मुद्दा : जहर है पानी में घुला आर्सेनिक

Last Updated 06 May 2019 05:45:25 AM IST

देश में अभी मई का महीना शुरू ही हुआ है और गर्मी अपना रंग दिखाने लगा। इसी के साथ देश में जल संकट गहराने लगा है।


मुद्दा : जहर है पानी में घुला आर्सेनिक

देश के अधिकांश हिस्सों में पीने का साफ पानी मिलना सपना हो गया है। लोग प्रदूषित पानी पीने को मजबूर हैं। जो पानी पीने को मिल भी रहा है, उसमें आर्सेनिक की मात्रा निर्धारित मानकों से कहीं ज्यादा है। इससे गंभीर जानलेवा बीमारियों का खतरा मंडरा रहा है। देश की अधिकांश आबादी स्थानीय निकायों द्वारा पीने के साफ पानी की समुचित मात्रा में आपूर्ति नहीं किये जाने के कारण भूजल पर ही आश्रित है। वह जैसे तैसे हैंडपम्पों, सबमर्सिबिल पंपों और कुओं के द्वारा ही पीने के पानी की अपनी जरूरत पूरी कर रहे हैं। लेकिन पानी में आर्सेनिक घुला होने के कारण त्वचा, फेफड़े और मूत्राशय व अन्य अंगों के कैंसर, त्वचा का फटना, केरोटोइस और नाड़ी एवं संतानोत्पत्ति से संबंधित जानलेवा बीमारी की चपेट में आकर मौत के मुंह में जा रहे हैं।
केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय तो इस तथ्य का बहुत पहले से ही खुलासा कर चुका है। असलियत यह है कि देश के 23.9 करोड़ लोग आर्सेनिक युक्त पानी को मजबूर हैं। देश की आबादी का 19 फीसद हिस्सा खतरनाक स्तर तक आर्सेनिक की मौजूदगी वाला पानी पी रहा है। आकलन के अनुसार देश के 153 से ज्यादा जिलों के लोग आर्सेनिक युक्त पानी पीने की समस्या से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली के वैज्ञानिक आरपी सिंह अपने एक शोध में इस तथ्य का खुलासा कर चुके हैं कि आर्सेनिक एक भारी वस्तु है। यह हमेशा सतह की ओर पाया जाता है।

घटते भूगर्भीय जल के चलते, खेती में उपयोग में आ रहे रसायन और कारखानों से निकला रसायनयुक्त पदार्थ आर्सेनिक की प्रमुख वजह है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के ऑन्कोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉ. एम. डी. रे इस बारे में कहते हैं कि शरीर में आर्सेनिक की मामूली मात्रा भी यदि लंबे समय तक बनी रहती है तो कैंसर होने की संभावना कई गुणा तक बढ़ जाती है। यदि पानी में खतरनाक आर्सेनिक तत्व मौजूद हैं तो फिर यह गंभीर चिंता का विषय है। देश में पानी में आर्सेनिक की मात्रा की खतरनाक स्तर तक मौजूदगी का दावा करने वाले वैज्ञानिक डॉ. आर. पी. सिंह जिनका शोध अमेरिका के प्रतिष्ठित जर्नल विली में प्रकाशित हो चुका है, का कहना है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के मुताबिक पानी में आर्सेनिक की मात्रा 10 से 50 माइक्रोग्राम प्रति लीटर तक सुरक्षित होती है। हमारे देश में 50 माइक्रोग्राम प्रति लीटर को सुरक्षित माना गया है। उनके अनुसार जब मानकों की जांच के लिए 10 माइक्रोग्राम प्रति लीटर आर्सेनिक वाले पानी को एक महीने तक स्वस्थ कोशिकाओं के संपर्क में रखा गया तो उसमें से कुछ रोगग्रस्त हो गईं। पानी में आर्सेनिक की मात्रा को डब्ल्यूएचओ के सबसे कम मानक को शोध में शामिल किया गया। असलियत में हमारे देश में उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, असम, नगालैंड, मणिपुर, त्रिपुरा, अरूणाचल और पश्चिम बंगाल में इससे पांच गुणा तक अधिक मात्रा में लोग आर्सेनिक मिला पानी पी रहे हैं। केंद्रीय भूजल बोर्ड यह स्वीकार करता है कि खेती में अत्यधिक उर्वरकों के इस्तेमाल ने तस्वीर बिगाड़ने में प्रमुख भूमिका निभाई है। देखा जाए तो पानी में घुला आर्सेनिक ही नहीं, नाइट्रेट और कॉपर भी जानलेवा बीमारियों को जन्म दे रहा है। पीने के पानी में नाइट्रेटों की बढ़ी हुई मात्रा के कारण देश के तकरीब 23 करोड़ से ज्यादा लोगों पर पेट के कैंसर, श्नायु तंत्र और दिल की बीमारियों की तलवार लटक रही है।
इसके अलावा नाइट्रेट का जहर बच्चों में मृत्युकारी ब्लू बेबी सिंड्रोम जैसी बीमारियों को जन्म दे सकता है। इस बीमारी में चार वर्ष तक की आयु के बच्चों के पेट, होंठ व शरीर का रंग नीला पड़ने लगता है। यही नहीं पानी में घुला कॉपर महिलाओं का लिवर खराब कर रहा है। गणोश शंकर विद्यार्थी मेमोरियल मेडिकल कॉलेज (कानपुर) के शोध से यह तथ्य सामने आया है। इस शोध में खुलासा हुआ है कि हैंडपम्प का पानी इस्तेमाल करने वाली 20 से 30 साल की उम्र की अधिकतर महिलाओं में इसके लक्षण पाए गए हैं। परीक्षण में पाया गया कि हैंडपंप के पानी में अधिकांश मात्रा में कॉपर और मेटल था, जो लिवर खराब होने का कारण बना। सरकार विकास के कुछ भी दावे करे, जब देश के तकरीबन नौ राज्यों की 13,958 बस्तियां प्रदूषित भूजल के इस्तेमाल को विवश हैं, उस स्थिति में हालात की भयावहता का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। सरकारी दावे धोखे के सिवाय कुछ नहीं हैं। असलियत यह है कि जब तक देश में लोगों को पीने का साफ और शुद्ध पानी नहीं मिलता, इन बीमारियों से निजात मिलने की उम्मीद बेमानी ही है।

ज्ञानेंद्र रावत


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