भारत में जैसे भ्रष्टाचार को स्वीकृति
भारत में जैसे भ्रष्टाचार को लगभग स्वीकृति सी मिल चुकी है, किसी भी विभाग में कोई भी काम कराना हो चपरासी से लेकर अफसर तक सबकी यथायोग्य भेंट पूजा को आम जनता ने खुशी से आत्मसात सा कर लिया है।
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आए दिन पड़ने वाले छापों में होने वाली ऊपर की कमाई की बरामदगी की खबरा से कोई नहीं चौंकता, लेकिन दिल्ली हाई कोर्ट के तत्कालीन जज जस्टिस यशवंत वर्मा के सरकारी आवास के स्टोर रूम में 14 मार्च की आधी रात को लगी आग बुझाने पहुंचे अग्निशमन कर्मियों को अधजले नोटों की गड्डियां मिलने की खबर जब आई थी तो सब चौंक गए थे।
जज के घर से नकदी की बरामदगी साफ कदाचार की घटना थी, मगर कार्रवाई के नाम पर उन्हें वापस इलाहाबाद हाईकोर्ट भेज दिया गया।
वर्मा खुद को निदरेष बताते हुए अपने खिलाफ षडय़ंत्र की बात कहते रहे। मामले की जांच के लिए गठित समिति की शुरुआती रिपोर्ट पर कार्रवाई करते हुए पूर्व प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना राष्ट्रपति द्रौपदी मुमरू और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ महाभियोग चलाने की सिफारिश कर चुके हैं।
अब जो ब्योरा सामने आया है; उसके तहत जांच समिति ने 10 दिन की पड़ताल और 55 गवाहों के बयान के आधार जज वर्मा के खिलाफ ठोस सबूत जुटाए हैं और उन्हें हटाने की सिफारिश की है।
64 पन्नों की रिपोर्ट में समिति ने जस्टिस वर्मा की बेगुनाही की दलीलों को सिरे से खारिज कर दिया। अग्निकांड के अगले ही दिन तड़के कोठी से अधजले नोटों की सफाई कर देने की घटना ने बड़ा मात्रा में नकदी होने के संदेहों को पुख्ता कर दिया।
रिपोर्ट में कहा कि जस्टिस वर्मा के घरेलू स्टाफ ने अपने मालिक के पक्ष में बयान दिए, लेकिन अग्निशमन और दिल्ली पुलिस के स्वतंत्र गवाहों के बयान से साफ है कि जज के सरकारी आवास पर 4-5 बोरियों में नोटों की गड्डियां थीं। परस्पर विरोधी बयानों का विश्लेषण करने के बाद समिति ने घरेलू कर्मचारियों का झूठ पकड़ लिया। समिति ने पाया कि जस्टिस वर्मा की दलीलें सच्चाई से कोसों दूर हैं। पाया गया कि स्टोर पर घर वालों का गुप्त या सक्रिय नियंत्रण था। घटना की एफआईआर न कराने और वर्मा के चुप्पी साध लेने से मामला खुल गया।
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