सरोकार : निरापद नहीं खरीदकर पानी पीना

Last Updated 07 Apr 2019 12:38:36 AM IST

हम भूल चुके हैं कि तीन साल पहले मई-2016 में केन्द्र सरकार ने आदेश दिया था कि अब सरकारी आयोजनों में टेबल पर बोतलंबद पानी की बोतलें नहीं सजाई जाएंगी, इसके स्थान पर साफ पानी को पारंपरिक तरीके से गिलास में परोसा जाएगा।


सरोकार : निरापद नहीं खरीदकर पानी पीना

सरकार का यह शानदार कदम असल में केवल प्लास्टिक बोतलों के बढ़ते कचरे पर नियंत्रण मात्र नहीं था, बल्कि साफ पीने के पानी को आम लोगों तक पहुंचाने की एक पहल भी थी। दुखद है कि उस आदेश पर कैबिनेट या सांसदों की बैठकों में भी पूरी तरह पालन नहीं हो पाया। कई बार महसूस होता है कि बोतलबंद पानी आज की मजबूरी हो गया है लेकिन इसी दौर में ही कई ऐसे उदाहरण सामने आ रहे हैं जिनमें स्थानीय समाज ने बोतलबंद पानी पर पाबंदी का संकल्प लिया और उसे लागू भी किया। कोई दो साल पहले सिक्किम राज्य के लाचेन गांव ने किसी भी तरह के बोतलबंद पानी को अपने क्षेत्र में बिकने पर सख्ती से पाबंदी लगा दी। यहां हर दिन सैकड़ों पर्यटक आते हैं लेकिन अब यहां कोई भी बोतलबंद पानी या प्लास्टिक की पैकिंग के साथ प्रवेश नहीं करता। यही नहीं अमेरिका का सेन फ्रांसिस्को जैसा विशाल व्यावसायिक नगर भी दो साल से अधिक समय से बोतलबंद पानी पर पाबंदी के अपने निर्णय का सहजता से पालन कर रहा है। सिक्किम में ग्लेशियर की तरफ जाने पर पड़ने वाले आखिरी गांव लाचेन की स्थानीय सरकार ‘डीजुमा’ व नागरिकों ने मिलकर सख्ती से लागू किया कि उनके यहां किसी भी किस्म का बोतलबंद पानी नहीं बिकेगा।

भारत की लोक परंपरा रही है कि जो जल प्रकृति ने उन्हें दिया है उस पर मुनाफाखोरी नहीं होनी चाहिए।  तभी तो अभी एक सदी पहले तक लोग प्याऊ, कुएं, बावड़ी और तालाब खुदवाते थे। आज हम उस समृद्ध परंपरा को बिसरा कर पानी को स्त्रोत से शुद्ध करने के उपाय करने की जगह उससे कई लाख गुणा महंगे बोतलबंद पानी को बढ़ावा दे रहे हैं। पानी की तिजारत करने वालों की आंख का पानी मर गया है तो प्यासे लोगों से पानी की दूरी बढ़ती जा रही है। पानी के व्यापार को एक सामाजिक समस्या और अधार्मिंक कृत्य के तौर पर उठाना जरूरी है वरना हालात हमारे संविधान में निहित मूल भावना के विपरीत बनते जा रहे हैं, जिसमें प्रत्येक को स्वस्थ तरीके से रहने का अधिकार है व पानी के बगैर जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। 
क्या कभी सोचा है कि जिस बोतलबंद पानी का हम इस्तेमाल कर रहे हैं उसका एक लीटर तैयार करने के लिए कम से कम चार लीटर पानी बर्बाद किया जाता है। आरओ से निकले बेकार पानी का इस्तेमाल किसी अन्य काम में हो सकता है लेकिन जमीन की छाती छेद कर उलीचे गए पानी से पेयजल बना कर बाकी हजारों हजार लीटर पानी नाली में बहा दिया जाता है। प्लास्टिक बोतलों का जो अंबार जमा हो रहा है उसका महज बीस फीसदी ही पुनर्चिक्रत होता है, कीमतें तो ज्यादा हैं ही; इसके बावजूद जो जल परोसा जा रहा है, वह उतना सुरक्षित नहीं है, जिसकी अपेक्षा उपभोक्ता करता है। इस समय भारत में बोतलबंद पानी का कुल व्यापार 14 अरब 85 करोड़ रु पये का है। भारत में 1999 में बोतलबंद पानी की खपत एक अरब 50 करोड़ लीटर थी, आज यह दो अरब लीटर के पार है। पर्यावरण को नुकसान कर, अपनी जेब में बड़ा सा छेद कर हम जो पानी खरीद कर पीते हैं, यदि उसे पूरी तरह निरापद माना जाए तो यह गलतफहमी होगी।

पंकज चतुर्वेदी


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