पूर्वाचल : परंपरागत बौद्धिकता, बाहुबल और विकास

Last Updated 16 May 2019 03:29:38 AM IST

यह लोक सभा चुनाव पिछले चुनावों से अपनी तासीर में बहुत अलग लड़ा जा रहा है। पूर्वी उत्तर प्रदेश की लगभग 32 लोक सभा की सीटों को पूर्वाचल में गिना जाता है।


पूर्वाचल : परंपरागत बौद्धिकता, बाहुबल और विकास

यह प्रयागराज से शुरू होकर नेपाल और बिहार से मिलते क्षेत्र तक जाता है। पूर्वाचल की परंपरागत पहचान जुझारू, सजग और संवेदनशील बौद्धिक क्षेत्र के रूप में रही है। सामाजिक और वैचारिक बिखराव के फलस्वरूप यह क्षेत्र विकास, व्यवसाय, रोजगार, शिक्षा, चिकित्सा जैसी बुनियादी सुविधाओं के अभाव में आज जिस स्थिति में खड़ा है, उसके गुनाहगार पूर्वाचल के राजनेता और जनता ही हैं, जो इतने सचेत और सजग होने के बाद भी अपने अधिकारों के लिए संगठित नहीं हो पाए।
इस लोक सभा चुनाव को पूर्वाचल में आशावादी नजरिए से देखा जा रहा है। क्षेत्र में सपा-बसपा गठबंधन और भाजपा के बीच सीधी लड़ाई है। उन्नीस मई को पूर्वाचल की वाराणसी सहित कई सीटों पर मतदान होना है, जिसमें भाजपा अपने पिछले पांच वर्षो के कार्यों के साथ मैदान में है, तो गठबंधन उसकी नाकमियों और खामियों के साथ अपने जातिगत गणित के सहारे लड़ रहा है। 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले पूरे पूर्वाचल में सपा-बसपा ही मुख्य रूप से लड़ रहे थे, यह अलग बात है कि लोक सभा की ज्यादातर सीटों पर भाजपा का कब्जा था।
2017 में सारे समीकरण बदल गए और विधानसभा में भाजपा की मजबूत वापसी हुई, जिसके मुख्य रूप से दो कारण थे। पहला, केंद्र  की योजनाओं का पूर्वाचल में आम जनमानस तक पहुंचना; और दूसरा, तत्कालीन प्रदेश सरकार के प्रति नकारात्मक माहौल। इस लोक सभा चुनाव में स्थिति कुछ दूसरे तरह की है। विपक्ष के नाम पर पूरे पूर्वाचल में गठबंधन लड़ रहा है, जिसकी एकमात्र कोशिश है अपनी सीटें बढ़ाना और भाजपा की सीटें कम करना। लेकिन जो बात गौर करने वाली है वह यह कि विपक्ष केंद्र सरकार के प्रति विरोधी माहौल बनाने में असफल साबित हुआ है, इसलिए भाजपा को रोकने के दूसरे रास्ते अर्थात बाहुबलियों के सहारे लोक सभा में वापसी का प्रयास किया जा रहा है।

जहां तक बहुबलियों की बात है तो पूर्वाचल में गोरखपुर से गाजीपुर तक और वाराणसी और फूलपुर तक 90 के दशक से लेकर 2010 तक पूर्वाचल में हर चुनाव में बाहुबलियों ने अहम भूमिका निभाई। इस बार भी पूर्वाचल की कई सीटों पर कई दलों ने बाहुबलियों और उनके सगे-संबंधियों के सहारे सांसद संख्या बढ़ाने का दांव चला है। बहुचर्चित लोक सभा सीट गाजीपुर को ही देखें। गाजीपुर से भाजपा के वर्तमान सांसद एवं केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा प्रत्याशी हैं, तो उनके विरु द्ध गठबंधन से बाहुबली मुख्तार अंसारी के बड़े भाई अफजाल अंसारी मैदान में हैं। अफजाल गाजीपुर से 2004 में सांसद रह चुके हैं, और मुहम्मदाबाद से कई बार विधायक भी। उनकी राजनीतिक शुरु आत कम्युनिस्ट पार्टी से बतौर विधायक हुई थी, लेकिन जैसे-जैसे कम्युनिस्ट पार्टी का जनाधार घटता गया वैसे-वैसे सपा-बसपा का विस्तार होता गया और अफजाल भी सपा से होते हुए अब बसपा की ओर से गठबंधन के उम्मीदवार हैं। अफजाल की राजनैतिक थाती गठबंधन का जातीय समीकरण और मुख्तार की बाहुबली पहचान और दबदबा है जबकि भाजपा के पास गाजीपुर सहित पूरे पूर्वाचल का विकास। मोदी सरकार ने पूर्वाचल को विकास के अनेक पक्षों से जोड़ा जिसका केंद्र वाराणसी है।
वाराणसी से प्रधानमंत्री सांसद हैं। विकास की लगभग सभी योजनाओं का यहां आना स्वाभाविक था। और सिन्हा ने वाराणसी के पूर्वी हिस्से को योजनाओं से जोड़ने का प्रयास किया। मेडिकल कॉलेज, एयरपोर्ट, स्पोर्ट्स कांप्लेक्स, गंगा नदी के जलमार्ग का टर्मिंनल, हाइवे और रेलवे की अनेक योजनाओं के साथ विकास के हर उस पहलू को गाजीपुर की जनता तक पहुंचाने का प्रयास किया है, जिससे गाजीपुर की पहचान बदले। यही कारण है कि इस लोक सभा के चुनाव में विकास और बाहुबल, दोनों उनके अपने-अपने समर्थकों के बीच चर्चा में बने हुए हैं।  नई पीढ़ी के मतदाताओं ने लोक सभा के चुनाव को पिछले रिवाजों से अलग कर दिया है। यह चुनाव नई पीढ़ी की सोच, आकांक्षा और अपेक्षा पर आधारित है। परिणाम जो होगा, वो होगा, लेकिन इतना तय है कि यह चुनाव नई पीढ़ी की सक्रियता के लिए भी जाना जाएगा। पिछले चुनावों की तरह इस बार जातीय गणित नहीं चल रहा है, और यह भारतीय लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत है।

डॉ. संतोष कु. राय


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment