मीडिया : अति सर्वत्र वर्जयेत

Last Updated 07 Apr 2019 01:17:50 AM IST

अपने पूर्वजों ने कहा है कि ‘अति सर्वत्रा वर्जयेत!’ यानी कि किसी चीज की ‘अति’ नहीं होनी चाहिए।


मीडिया : अति सर्वत्र वर्जयेत

लेकिन आज का मीडिया इसके ठीक उलट चलता है। उसे ‘अति’ अति ही प्रिय है। वह स्वयं अतिवादी  है। अति प्रदर्शन प्रिय है। उसका तो नियम ही है कि जितना अधिक दिखेगा, उतना अधिक बिकेगा और सोशल मीडिया तो ‘अति’ के बिना मानो जी ही नहीं सकता। विज्ञापन उद्योग स्वयं अतिवादी है। इसी ‘दिखाने’ और ‘टिकाने’ के तर्क से चलता है। ‘अति’ करने को वह दोष नहीं ‘गुण’ मानता है। वह समझता है कि जो जितना दिखता है, उतना ही टिकता है और उतना अधिक  बिकता है। 
मीडिया और विज्ञापन इसी ‘अति’ से काम लेते हैं। उनके अनुसार,आदमी को हर तरह से और हर तरफ से हरदम घेरे रहो। उसकी नजरों को हर समय पकड़ते रहो। वह सिर्फ आपको देखे। किसी और को न देखे। वह जहां हो, जैसा हो,उसको कभी अकेला न छोड़ो। इस तरह उसे ‘अभिभूत’ कर डालो। उस पर छा जाओ और फिर देखो वह कहीं जा ही नहीं सकता और आपके बिना एक पल नहीं रह सकता। यानी आप  हर हाल में मनुष्य रूपी ‘उपभोक्ता’ के पीछे पड़े रहिए और इस तरह उसकी आदत, उसका  नशा और उसकी खुराक बन जाइए!
अगर आपका टीवी आपको खास टाइम पर खास पिक्चर या विज्ञापन या चेहरा दिखाता है तो वह यही कर रहा होता है। अपनी ‘अति’ की ‘मार’ से आपको घेर रहा  होता है और इस तरह आपको कब्जे में ले रहा होता है, जबकि आप समझते हैं, वह आपको सिर्फ रिझा रहा है। एक खास बांड कार का विज्ञापन खबरों के बीच पिक्चरों के बीच बार-बार आता रहता है। फिर वही कार आपको पोस्टरों, बैनरों, दीवारों और सड़कों पर नजर आती है। आप उसे सीधे पहचान लेते हैं। पहचान कर अपनी यादाश्त पर गर्व करते हैं कि और कारों के बीच अपनी ब्रांड को पहचान सकते हैं। उसी कार का एक खिलौना मॉडल आप अपने बच्चे के लिए घर ले आते हैं। फिर आप उसी को रेस में देखते हैं। फिर एक दिन आप कार खरीदने जाते हैं और उसी कार को ले आते हैं।

बीस-तीस साल पहले जिस विज्ञापन ने बार-बार टीवी पर आकर आपको घेरा था। आपके दिल में अपनी प्रियता का बीज डाला था,वही आज आपकी हैसियत आपकी क्लास और आपके सुख का साध बन चुकी है। विज्ञापन की ‘अति’ इसी तरह ‘पटाया’ करती है। अगर वह विज्ञापन आपकी नजरों में इतनी इतनी बार न रहा होता तो आप क्या उसको अपने ‘तोष’ का कारण मानते! अगर कार का विज्ञापन अति न करता तो आप कार के नहीं होते। जब एक ही तरह के विज्ञापन टीवी में आपके चाहे बिना बार-बार बरसते थे और फिल्म के बीच में बार-बार विघ्न डालते थे तो आप उनको फास्ट फार्वड कर दिया करते थे। लेकिन इतनी ही देर में उस कार ने आपको मोह लिया। इसी तरह, एक खास बांड के टूथपेस्ट ने आपको मोह लिया। एक खास पेंट ने आपको पटा लिया और आप उसके उपभोक्ता हो गए! ‘अति’ इसी तरह आपको ‘लाचार’ बनाती है।
 अगर कभी ऐसा हो कि टीवी में विज्ञापन आने बंद हो जाएं। बाजार में विज्ञापित बांड्स न  दिखें। उस दिन आप कैसा महसूस करेंगे? आप बेहद गहरा डिप्रेशन महसूस करेंगे क्योंकि आप मीडिया की अति की ‘जगर-मगर’ में बांडों के आदी हो गए थे, उनके बिना आप अपने का एकदम ‘खाली’ यानी ‘रिक्त’ महसूस करेंगे। विज्ञापनों की भरमार, उनकी ‘अति’ आपको ‘भरा-पूरा’ होने और ‘सुरक्षित’ होने का का भ्रम देती है।
ध्यान से देखें तो इन दिनों एक खास तरह की राजनीति,मीडिया के जरिए ऐसी ही ‘अति’ और ऐसा ही ‘भ्रम’ पैदा कर रही है।  एक  चेहरा, एक संदेश, एक नारा हर समय हमारी आंखों के आगे तैरता रहता है। टीवी से लेकर सोशल मीडिया तक ऐसे अतिवादी ‘चिह्न’ भरे हैं।चाय के ‘कप’ में वही चिह्न, पोस्टर में वही चिह्न, बैनर में वही चिह्न, रेली में वही चिह्न, पिक्चर में वही चिह्न, विज्ञापन में वही चिह्न, खबरों में वही चिह्न, चरचा में वही चिह्न, एक नए प्रकार की ‘अति’ है!
इस तरह की ‘अति’ का असर कभी-कभी उलटा भी होता है। लोग अति से ‘उब’ भी जाते हैं। शायद इसीलिए  पुराने लोगों ने कहा होगा कि ‘अति सर्वत्रा वर्जयेत!’ इसीलिए हमारा कहना है कि ‘अति’ में यकीन रखने वालों को वक्त रहते अपनी अति के ‘अतिरेक’ को समझना चाहिए कि अति से लोग ‘ऊब’ जाया भी करते हैं और अगर एक दिन लोग ऊब गए तो आपकी ‘अति’ का क्या होगा?

सुधीश पचौरी


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