वैश्विकी : भारत के लिए सबक

Last Updated 28 Apr 2019 06:41:37 AM IST

श्रीलंका में इस सप्ताह राजधानी कोलंबो सहित कई नगरों में हुए घातक बम विस्फोटों ने जेहादी खतरे की ओर दुनिया का ध्यान बहुत शिद्दत के साथ आकृष्ट किया है।


वैश्विकी : भारत के लिए सबक

इस हमले में खलीफाशाही स्थापित करने का मंसूबा रखने वाले इस्लामिक स्टेट का हाथ साबित हुआ है। माना जा रहा था कि इराक और सीरिया में अमेरिका और रूस की सैनिक कार्रवाइयों से आईएस का सफाया हो गया है, और बड़े भूभाग पर कब्जा रखने वाला यह संगठन कोने में सिकुड़ गया है। श्रीलंका का हमला इस अनुमान को झुठलाता है। इस जेहादी संगठन की यह क्षमता उजागर हुई है कि वह दुनिया के किसी भी देश में आतंकी घटनाओं को अंजाम दे सकता है। यूरोप और अमेरिका जैसे देशों द्वारा आव्रजन के कड़े नियमों लागू करने और संदिग्ध आतंकी संगठनों पर कड़ी निगरानी रखे जाने के कारण वहां किसी हिंसक कार्रवाई को अंजाम देना दुष्कर है। लेकिन उन देशों में जहां सुरक्षा और खुफिया प्रणाली चाक-चौबंद नहीं है, आतंकियों की घुसपैठ और ऐसी घटनाओं की योजना बनाकर खूनखराबा करना ज्यादा मुश्किल नहीं है। श्रीलंका पर हमले इसी हकीकत की निशानदेही करते हैं।
आतंकी हमलों से भी खतरनाक दुनिया में जेहादी विचारधारा का प्रचार-प्रसार है। मुस्लिम आबादी वाले देशों सहित यूरोप और अमेरिका में भी इस विचारधारा को फैलाया जा रहा है। आतंकी अब मदरसों से नहीं, बल्कि विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षा संस्थान भी जेहाद की नर्सरी बन गए हैं। श्रीलंका के आत्मघाती हमलावर संपन्न परिवारों से और शिक्षित युवक थे।  श्रीलंका को आतंकवाद से लड़ने का दशकों पुराना अनुभव है। तमिल छापामार संगठन लिट्टे के खिलाफ वहां के सुरक्षा बलों ने जंग जीती है। ऐसे देश में इतने बड़े हमले के प्रति सरकार कैसे बेखबर रही, यह चिंता का विषय है।

भारत के लिए चिंता की बात यह है कि श्रीलंका में हुए हमलों के तार दक्षिण भारत से जुड़े हैं। एक आत्मघाती हमलावर मोहम्मद हाशिम लंबे समय तक दक्षिण भारत के कई राज्यों में रहा है। हमले के लिए जिम्मेदार नेशनल तौहीद जमात (एनटीजे) का भी दक्षिण भारत के एक इस्लामी संगठन से संबंध माना जा रहा है। जेहादी आतंकवाद पर नजर रखने वाले विश्लेषकों के अनुसार दुनिया में करीब पंद्रह से अधिक देशों में जेहादी इस्लामिक संगठन अपनी कार्रवाइयों को अंजाम दे सकते हैं। एशिया में अफगानिस्तान, पाकिस्तान, सीरिया, फिलीपींस, सऊदी अरब और इराक में इनकी मौजूदगी है। अफ्रीका के मिस्त्र, लीबिया, कांगो, माली, सोमालिया और नाइजीरिया में भी आईएस की मौजूदगी है। रूस और पूर्व सोवियत संघ के देशों में भी यह संगठन अपनी जड़ें जमाने की कोशिश कर रहा है। 
सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि जेहादी आतंकवाद की विचारधारा सऊदी अरब के बहावी  इस्लाम से ओतप्रोत है। सऊदी अरब दुनिया भर में बहावी इस्लाम का प्रचार करता है, और मदरसों और मजहबी संगठनों का वित्त पोषण करता है। ऊपरी तौर पर इन संगठनों को आतंकी नहीं कहा जा सकता। लेकिन इस प्रकार के धर्म प्रचार की परिणति जेहाद के रूप में सामने आ रही है। चिंता की बात यह है कि अमेरिका और पश्चिमी देश सऊदी अरब को अपना सहयोगी देश मानते हैं, और भू-रणनीति के आधार पर उसे समर्थन देते हैं।
आतंकवाद से दशकों से जूझ रहा भारत भी सऊदी अरब से आने वाली इस विचारधारा को रोकने में सफल नहीं हो पाया है। रक्षा विश्लेषक ब्रह्मचलानी का मानना है कि जाकिर नायक जैसे बहावी धर्म प्रचारकों को वर्षो तक भारत में खुली छूट मिली रही। उसे सामान्य धर्मपरायण और शांतिपूर्ण धर्म प्रचारक माना गया। बांग्लादेश में आतंकी घटनाओं के बाद जाकिर नायक का आतंकी चेहरा सामने आया। उसने भारत छोड़कर मलयेशिया में शरण ली है। इसी तरह श्रीलंका के आतंकी हमलों से जुड़े आतंकी संगठन एनटीजे का संबंध भारत की तमिल नेशनल तौहीद जमात (टीएनटीजे) से माना जा रहा है। तमिलनाडु का यह संगठन आतंकवादी घटनाओं और जेहादी विचारधारा को नकारने का दावा करता है। संगठन के अनुसार वह केवल शांतिपूर्ण धर्म प्रचार, सामाजिक कार्य और राहत गतिविधियां चलाता है। श्रीलंका के हमले के बाद भारत की खुफिया और सुरक्षा एजेंसियां ऐसे संगठनों पर कड़ी निगरानी रखेंगी।

डॉ. दिलीप चौबे


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