वैश्विकी : काबुल में शांति की नयी कवायद
पवित्र रमजान महीने की शुरुआत होने में अभी एक-दो दिन बाकी हैं, और अफगानिस्तान में संघर्ष समाप्त करने की कवायद फिर से शुरू हुई है।
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तालिबान और अफगान सरकार के बीच किसी प्रकार के संघर्ष विराम की कोशिश के लिए धार्मिक-मजहबी नेताओं के सूमह लोया जिरगा की बैठक बीते बृहस्पतिवार को समाप्त हुई है। इस ऐतिहासिक शांति सम्मेलन में पूरे अफगानिस्तान से शिरकत करने आए करीब 3500 प्रतिनिधियों ने तत्काल और स्थायी संघर्ष विराम की मांग की।
सम्मेलन में प्रतिनिधियों ने काबुल सरकार और तालिबान के बीच बातचीत शुरू करने की अपील की और संयुक्त राष्ट्र से मांग की कि तालिबान को वैश्विक आतंकवादी की प्रतिबंधित सूची से मुक्त करे। हालांकि लोया जिरगा की संस्तुतियों को वैधता प्राप्त नहीं है, और ये सरकार के लिए बाध्यकारी नहीं हैं, लेकिन राजनीतिक नेता इस परिषद की मांगों का सम्मान करते हैं। समय-समय पर लोया जिरगा की बैठक होती हैं, और इनमें पख्तून, ताजिक, हजारा और उज्बेक कबायली नेता एक साथ बैठते हैं। पिछले काफी समय से अफगानिस्तान की मुख्य समस्या संघर्ष की स्थिति समाप्त करने के लिए तालिबान को राजी करना रही है। पिछले अठारह वर्षो से अफगानिस्तान में संघर्ष जारी है, और अमेरिका तथा उसके सहयोगी देशों की ओर से सैनिक कार्रवाई से लेकर अन्य सभी उपाय तालिबान को निर्णायक रूप से परास्त करने में विफल सिद्ध हुए हैं।
काबुल में बातचीत की कोशिश अभी चल रही थी कि श्रीलंका के भीषण बम-विस्फोट और इस्लामी स्टेट के सरगना अबु बक्र अल बगदादी के फिर से प्रकट होने से अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में चिंता पैदा हो गई है। बगदादी के बारे में कल तक दावा किया जा रहा था कि या तो उसकी मौत हो गई है, या वह पूरी तरह निष्क्रिय है। लेकिन इस आतंकी सरगना के वीडियो संदेश से जाहिर हुआ है कि वह जिंदा है। उसने श्रीलंका की तबाही की जिम्मेदारी ली और वहां विस्फोटों को सीरिया में इस्लामी स्टेट के गढ़ को तबाह किए जाने का बदला बताया। श्रीलंका के बम-विस्फोटों से यह बात उजागर हुई कि अफ्रीका और एशिया में यह आतंकवादी संगठन अभी भी नर-संहार करने की क्षमता रखता है। बगदादी ने अपने संबोधन में अफगानिस्तान, पाकिस्तान और दक्षिण एशिया के बारे में भी जानकारी दी, जो भारत के लिए भींिचंता का विषय है। इस्लामी स्टेट इस क्षेत्र को खुरासान (या खोरासान) सूबा कहता है। प्राचीन खोरासान मध्य एशिया का ऐतिहासिक क्षेत्र था, जिसमें अफगानिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान और पूर्वी ईरान के हिस्से शामिल थे। आधुनिक ईरान में एक खोरासान प्रांत है। बगदादी का दावा है कि खोरासान सूबे में कई मुजाहिद्दीन संगठन एक-के-बाद एक इस्लामी स्टेट के प्रति निष्ठा व्यक्त कर रहे हैं। ये मुजाहिद्दीन काफिरों के खिलाफ जंग जारी रखेंगे। बगदादी की घोषणा को जम्मू-कश्मीर से भी जोड़कर देखा जा सकता है। कुल मिलाकर भारत में इस्लामी स्टेट का कोई असर नहीं दिखाई देता। लेकिन श्रीलंका के बम विस्फोटों के बाद तमिलनाडु और केरल में मारे गए छापों से चिंता के संकेत मिल रहे हैं। छुटपुट पैमाने पर भी यदि दक्षिण भारत के राज्यों और पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर के असम जैसे राज्यों में इस्लामी स्टेट ने अपने पांव जमाना शुरू किए तो भविष्य में यह बड़ा खतरा बन सकता है।
यह संयोग मात्र है कि इस महीने की पहली तारीख को कतर में अमेरिकी अधिकारियों और तालिबान के प्रतिनिधियों के बीच शांति वार्ता शुरू हुई और इस महीने के दूसरे हफ्ते में पवित्र रमजान शुरू हो रहा है। उम्मीद कम है कि इस बातचीत का कोई सार्थक परिणाम सामने आएगा। तालिबान का मानना है कि काबुल सरकार और अमेरिका जब तक सभी विदेशी सैनिकों की वापसी पर सहमत नहीं हो जाते तब तक देश के घरेलू मुद्दों पर कोई चर्चा नहीं होगी। इस बीच, तालिबान के हमले जारी हैं। अफगानिस्तान के आधे से ज्यादा भू-भाग पर तालिबान का कब्जा है। यह आतंकी समूह राष्ट्रपति अशरफ गनी की सरकार को वैध नहीं मानता है। इसका मानना है कि यह सरकार अमेरिका की कठपुतली है। जाहिर है कि सरकार के प्रतिनिधियों के साथ बातचीत करने को तालिबान राजी नहीं है। इसलिए ईद के अवसर पर भी शांति स्थापित करने की कवायद सफल हो पाएगी, कहना मुश्किल है।
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