मीडिया : मोदी की पॉप पॉलिटिक्स

Last Updated 19 May 2019 06:34:10 AM IST

एक नामी टीवी एंकर सामने एक कस्बे के लोगों से पूछ रहा है : क्या विकास हुआ है? जवाब आता है : हां हुआ है। सड़क बनी है। पुल बना है। बिजली आती है। मोदी ने पाकिस्तान को घर में घुसकर मारा है। कोई और होता तो क्या मार पाता?




मीडिया : मोदी की पॉप पॉलिटिक्स

-क्या रोजगार मिला है? कहां मिला है? भीड़ इस पर  ‘मोदी मोदी मोदी मोदी’ चिल्लाने लगती है मानो ‘मोदी मोदी’ ही सब सारे सवालों का जवाब हो। एक रिपरेटर एक आदिवासी इलाके लोगों से पूछ रहा है कि मोदी फिर पीएम बनेंगे? लोग कहते हैं बिल्कुल। खास बात है औरतों का यह कहना कि मोदी हमें पसंद हैं। जब कहते हैं कि राहुल भी तो पीएम बन सकते हैं? तो लोग कहते हैं कि राहुल ठीक हैं, लेकिन उनमें दम नहीं है।
गरीब का आदमी क्यों पीएम नहीं हो सकता? मोदी के पास अपना क्या है? मोदी दमदार है। किसी से डरता नहीं है। चुनाव कवर करने वाली एक नामी पत्रकार लिखती हैं कि इस चुनाव में केंद्रीय मुद्दा ‘मोदी’ ही हैं। मोदी को पसंद करो या न करो, हर बहस में मोदी ही मोदी छाए रहते हैं। यह ‘मोदी-वातावरण’ है जिसे मोदी और भाजपा ने पांच बरस में और भी दुर्भेद्य बनाया है। मीडिया और सोशल मीडिया ने उनको दिन-रात लाइव दिखा-दिखाकर या उन पर टिप्पणियां कर-करके एक सरल किस्म की ‘मोदी ब्रांड पॉपुलर पॉलिटक्स’ नीचे तक पहुंचा दी है। ऊपर दिए कुछ संवाद इसी ‘पॉप पॉलिटिक्स’ की ‘पॉपुलर पदावली’ के उदाहरण हैं। यह आदिवासियों और गांव-कस्बों की महिलाओं की जुबान पर बैठ गई है। टीवी में जो बोला जाता है, दूरदराज के लोग भी उसी भाषा में बोलते हैं।

समकालीन ‘पॉप पॉलिटिक्स’ सबसे बड़ा चालक शब्द है : मोदी मोदी! ‘मोदी मोदी मोदी मोदी’ का नारा वह ‘क्रिटिकल’ मुहावरा है, जिसे मोदी और भाजपा ने दिन-रात गढ़ा है। उनके आलोचक कहते ही रह गए कि यह ‘निरा व्यक्तिवाद’ है, लेकिन यही पॉपुलर हुआ। ‘मोदी मोदी’ घनघोर ‘पॉॅलिटिकल’ शब्द है। उसके लगातार बोलने से एक ऐसा शोरभरा वातावरण बनाता है, जिसमें दूसरी कोई आवाज सुनाई नहीं पड़ती। यह नये किस्म की ‘डबिंग डाउन’ है, जो दूसरे को बोलने नहीं देती। यही ‘मोदी कवच’ है। यह हॉलीवुड की फिल्म ‘कैप्टेन अमेरिका’ की उस ढाल की तरह है, जो हर हमले से बचाती है।
‘मोदी मोदी’ का जो नारा दो हजार चौदह में पहली बार सुना गया था, इस चुनाव में और परवान चढ़ा है। अब तो कैमरे के सामने आते ही लोग ‘मोदी मोदी’ चिल्लाने लगते हैं। यही है मोदी की ‘पॉप पॉलिटिक्स’। इस ‘पॉप पॉलिटिक्स’ का दूसरा महत्त्वपूर्ण शब्द है ‘मजबूत’, जिसे मोदी ने हर रैली में पॉपुलर बनाया है। ‘मजबूत’ बड़ा ही ‘मल्टीपरपज’ शब्द है। ‘मजबूत देश’, ‘मजबूत राष्ट्र’, ‘मजबूत पार्टी’ ‘मजबूत सरकार’। ‘मजबूत’ का विस्तार करने वाला एक और मुहावरा है : ‘घर में घुस के मारा’ यानी ‘आतंकवादियों के घर में घुसकर मारने वाला’ यानी मोदी। इस मुहावरे को खुद मोदी ने ही अपनी रैलियों के जरिए पॉपुलर किया है। चौथा पॉपुलर मुहावरा है : ‘मोदी है तो मुमकिन है’ जैसे मोदी है, तो गारंटी है।
उनके आलोचकों की भाषा तर्कवादी और शुष्क होती है कि पहले सरकार विकास का आंकड़ा बताए, रोजगार का आंकड़ा बताए, किसानों को क्या सही मूल्य मिला, ये बताएं..इसके बरक्स ‘मोदी-मोदी’ नारा सब पर भारी पड़ता है। मोदी देशप्रेम, एकता, ताकत और वीरता की भावनाओं को पकड़ते हैं जबकि उनके आलोचक ‘तर्क’ पर जोर देते हैं। भावना की भाषा तुरंत कनेक्ट करती है। तर्क की भाषा देर से समझ में आती है। इसी ‘पॉप पॉलिटिक्स’ से मोदी ने विपक्ष को निरस्त्र किया है : मोदी के बार-बार बोले गए वाक्य कि ‘कांग्रेस भ्रष्ट और असफल पार्टी है, सत्तर साल में अपना खजाना भरा और कुछ नहीं किया’ जैसे वाक्य मीडिया में बार-बार बजकर नीचे तक उतर गए हैं।
यही नहीं, ‘फिर एक बार मोदी सरकार’ वाले विज्ञापनी नारे के मुकाबले ‘अब होगा न्याय’ जुबान  पर नहीं चढ़ पाया क्योंकि उसमें ‘तुक’ की चिंता नहीं की गई। ‘फिर एक बार मोदी सरकार’ में जैसी सीधी तुकबंदी है, वैसी ‘अब होगा न्याय’ में नहीं दिखती। यही नहीं, चुनाव अभियान के खत्म होते ही मोदी सीधे केदारनाथ के दर्शन करने और एक दिन वहीं गुफा में बिताने चले गए। यह भी उसी ‘पॉप पॉलिटिक्स’ का हिस्सा है। आप इसकी खिल्ली उड़ाएं या मुग्ध हों, ‘पॉप पॉलिटिक्स’ तब भी काम करती है, जब कोई ‘पॉलिटिक्स’ नहीं की जाती। मोदी की इस ‘पॉप पॉलिटिक्स’ के मुकाबले विपक्ष की ‘पॉलिटिक्स’ कुछ -कुछ ‘एलीटिस्ट’ ही नजर आती है। आप मोदीवादी हों या मोदी विरोधी, इस बार के चुनावों के परिणामों को यही ‘पॉप पॉलिटिक्स’ तय करने जा रही है।

सुधीश पचौरी


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