बतंगड़ बेतुक : चाय पर चर्चा छिटका से
अपनी पार्टी से चिपककर कभी न छिटकने वाले चिपका वोटर से हम मुलाकात कर चुके थे, उसकी पार्टी निष्ठा और नेता प्रशस्ति से अपने ज्ञान का भंडार भर चुके थे।
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अब हम किसी छिटका वोटर की तलाश में थे, जो इधर से उधर छिटकता रहता है और जिसे पटाने में पार्टियों को पसीना आ जाता है, पार्टियों के प्रचार का सारा पैसा यही खा जाता है। यह अपनी ही मानता है और किसी की नहीं मानता, इसे कैसे खुश रखा जाए यह भगवान भी नहीं जानता।
उधर, एक कोने में चाय चल रही थी और चाय पर चर्चा भी चल रही थी। जाहिर था कि चर्चा के बीच में चुनाव था और जो हर बात पर अपनी गर्दन नकार में हिला रहा था, वह कोई वोटर महानुभाव था। हमने निकट जाकर पूछा,‘किस पार्टी से हो?’ उसने हमें ऊपर से नीचे तक घूरा, फिर बोला,‘हम किसी पार्टी-सार्टी से नहीं हैं, पर तुझे क्या?’ ‘कुछ नहीं, तुमसे बस यह जानना था कि मोदी सरकार कैसा काम कर रही है, अच्छी लग रही है या बुरी लग रही है?’ हमने कहा। वह बोला,‘काम करना सरकार का काम है, हम क्या बताएं। हमें न अच्छी लग रही है न बुरी लग रही है। हमारे अच्छा-बुरा लगने से कुछ होगा क्या?’
हम समझ गए कि हम सही जगह आए हैं, छिटका से ही टकराए हैं। हमने पूछा, ‘इस सरकार को पांच साल और देंगे?’ छिटका बोला, ‘हम तो पच्चीस साल दे दें, पर पब्लिक देगी क्या?’ हमने कहा,‘सरकार ने बहुत सी योजनाएं चलायी हैं, कौन-सी योजना तुमको पसंद आयी?’ वह बोला, ‘योजना तो हर सरकार चलाती है, पर ये बता कोई योजना तेरी समझ में आयी क्या, कोई योजना हमारे घर आयी क्या?’ हमने उसे कहा, ‘सरकार ने करोड़ों खाते खुलवाए ताकि लोगों का पैसा सीधा उनके खाते में जाए।’ वह झल्लाया, ‘खाता तो हमने भी बहुतों का खुलवाया, पर खाते में कुछ आया क्या?’ हमने कहा,‘सरकार ने स्वच्छता अभियान चलाया। स्वच्छता का संदेश घर-घर पहुंचाया।’ ‘चलाया होगा, पहुंचाया होगा। पर उससे हुआ क्या, हमारा मुहल्ला साफ हुआ क्या?’ वह किचकिचाया। हमने फिर कहा, ‘सरकार ने लाखों लोगों के कर्जे माफ कर दिये।’ वह बोला, ‘कर दिये होंगे। कर्जा हमने भी लिया है, हमारा कर्जा माफ हुआ क्या?’ हमने अगला सवाल दागा,‘सरकार ने सवर्णो को दस फीसद आरक्षण दिया..?’ ‘दिया होगा, हमें आरक्षण मिला क्या?’ छिटका अपनी धुन में बोला।’ हमने आगे कहा, ‘सरकार ने नोटबंदी की, काला धन बाहर निकाला।’ उसने हमारी तरफ तल्ख नजरों से देखा और बोला, ‘सरकार मजाक नहीं कर सकती क्या? बोल काला धन निकला क्या?’ हमने अपनी रौ में कहा,‘सरकार कहती है भ्रष्टाचार कम हुआ है, प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार हुआ है।’ वह अपनी रौ में बोला,‘खाक सुधार हुआ है। हमारे थाने का थानेदार सुधरा क्या? हमारी तहसील का तहसीलदार सुधरा क्या? कोई ठग घूसखोर सुधरा क्या?’ हमने हारकर कहा, ‘सरकार की विदेश नीति पर तो बहुत अच्छा काम हुआ है। विदेशों में बड़ा नाम हुआ है।’ वह बोला,‘हमें क्या पता क्या काम हुआ है, कहां नाम हुआ है। हमें कहीं लेकर गया क्या?’
हमने सरकार पुराण बंद किया और आगे पूछा,‘अच्छा ये बताओ, तुम्हें कौन सी पार्टी अच्छी लगती है-भाजपा, कांग्रेस, सपा, बसपा, जेडीयू, आरजेडी..?’ वह बोला, ‘पार्टी नाम से नहीं काम से अच्छी लगती है। जो काम करेगी वह अच्छी लगेगी, जो काम नहीं करेगी वह अच्छी लगेगी क्या?’ हमने तर्क स्वीकार किया और अगला सवाल आगे किया,‘अच्छा यही बता दो किस पार्टी ने, किस पार्टी की सरकार ने अच्छा काम किया है?’ ‘हम कह दें इस पार्टी ने अच्छा काम किया उस पार्टी ने खराब काम किया या कह दें कि इस पार्टी ने खराब काम किया उस पार्टी ने अच्छा काम किया तो इससे कुछ अच्छा होगा क्या?’ हमने कोई सटीक सा उत्तर निकलवाने की कोशिश की,‘अच्छा यही बता दो मोदी, राहुल, ममता, मायावती, अखिलेश, प्रियंका, तेजस्वी..।इनमें कौन सा नेता अच्छा है? तुम्हें कौन अच्छा लगता है?’ छिटका बोला, ‘कोई नेता देखने में अच्छा लगता है, कोई सुनने में अच्छा लगता है। किसी का काम अच्छा लगता है किसी का नाम अच्छा लगता है। आज एक अच्छा लगता है कल दूसरा अच्छा लगता है। अगर एक को अच्छा बता दें तो दूसरों को अच्छा लगेगा क्या?’
हमने बिना अपना माथा ठोके आगे पूछ लिया,‘तुम्हारे विचार से अगला प्रधानमंत्री कौन होगा?’वह बोला,‘जिसे जनता चाहेगी वह प्रधानमंत्री होगा। हमारे विचार से थोड़े ही होगा, होगा क्या?’ हमने कहा, ‘यही बता दो कि जनता किसे चाहेगी?’ वह बोला, ‘जनता की चाह जनता बतावेगी, चाह बताने हमारे पास थोड़े ही आवेगी, आवेगी क्या?’ हमने थक-हारकर कहा,‘अब की बार भी वोट उसे ही डालोगे जिसे पिछली बार दिया था?’ वह बोला,‘पहले जो गलती की थी उसे फिर दुहराएंगे क्या?’ ‘तो अब की बार किसे वोट दोगे?’ ‘किसे भी दें तुझे बताएंगे क्या?’ कहते हुए छिटका ने उबासी ली। छिटका हमसे छिटकने के मूड में आ गया था। सो हम भी वहां से छिटक लिये।
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