वैश्विकी : पहली फाइल ईरान

Last Updated 19 May 2019 06:28:39 AM IST

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दुबारा सत्ता की कमान संभालते हैं, तो उनकी सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती विदेश मोर्चे पर ईरान से कच्चे तेल की आपूर्ति सुनिश्चित रखने की होगी।


वैश्विकी : पहली फाइल ईरान

भारत अपनी तेल आवश्यकता का करीब 10 फीसद हिस्सा ईरान से आयात करता है। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा ईरान पर लगाए गए कड़े प्रतिबंधों के कारण अब भारत के सामने यह दुविधा है कि वह ईरान से कच्चे तेल का आयात कम करे, बंद करे या जारी रखे। ईरान के खिलाफ अमेरिका के प्रतिबंध काफी समय से जारी थे। लेकिन अब तक भारत समेत कुछ अन्य देशों को अमेरिकी प्रशासन ने प्रतिबंधों में छूट दे रखी थी। यह छूट गत दो मई को समाप्त कर दी गई।
 अमेरिका ने यह चेतावनी भी दी है कि जो भी देश इन प्रतिबंधों की अवहेलना करेगा उसके विरुद्ध कार्रवाई की जाएगी। अमेरिकी फैसले से सबसे ज्यादा दुष्प्रभावित होने वाले देश हैं-भारत, तुर्की और चीन। तुर्की ने अमेरिकी धमकी का मजाक उड़ाया है, जबकि चीन ने इसी हफ्ते प्रतिबंधों के बावजूद ईरान से कच्चा तेल खरीदा है। प्रतिबंधों के इस उल्लंघन के संबंध में अमेरिकी प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है। जहां तक भारत का सवाल है, तेल कंपनियों की ओर से संकेत दिए जा रहे हैं कि वे अमेरिकी प्रतिबंधों का पालन करेंगे। सरकार के स्तर पर अभी किसी स्पष्ट नीति का खुलासा नहीं किया गया है। वजह है कि देश में आम चुनाव चल रहे हैं, और सरकार बनने के बाद ही बड़े फैसले लिए जा सकते हैं।

अमेरिका और ईरान में बढ़े तनाव के बीच सऊदी अरब के तेल टैंकरों पर हमला हुआ है, इसके कारण पश्चिम एशिया में युद्ध के बादल मंडरा रहे हैं, और कच्चे तेल के दाम बढ़ने की आशंका भी पैदा हो गई है। सऊदी अरब ने इस हमले में ईरान का हाथ होने की आशंका जताई है। अमेरिका ईरान से संभावित खतरों के कारण फारस की खाड़ी में बी-52 बमवषर्क विमानों की तैनाती कर रहा है। पश्चिम एशिया में अमेरिका और ईरान के बीच बढ़ते तनाव और प्रतिबंधों के कारण ईरान की अर्थव्यवस्था पर पड़ रहे प्रतिकूल असर की छाया में ईरान के विदेश मंत्री जवाद जरीफ ने इस हफ्ते के शुरू में भारत की यात्रा की। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से अमेरिकी प्रतिबंधों से उत्पन्न परिस्थिति पर विचार विमर्श किया। हालांकि आधिकारिक रूप से बातचीत का ब्योरा नहीं दिया गया, लेकिन कूटनीतिक सूत्रों के अनुसार सुषमा ने जरीफ से कहा कि नई सरकार बनने के बाद इस संबंध में फैसला लिया जाएगा। मोदी सरकार की यह नीति रही है कि वह केवल संयुक्त राष्ट्र की ओर से लागू किए गए प्रतिबंधों पर अमल करने के लिए बाध्य है। किसी एक देश द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों को वह नहीं मानता। अमेरिकी राष्ट्रपति के ईरान के प्रति सख्त रवैये के कारण भारत अपनी इस सिद्धांतवादी नीति पर कायम रहता है, या अमेरिकी दबाव के आगे झुक जाता है, यह अगले महीने ही स्पष्ट हो सकेगा। प्रतिबंधों के बारे में चीन का भी यही रवैया है कि वह एकतरफा प्रतिबंधों को नहीं मानता।
अमेरिकी और ईरान के बीच बढ़ते तनाव के कारण भारत के सामने चाबहार बंदरगाह को लेकर बड़ी दुविधा है। इस बंदरगाह का एक हिस्सा भारत ने पट्टे पर ले रखा है, तथा वहां भारी निवेश किया है। भारत समुद्री मार्ग, सड़क मार्ग और रेल मार्ग वाली एक समन्वित परिवहन प्रणाली का विकास कर रहा है। इस प्रणाली से अफगानिस्तान के साथ ही मध्य एशिया और रूस तक भारत की व्यापारिक गतिविधियां सुगम हो सकेंगी। भारत चाबहार की ‘रणनीतिक संपदा’ को अपने हाथ से निकलने नहीं देगा। यही कारण है कि भारत किसी सूरत में ईरान की नाराजगी मोल नहीं ले सकता।
भारत के लिए यह अवसर सक्रिय कूटनीति दिखाने का है। उसे अमेरिकी प्रतिबंधों के मद्देनजर दुष्प्रभावित होने वाले देशों के साथ एकजुटता कायम करनी चाहिए। भारत और चीन मिलकर कोई संयुक्त रणनीति अपनाते हैं, तो अमेरिका के लिए संभव नहीं होगा कि ज्यादा धौंसपट्टी दिखाए। भारत पर दबाव डालने के लिए अमेरिका के पास आर्थिक दृष्टि से बहुत से हथियार हैं, लेकिन मिस्र की भू-रणनीतिक स्थिति के कारण भारत की भूमिका को वह नजरअंदाज नहीं कर सकता। एशिया के बारे में अमेरिका की जो दूरगामी नीति है, उसमें भारत की केंद्रीय भूमिका है। ऐसे में भारत ईरान के खिलाफ प्रतिबंधों से निजात पाने के लिए कोई न कोई रास्ता खोज सकता है।

डॉ. दिलीप चौबे


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