बतंगड़ बेतुक : हे चुनाव हम तुझे याद रखेंगे!

Last Updated 19 May 2019 06:24:27 AM IST

इसलिए नहीं कि तू हमारे टूटे-फूटे, लुटते-घुटते लोकतंत्र का अविभाज्य अंग है, इसके लिए अनिवार्य है, पवित्र है और हमारे लिए शिरोधार्य है।


हे चुनाव हम तुझे याद रखेंगे!

इसलिए नहीं कि तू हमारी कथित महान जनता के लिए एक पंचसाला अवसर है कि यह महान जनता अपनी जिम्मेदारी निभा सके, जिन्हें हटना चाहिए उन्हें हटा सके और जिन्हें सत्ता में आना चाहिए उन्हें सत्ता में बिठा सके ताकि अगले पांच साल तक ‘जनता की सरकार’ जनता के दुख-दर्द मिटा सके। इसलिए भी नहीं कि तू हमारे ‘जिम्मेदार’ नेताओं के काम-काज की छलनी है जिसमें से छनकर पिछली सारी गंदगी निथर जाएगी, लोकतंत्र की सूरत निखर जाएगी और फिर प्रगति की कोई नयी इमारत बन जाएगी।
हे चुनाव हम तुझे याद रखेंगे लोकतंत्र नामक व्यवस्था के लोक में घने अंधकार के लिए, इसके तंत्र के साथ निरंतर व्यभिचार के लिए और इसकी नैतिकता के साथ निर्बाध दुराचार के लिए। हम तुझे याद रखेंगे बौने, ओछे, अभद्र, विचारविहीन, सरोकारहीन, स्वार्थी सत्ता पिपासु नेताओं के उभार के लिए। हर क्षुद्र, घृणास्पद, अमानवीय प्रवृत्ति के व्यापक प्रसार के लिए और मानवीय संवेदनाओं के हर तंतु पर कुत्सित प्रहार के लिए।

तुझे याद रखेंगे लोगों के दिमागों में जहर की फसल उगाने के लिए, मूढ़ जनता को और अधिक मूढ़ बनाने के लिए, उसके बीच के विषाक्त विभाजनों को और अधिक विषैला करने के लिए, हितपरस्त सामाजिक समूहों के दुराग्रहों को धार देने के लिए, एक-दूसरे का गला काटने को तत्पर उन्हें  एक-दूसरे के विरुद्ध खड़ा करने के लिए।
हम तुझे याद रखेंगे झूठ और प्रपंच को राजनीति के केंद्र में बिठाने के लिए, धर्म के नाम पर लज्जाविहीन पाखंड को धार्मिक बनाने के लिए, पारस्परिक विद्वेषकारी क्रूर महत्त्वाकांक्षाओं को जनसेवा का लबादा ओढ़ाने के लिए, खुलते हुए दिमागों पर जड़ता के ढक्कन लगाने के लिए, बेशर्म छलावों से मतदाताओं को लुभाने के लिए, नंगे लालच को उनका अधिकार बनाने के लिए और कथित लक्ष्य प्राप्ति के लिए उनमें उन्माद जगाने के लिए, उनका विवेक हर उन्हें हिंसक बनाने के लिए, उनका मनुष्यत्व छीन उन्हें पशुवत बनाने के लिए। मतदाता को करुणा, क्षमा, सद्भाव से रहित कर उसमें नफरत का जहर भरने के लिए और इस जहर को चुनावी जीत का औजार बनाने के लिए।
हे चुनाव हम तुझे याद रखेंगे भाषायी मर्यादाओं को सरेआम निर्वस्त्र करने के लिए, गंभीर बहसों को गलीछाप लुच्चई और गाली-गलौज में बदलने के लिए, नीति वक्तव्यों में झूठ और अर्धझूठ की शर्मनाक मिलावट करने के लिए, झूठ और सच का फर्क मिटाने के लिए, एक-दूसरे के लिए डरावने निरादर और घिनावने अतिचार के लिए। शिष्टता, शालीनता और विनम्रता को संवाद की संस्कृति से बहिष्कृत कर देने के लिए। राजनीति और वेश्यावृति का फर्क मिटा देने के लिए तथा राजनीतिक लंपटता और गुंडई की राह में जो भी अवरोध थे उन्हें हटा देने के लिए।
हम तुझे याद रखेंगे समूचे जनप्रतिनिधित्व को चोर, ठग, भ्रष्ट, बेईमान और देशद्रोही बना डालने के लिए। प्रतिस्पर्धी समूहों को अविवेकी, अनुदार, उच्छृंखल, उजड्ड और टकरावी झुंडों में बदल डालने के लिए, मतदाताओं से उनका दायित्वबोध और उनकी समझदारी छीन लेने के लिए और उनकी नागर सभ्यता को कुचल देने के लिए। हम तुझे याद रखेंगे निर्थक पल्रापों के लिए, नौटंकीभरे विलापों के लिए, अपस्तरीय क्रियाकलापों के लिए। एक-दूसरे को मिटा डालने की प्रतिज्ञाओं के लिए, जो भी सत् है उसकी सतत् अवज्ञाओं के लिए। किसानों, मजदूरों की कठखनी समस्याओं के दंतविहीन समाधान प्रस्तुत करने के लिए, इन वगरे को चुनावी माल में तब्दील कर देने के लिए और उनके कटोरे में थोड़ी सी भीख के अलील आवासन डालकर उनकी अस्मिता का अपमान करने के लिए। बेरोजगारों का मजाक उड़ाने के लिए और उनकी ज्वलंत समस्याओं से बेशर्मी से पिंड छुड़ा लेने के लिए।
हम तुझे याद रखेंगे औरत का अभद्र रूप प्रस्तुत करने के लिए या उसके नारीवत रूप के प्रति अभद्रता प्रस्तुत करने के लिए। साध्वी रूप में उसे जड़ता और संकुचन की प्रतिमूर्ति दिखाने के लिए और उसके स्वातंत्र्य चेता रूप को गाली बना देने के लिए। हम तुझे याद रखेंगे बड़ी से बड़ी लोकतांत्रिक संस्था पर हितानुसार अभद्र आरोप मढ़ देने के लिए, अपने क्षुद्र स्वाथरे की पूर्ति के लिए उनके धीर-गंभीर चेहरे पर पक्षपात के थप्पड़ जड़ देने के लिए और हर संस्था से उसकी गरिमा का हरण कर लेने के लिए। हे चुनाव तुझे याद रखेंगे मीडिया को राजनेताओं का शौचालय बना देने के लिए, क्षुद्र नेताओं के हगे-मूते में उसे लथेड़ देने के लिए, गंदी जुबानों की जुगालियों पर ही जुगाली करने को उसे विवश कर देने के लिए और उसके विराट दायित्व को नेताओं की गोद में स्खलित कर देने के लिए।
हे चुनाव हम तुझे याद रखेंगे देश की हवा में और अधिक जहर भर देने के लिए और लोकतंत्र की कब्र को और अधिक गहरा कर देने के लिए।

विभांशु दिव्याल


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