादा पैसा सोशल मीडिया पर व्यय कर रही हैं।
देश चुनावी माहौल में रंगा हुआ है जबकि कायदे से ऐसे मसले को राजनीतिक दलों द्वारा  घोषणा पत्र में शामिल करना चाहिए था। लेकिन जिससे पार्टियों को फायदा होता हो, उसे भला क्यों छेड़ेंगी। लेकिन समय का तकाजा है कि सिंगापुर की तर्ज पर भारत में भी फेक न्यूज पर कानून बनाने की दरकार अब महसूस होने लगी है।

रमेश ठाकुर


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