मीडिया : रोड शोज की राजनीति

Last Updated 28 Apr 2019 06:45:36 AM IST

एक चैनल में वाराणसी में हुए पीएम मोदी के विशाल रोड शो की चरचा हो रही थी। एक चुनाव विशेषज्ञ का कहना था कि यह रोड शो 2014 के रोड शो से भी अधिक भीड़ खींचने वाला था।


मीडिया : रोड शोज की राजनीति

एक कहने लगा कि पांच लाख की भीड़ थी। दूसरे ने कहा कि मीडिया तो सात लाख की भीड़ बता रहा है; लेकिन यह किसी ने न बताया कि ‘रोड शो’ हमारी  राजनीति और जनतंत्र के मानियों को किस तरह बदले जा रहे हैं।
रोड शो वाकई शानदार था। रास्ते भर गुलाब के फूल ही फूल निछावर थे। मोदी, मोदी के नारे जोरशोर से थे। जगह-जगह ठंडे पानी और ठंडे शर्बत का इंतजाम था। भीड़ के कारण गाड़ी सिर्फ  सरक रही थी। गंगा आरती का समय निकला जा रहा था।
रिपोर्टर बताते रहे कि मोदी की एक झलक पाने के लिए लोग बेताब हैं। सड़क और छतों पर लोग खड़े हैं। प्रसन्नवदन मोदी हाथ हिलाकर सबका अभिवादन कर रहे हैं। भीड़ के सबसे अच्छे व्याख्याकार स्वयं मोदी हैं। वे सबसे पहले भीड़ के आकार और उसके मूड-मिजाज को भांपते हैं, और फिर भीड़ से अपनापा जोड़ने वाली कोई बात कह कर भीड़ को अपना बना लेते हैं। जो भाजपा के नहीं, वे भी उनके दीवाने हो उठते हैं, और उनकी हर बात पर ताली मारने लगते हैं। उनकी रैलियों और रोड शोज में ऐसा ही दिखता है।
वाराणसी के रोड शो के बाद ज्यों ही उन्होंने कहा कि कल वाराणसी ने अपना ‘फैसला’ दे दिया है, तो जोरदार ताली पड़ी यानी कि जनता का अप्रूवल मिल गया है कि ‘फिर एक बार मोदी सरकार’!

जनता से सीधे कनेक्ट करने का जैसा भाषा कौशल मोदी के पास है, भाजपा के किसी दूसरे नेता के पास नहीं। अमित शाह के पास भी नहीं। और विपक्ष के भी किसी नेता के पास नहीं।
अपने नेता जनसभाओं और रैलियों का आयोजन करते आए हैं, रोड शो करने का चलन कुछ नया है।  सबसे पहले लालकृष्ण आडवाणी ने ‘राम रथयात्रा’ (1990) निकालकर धार्मिंक-राजनीति का पहला रोड शो किया था। विभिन्न धार्मिंक झांकियां भी रोड शो की तरह निकलती हैं। लगता है कि आडवाणी जी ने उन्हीं से प्रेरणा ली थी। लेकिन समकालीन ‘रोड शोज’ का मतलब सिर्फ राजनीतिक शो नहीं है, बल्कि कुछ और भी है। पश्चिमी दुनिया में ‘रोड शो’ मूलत: कंपनियों के ‘आइपीओ’ (इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग) यानी किसी कंपनी के ‘स्टॉक’ या शेयर को लोंच करने लिए आयोजित किए जाते हैं।
पिछले ही दिनों चीन की ‘ई-कॉमर्स’ की एक नामी कंपनी ‘अलीबाबा’ ने एक बड़ा ‘रोड शो’ करके लोगों के बीच 25 बिलियन डॉलर के शेयर बेचे। ‘रोड शो रिव्यूड’ (देखिए इनवेस्टापीडियाडॉटकॉम) लेख में टिप्पणी करते हुए जेम्स चेन और क्रिस हर्फी ने बताया है कि ‘रोड शो’ मूलत: बिजनेस के लिए होते हैं। ‘रोड शो’ कंपनी और उसके  ‘स्टॉक’ (शेयरों) के प्रति  लोगों में उत्सुकता, दिलचस्पी और उत्तेजना पैदा करते हैं। ‘रोड शो’ बताते हैं कि इन दिनों क्या बिक रहा है? कितने में बिक रहा है, और कितना लाभ देगा? रोड शो में मल्टीमीडिया का उपयोग होता है। उसका काम निवेशक (इन्वेस्टर) के मन में उत्साह पैदा करना होता है..। इस उदाहरण से देखें तो रोड शो के जरिए वे कंपनी के शेयर बेचते हैं, हम लोग पार्टी का रोड शो करके पार्टी रूपी कंपनी के शेयर बेचते हैं। लोग हमारे विचारों को खरीदें यानी हमें वोट दें ताकि पार्टी रूपी कंपनी घाटे में न रहे। पार्टी का स्टॉक बढ़े तो अपना भी स्टॉक बढ़े।
‘रोड शो’ बिजनेस के ‘सांस्कृतिक संस्करण’ हैं। वे बिजनेस को सुंदर और प्रिय बनाते हैं ताकि बिजनेस की निर्मम कठोर स्वार्थपरता कुछ नरम नजर आए। कंपनी का हिस्सा खरीद क र लोग स्वयं को कंपनी समझें, कंपनी का हिस्सेदार समझें और कंपनी के भाग्य को अपना भाग्य समझें। वो उछले तो आप उछलें। जब वो डूबे तो आप भी डूबें और असली मालिक अपने को दिवालिया घोषित कर, मजे लूटता रहे। हमारे अनुसार ‘रोड शो’ प्रकारांतर से मौजूदा राजनीति के तौर-तरीकों को बदल रहा है। अब हम नागरिक नहीं होते,‘जनता’ नहीं होते, कंपनी का हिस्सेदार बन जाते हैं। 
अगर रोड शो के इस रूपक को आगे बढ़ाएं तो रोड शो में आने पर हर पार्टी अंतत: एक कंपनी में बदल जाती है, और हर वोटर उसके विचार का एक शेयर होल्डर बन जाता है, जिसका शेयर लेने के बाद यानी चुनने के बाद, उस पार्टी रूपी कंपनी पर कोई हक नहीं रहता। जरा देखिए तो ‘रोड शो’ का शौकीन अपना जनतंत्र कहां आ गया है? वह अब जनतंत्र नहीं, विभिन्न दलों रूपी कंपनियों का ‘स्टॉक मारकेट’ जैसा बन चला है।

सुधीश पचौरी


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment