नामांकन : उत्तर -दक्षिण में राहुल

Last Updated 02 Apr 2019 06:31:48 AM IST

तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक के तिराहे पर वायनाड काली मिर्च और मसालों की खेती के लिए मशहूर रहा है। यहां की हवाएं तीनों राज्यों को प्रभावित करती हैं।


नामांकन : उत्तर -दक्षिण में राहुल

भारी मुस्लिम आबादी और केरल में इंडियन मुस्लिम लीग के साथ गठबंधन होने के कारण कांग्रेस के लिए यह सीट सुरक्षित मानी जाती है। राहुल यहां से क्यों खड़े हो रहे हैं, इसे लेकर पर्यवेक्षकों की अलग-अलग राय हैं। कुछ को लगता है कि अमेठी की जीत से पूरी तरह आस्त नहीं होने के कारण उन्हें यहां से भी लड़ाने का फैसला किया गया है। इंदिरा गांधी और सोनिया गांधी ने भी अपने मुश्किल वक्त में दक्षिण की राह पकड़ी थी। इंदिरा गांधी 1977 में रायबरेली से चुनाव हार गई थीं। उन्होंने वापस संसद पहुंचने के लिए कर्नाटक के चिकमंगलूर का रु ख किया था। चिकमंगलूर की जीत उनके जीवन का निर्णायक मोड़ साबित हुई। उन्होंने धीरे-धीरे अपना खोया जनाधार वापस पा लिया। सोनिया गांधी ने 1999 में पहली बार चुनाव लड़ा तो अमेठी के साथ ही कर्नाटक के बेल्लारी से भी पर्चा भरा। उनके विदेशी मूल का विवाद हवा में था, इसी संशय में बेल्लारी गई थीं।
राहुल के वायनाड जाने के पीछे हो सकता है कि अमेठी की मुश्किलें भी एक कारण हों पर दूसरे कई सकारात्मक कारण भी नजर आते हैं। वायनाड की भौगोलिक स्थिति से केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु में पार्टी कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ेगा। वहां सीपीएम का किला ध्वस्त हो रहा है। कांग्रेस ने मौके का फायदा नहीं उठाया तो बीजेपी उठा लेगी। राहुल के फैसले का राजनीतिक नुकसान सीपीएम को होने वाला है। इसका अंदाजा प्रकाश करात के बयान से लगाया जा सकता है। उन्होंने कहा है कि लेफ्ट के खिलाफ उम्मीदवार उतारने का मतलब है कि केरल में कांग्रेस बीजेपी नहीं, लेफ्ट को टारगेट कर रही है। हम सुनिश्चित करेंगे कि वायनाड में उनकी हार हो। केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने भी कहा है कि राहुल बीजेपी से लड़ने के लिए नहीं, लेफ्ट से टकराने आ रहे हैं।

राहुल गांधी के वायनाड जाने की औपचारिक घोषणा होने के कई दिन पहले से इसकी अटकलें शुरू हो गई थीं। ज्यादातर लोगों का अनुमान यही है कि उन्हें अमेठी से चुनाव लड़ने में जोखिम नजर आ रहा है। कम से कम स्मृति ईरानी की टीम ने इस खबर को इसी रूप में प्रसारित किया है। दो राय नहीं कि 2014 में स्मृति ने राहुल को जबर्दस्त टक्कर दी थी। पिछले पांच साल में इस क्षेत्र से अपने संपकरे को न केवल बनाकर रखा, बल्कि कई तरह के कार्यक्रम लेकर यहां आई। बावजूद इसके राहुल के दक्षिण भारत की तरफ जाने का एकमात्र कारण यह नहीं है कि वे अमेठी से घबरा गए हैं। पार्टी ने सोच-समझकर दक्षिण के इन तीनों राज्यों में अपने जनाधार को मजबूत बनाने का फैसला किया है। केरल के मालाबार क्षेत्र में पार्टी सीपीएम को ध्वस्त होते देख रही है, जिसका फायदा उठाने के लिए दौड़ी है। वायनाड इन दिनों किसानों की दुर्दशा के लिए भी मशहूर है। इस वजह से वहां जबर्दस्त एंटी-इनकम्बैंसी है। सो, राहुल वहां खुद को किसान-हितैषी के रूप में प्रतिष्ठित करना चाहते हैं। पर असली कारण यह है कि केरल में वामपंथ का किला ढह रहा है, और कांग्रेस उसका पूरा लाभ उठाना चाहती है। 
2014 के लोक सभा चुनाव में कांग्रेस के नेतृत्व वाले युनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) ने मालाबार और उससे जुड़े इलाके की सात में से छह सीटें जीती थीं। पार्टी की केरल शाखा अरसे से कोशिश कर रही है कि राहुल दक्षिण की एक सीट से भी खड़े हों। यह समय पार्टी के रूपांतरण का है और इसकी शुरु आत केरल से हो रही है। राहुल वायनाड से चुनाव लड़ेंगे तो आसपास की सीटों पर भी उसका प्रभाव पड़ेगा।
कुछ लोगों ने राहुल के इस कदम को आत्मघाती बताया। उन्हें लगा कि वाम मोर्चे के मुकाबले में खड़े होकर कांग्रेस बीजेपी के खिलाफ लड़ाई को कमजोर करने जा रही है। केंद्र में कांग्रेस और वाममोर्चे का अच्छा समन्वय है। यह भी सच है कि केरल में दोनों पार्टयिाँ एक-दूसरे की शत्रु हैं। वहां बीजेपी भी धीरे-धीरे जड़ें जमा रही है। हिंदू वोटरों का बड़ा हिस्सा सीपीएम के साथ है। इस इलाके में मुस्लिम वोट बहुसंख्यक है और कांग्रेस-नीत यूडीएफ में इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग महत्त्वपूर्ण ताकत है। राज्य की सबसे बड़ी जनजातीय आबादी भी वायनाड में है। पिछले साल जबर्दस्त बाढ़ के बाद अव्यवस्था के कारण वोटरों का मन सीपीएम से उखड़ा है। उसके बाद सबरीमलाई आंदोलन के कारण हिंदू वोटर का एलडीएफ से मोहभंग हुआ है। सीपीएम से छिटके वोटर का कुछ हिस्सा बीजेपी और कुछ कांग्रेस के पक्ष में जाने की संभावना है।
वायनाड में राहुल का मुकाबला बीजेपी से न होकर कम्युनिस्ट पार्टी के पीपी सुनीर से होगा। इससे वाममोर्चा को नुकसान होगा पर इस वक्त कांग्रेस अपनी स्थिति को मजबूत करने पर ज्यादा ध्यान देगी। इससे राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस और वाममोर्चा के रिश्तों पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। दूसरी तरफ बीजेपी को कांग्रेस के ‘मुस्लिम-परस्त’ होना साबित करने का मौका मिलेगा। बीजेपी की राज्य शाखा के अध्यक्ष पीएस श्रीधरन पिल्लै ने कहा कि राहुल ने वायनाड को इसीलिए चुना कि वहां बड़ी संख्या में मुस्लिम वोट हैं। बीजेपी इस इलाके में भारतीय धर्म जन सेना के साथ है, जिसके पीछे एझवा और थैय्या समुदाय हैं। सबरीमलाई आंदोलन के कारण ये समुदाय नाराज हैं। कांग्रेस ने आंदोलन के दौरान अपना रुख नरम बना रखा था और कोशिश की थी कि हिंदू समुदाय की नाराजगी न बढ़े। 2009 के लोक सभा चुनाव में केरल से सीपीएम के नेतृत्व वाले वाममोर्चा (एलडीएफ) को कुल 20 में से चार सीटें ही मिल पाई थीं। कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ को 16 सीटें मिली थीं। सीपीएम को अब्दुल नसीर मदनी की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी से हुआ गठबंधन भी रास नहीं आया। सीपीएम की दिलचस्पी मुस्लिम वोटों को अपनी तरफ खींचने में थी, पर उसका लाभ नहीं मिला।
मुसलमान वोटर अब कांग्रेस की तरफ रुख कर रहे हैं। 2009 के झटके के बाद सीपीएम ने अपनी छवि की तरफ ध्यान देना शुरू किया। इससे 2014 में एलडीएफ की सीटें चार से बढ़कर आठ जरूर हो गई पर वक्त उसका साथ नहीं दे रहा है। उधर, बीजेपी को राज्य में पैर जमाने की जगह मिल गई तो वामपंथी किले में पड़ी दरार और चौड़ी हो जाएगी। कांग्रेस ने राहुल को मौके का लाभ उठाने के लिए ही भेजा है।

प्रमोद जोशी


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