वैश्विकी : वैश्विकी चुनाव पर दुनिया की नजर

Last Updated 07 Apr 2019 01:14:10 AM IST

भारत में आम चुनाव के नतीजों को लेकर दुनिया के बड़े देशों, मुस्लिम और पड़ोसी देशों में भावी सरकार की संभावित विदेश नीति पर नजर रखी जा रही है।


वैश्विकी : वैश्विकी चुनाव पर दुनिया की नजर

अधिकतर देश दुनिया में बड़ी आर्थिक-सैनिक शक्ति के रूप में उभर रहे भारत की विदेश नीति में एक निरंतरता देखने के इच्छुक हैं। पाकिस्तान को छोड़ कर शायद ही और कोई देश हो, जो भारत में सत्ता परिवर्तन की प्रतीक्षा कर रहा है। नरेन्द्र मोदी की सक्रिय विदेश नीति ने पिछले पांच वर्ष की अवधि में ‘सबका साथ, सबका विकास’ के घरेलू नारे को अंतरराष्ट्रीय आयाम दिया है और परस्पर विरोधी देशों के साथ संबंधों में संतुलन कायम किया है। बड़े देश अपने भू-रणनीतिक उद्देश्यों को हासिल करने के लिए भारत को अपने खेमे में शामिल करने के लिए कवायद में हैं, लेकिन भारत ने अपनी कूटनीतिक स्वायत्तता को बरकरार रखते हुए किसी प्रकार के सैनिक गठजोड़ के साथ जुड़ने से मना कर दिया है। यही कारण है कि जहां एक ओर भारत अमेरिका, जापान और आस्ट्रेलिया वाले चतुष्कोणीय गठबंधन के साथ भी संपर्क में हैं और वहीं रूस और चीन के नेतृत्व वाले संघाई सहयोग का सदस्य भी है।

किसी देश के चुनाव में बाहरी देशों का हस्तक्षेप कोई अनोखी बात नहीं है। छोटे देशों में तो अनुकूल सरकार स्थापित करने के लिए बाहरी हस्तक्षेप एक आम बात रही है। बदलते हुए अंतरराष्ट्रीय समीकरण के कारण अब अमेरिका जैसे ताकतवर देश में भी इसे लेकर चर्चाएं होती हैं। राष्ट्रपति ट्रंप की विजय में रूस की भूमिका अमेरिका की घरेलू राजनीति में एक बड़ा मुद्दा रही है। भारत के आम चुनाव के बारे में ऐसा कोई स्प्ष्ट संकेत नहीं मिलता कि अमेरिका, रूस और चीन जैसा कोई बड़ा देश किसी प्रकार की पसंद या नापसंद का इजहार कर रहा हो। पड़ोसी देशों में पाकिस्तान अपवाद है, जो किसी कीमत पर भारत में सत्ता परिवर्तन देखने के लिए लालायित है। पाकिस्तान तमाम माध्यमों से माहौल बनाने की अवश्य कोशिश कर रहा है। इसे नरेन्द्र मोदी की विदेश नीति की सफलता माना जाएगा कि सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात जैसे संपन्न और शक्तिशाली देश उनके प्रति अनुकूूल रुख रखते हैं और शायद इस चुनाव में उनकी जीत भी चाहते हैं।
चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री मोदी को संयुक्त अरब अमीरात के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘जायद मेडल’ से नवाजा जाना कूटनीतिक दृष्टि से महत्त्व रखता है। इस मौके पर आबूधाबी के युवराज मोहम्मद बिन जायद ने कहा कि भारत के साथ उनके ऐतिहासिक और सामरिक संबंध हैं और इनको आगे बढ़ाने में प्रधानमंत्री मोदी की अहम भूमिका है। सऊदी अरब के शासक मोहम्मद बिन सलमान भी नरेन्द्र मोदी को अपना बड़ा भाई मानते हैं। वह फरवरी में दो दिन की भारत यात्रा पर आए थे। दोनों नेताओं के बीच हुई व्यापक बातचीत के बाद आतंकवाद और उग्रवाद को साझा चिंता बताया गया और पांच समझौते भी हुए। भारत और सऊदी के बीच आज जिस तरह के आर्थिक-रणनीतिक संबंध हैं, उनकी पहले कल्पना भी नहीं की जा सकती थी।
हिन्दुत्ववादी राजनेता की छवि रखने वाले नरेन्द्र मोदी प्रमुख इस्लामी देशों का समर्थन और सद्भावना हासिल करने में सफल रहे हैं। यह बड़ी बात है। इन संबंधों के आर्थिक आयाम भी हैं। खाड़ी देशों में 60-70 लाख भारतीय कार्यरत हैं और विदेशी मुद्रा के रूप में भारत को इससे अरबों डॉलर मिलता है। सऊदी के शासक सलमान ने पाकिस्तान की तरह ही भारत में भी बड़े पैमाने पर निवेश का भरोसा दिलाया है।
जेहादी आतंकवाद और मुस्लिम कट्टरता से जूझ रहे भारत के लिए भी यह बहुत संतोष की बात है कि सऊदी अरब और अरब अमीरात जैसे देश भारत के साथ खड़े हैं। जानकार मानते हैं कि सऊदी अरब दुनिया में कट्टरपंथी बहावी इस्लामी विचारधारा का निर्यात करता है। यह विचारधारा दूरगामी दृष्टि से खुले पैमाने पर होने वाली आतंकवादी घटनाओं से ज्यादा गंभीर है। यह विचारणीय है कि इन देशों से रणनीतिक निकटता और आर्थिक संसाधन हासिल करने वाला भारत कट्टरपंथी विचारधारा से अपने आपको किस रूप में सुरक्षित रखता है। फिलहाल, बालाकोट के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव और संघर्ष की स्थिति के दौरान यह तो स्पष्ट हो गया कि इस्लामी देशों के बारे में नरेन्द्र मोदी की विदेश नीति राष्ट्रीय हित को सुरक्षित रखने में सफल रही है।

डॉ. दिलीप चौबे


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