फोनी तूफान : आपदा प्रबंधन की मिसाल
भीषण चक्रवाती तूफान फोनी के आने की जैसे ही भविष्यवाणी हुई, उड़ीसा में तो भय की लहर पैदा हुई ही, पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश के तटीय इलाकों में भी लोग अनहोनी के साये में जीने लगे और स्वाभाविक ही पूरा देश चिंतित हो गया।
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आखिर इन चक्रवातों का भारत में भारी तबाही मचाने का रिकॉर्ड तो है ही। 20 साल पहले आए ऐसे ही तूफान से उड़ीस तबाह हो गया था। लगभग 10 हजार लोग मारे गए। तूफान के बीच और जाने के बाद के दृश्य भयावह थे। उसे पल्रय का तूफान कहा गया।
फोनी चक्रवात भी अपने पूरे प्रकोपकारी ताकत के साथ ही आया। 240 किमी प्रतिघंटा की रफ्तार से चल रहीं हवाएं और भारी बारिश क्या कर सकतीं थीं इसकी कल्पना करिए। तूफान के बाद तबाही का मंजर राज्य की सड़कों पर साफ दिखाई देने लगा। भारी बारिश में राज्य की सड़कें पानी में डूब गई। हालांकि प. बंगाल और आंध्र प्रदेश तो बच गया। हां, बांग्लादेश को अवश्य तबाही का सामना करना पड़ा है। किंतु इतने भीषण चक्रवात और उसके द्वारा मचाई गई तबाही के बावजूद भारत जन और धन के महवाविनाश से बच गया और यह पूरी दुनिया के लिए मिसाल है। वास्तव में आपदा प्रबंधन में आपदा आने के पूर्व विनाश को कम करने के लिए उठाए गए कदम, आपदा के बीच उसका सामना करना और आपदा चले जाने के बाद राहत, बचाव और पुनर्वास..तीन बातें आतीं हैं। पुनर्वास तो आगे की बात है लेकिन अन्य मामलों में भारत ने आपदा प्रबंधन की मिसाल पेश किया है और दुनिया इसकी वाहवाही कर रही है।
फोनी के आने की सूचना के साथ ही सारी दुनिया की नजर लग गई थी कि तबाही कितनी ज्यादा होती है? किंतु सब आश्चर्यमिश्रित नजरों से देख रहे हैं कि यह कैसा भारत है, जिसने प्रकृति के ऐसे तांडव का भी सफलतापूर्वक सामना कर लिया। संयुक्त राष्ट्र तक भारत के प्रयासों की जमकर तारीफ कर रहा है। आपदा के खतरे में कमी लाने वाली डिजास्टर रिस्क रिडक्शन फॉर यूनाइटेड नेशंस महासचिव की विशेष प्रतिनिधि और जिनेवा स्थित यूएन ऑफिस फॉर डिजास्टर रिस्क रिडक्शन (यूएनआईएसडीआर) की प्रमुख मामी मिजोटरी ने कहा कि भारत का कम-से-कम नुकसान के दृष्टिकोण ने तबाही में काफी कमी ला पाने में सफलता पाई। उन्होंने भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की फोनी के बारे में सटीक चेतावनी की भी जमकर तारीफ की है। सच है कि मौसम विभाग की सटीक चेतावनी की वजह से ही उड़ीसा के तूफान में जनहानि कम हुई, क्योंकि हमने लोगों को पहले ही शिविरों और शेल्टर होमों में शिफ्ट कर दिया। जो गए वे अपने साथ बहुत सारा सामाने भी ले गए, इसलिए अगर उनका घर सुरक्षित है तो उनको वापस आकर सामान्य जिन्दगी जीने में बड़ी समस्या नहीं है। हां, फसल तबाह हो गए, सामान्य दुकानदारों की दूकानें खत्म हो गई, हजारों घर उड़ गए या पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए और उनको फिर से पुरानी अवयथा में लाने में समय लगेगा, लेकिन जिस तरह पूर्व तैयारी के कारण युद्धस्तर पर काम हो रहा है और केंद्र एवं राज्य के बीच अद्भुत समन्वय है उसे देखते हुए आस्त हुआ जा सकता है।
वास्तव में केंद्र और राज्य के बीच बेहतर तालमेल, समय पूर्व एक-एक पहलू का पूर्वानुमान करते हुए उसके अनुरूप योजना और क्रियान्वयन पर फोकस ने ऐसे भयंकर चक्रवात के विनाश को न के बराबर कर दिया। संयुक्त राष्ट्रसंघ की ईकाई यूएनआईएसडीआर जेनेवा में इस पर चर्चा करने वाला है ताकि दूसरे देशों को भी इसका लाभ मिल सके। अभी तक भारत आपदा प्रबंधन के मामले में पिछड़ा देश माना जाता था। आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में भारत को इसके पूर्व कभी विश्व स्तर पर प्रशंसा शायद ही मिली हो। आखिर वही मौसम विभाग, जिसका उपहास उड़ाया जाता था इतना कैसे बदल गया? मौसम विभाग के नये क्षेत्रीय तूफान मॉडल (रीजनल हरिकेन मॉडल), जो भारत की चक्रवातों में जीरो कैजुएलिटी (हादसा शून्य) का हिस्सा है उसकी मदद से हजारों लोगों की जान बचाने में मदद मिली। इसने दिखाया कि सटीक ट्रैकिंग और पूर्वानुमान लगाने की दिशा में प्रगति हुई है। देश ने निर्णय किया कि तूफानों से एक भी व्यक्ति की मौत न होने की अवस्था प्राप्त करनी है। और उसी के अनुरूप तैयारियों को मूर्तरूप दिया गया। मौसम विभाग का लगभग कायाकल्प हो चुका है।
मौसम विभाग ने स्वयंसेवी संस्थाओं के जरिए लोगों को जागरूक करना आरंभ कर दिया था। फरवरी से ही रेडक्रॉस और क्रीसेंट सोसाइटी तटीय क्षेत्रों में लोगों को प्लास्टिक और बांस से घर बनाने की सलाह दे रहे थे। तूफान आने से पहले ही केंद्र सरकार ने आरंभिक 14 हजार करोड़ की राशि निर्गत कर दी। उड़ीसा में स्थानीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन दल या एनडीआरएफ की टीमें सक्रिय थीं। एनडीआरएफ ने 65 टीमें उतारीं, जो किसी क्षेत्र में अभी तक की सबसे बड़ी तैनाती है। एक टीम में 45 लोग शामिल थे। तूफान के दिन से लेकर अब तक ओडिशा, आंध्र प्रदेश और बंगाल की सड़कें दुरु स्त करने, कानून-व्यवस्था और भोजन की व्यवस्था के लिए अतिरिक्त टीमें लगाई गई हैं। वास्तव में फोनी से निपटने के लिए युद्धस्तर पर तैयारी थी। पुरी के गोपालपुर में सेना की तीन टुकड़यिां स्टैंडबाय पर थीं और पनागर में इंजिनियरिंग टास्क फोर्स थी। भारतीय वायुसेना ने दो सी -17, दो सी-130 और चार एएन-32 को स्टैंडबाय पर रखा था। नौसेना ने राहत कार्यों के लिए 6 जहाजों को तैनात किया। मेडिकल और डाइविंग टीम अलर्ट पर थीं। देश में साधनहीनता का रोना रोने वाले नहीं समझेंगे और वे इनमें से भी मीनमेख निकालेंगे। पर देख लीजिए, न राज्य सरकार ने केंद्र की कोई शिकायत की और न केंद्र ने किसी तरह राज्य सरकार को लपेटने की कोशिश, जबकि चुनाव चल रहा है। एक ओर प्रधानमंत्री अधिकारियों के साथ बैठक कर रहे हैं तो दूसरी ओर मुख्यमंत्री अपने यहां और दोनों के बीच भी कॉन्फ्रेंस हो रहा है। यही व्यवहार अपेक्षित है।
राजनीति अपनी जगह देश का काम अपनी जगह। राज्य एवं केंद्र की मशीनरी के बीच तालमेल का अभाव भी ऐसी विपदा में चुनौतियां बनता था। किंतु इस बार ऐसा नहीं था। ओडिशा सरकार ने लोगों को सचेत करने में और सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने में पूरी मशीनरी झोंक दी थी और केंद्र की टीमें वहां उनके अनुसार सहयोग में लगीं थीं। क्या आप कल्पना कर सकते थे कि बिना किसी हो-हल्ला के 12 लाख से ज्यादा लोग बस्तियां खाली कर तूफान से बचने के लिए निर्मिंत शेल्टरहोमों या शिविरों में चले जाएंगे? ऐसा ही हुआ। ओडिशा तो भारत का एक पिछड़ा राज्य है। अगर वहां यह चमत्कार हो सकता है तो अन्य जगह क्यों नहीं हो सकता।
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