उपभोक्ता : संरक्षण की नई चिंताएं

Last Updated 03 Apr 2019 05:58:42 AM IST

हाल में प्रकाशित कंसल्टेंसी फर्म बीसीजी की रिपोर्ट 2019 में कहा गया है कि भारत का उपभोक्ता बाजार दुनिया में सबसे तेज गति से बढ़ रहा है।


उपभोक्ता : संरक्षण की नई चिंताएं

2008 में भारत का जो उपभोक्ता बाजार महज 31 लाख करोड़ रुपये था, वह 2018 में 110 लाख करोड़ का हो गया है। और 2028 तक तीन गुना बढ़कर 335 लाख करोड़ का हो जाएगा। भारत का उपभोक्ता बाजार 2008 से सालाना करीब 13 फीसदी बढ़ रहा है। यह वृद्धि देश में बढ़ती आबादी, तेज शहरीकरण, और मध्यम वर्ग के तेजी से बढ़ने की वजह से है। उपभोक्ता बाजार में प्रोडक्ट के साथ-साथ सर्विसेज की डिमांड भी तेजी से बढ़ रही है।  
यकीनन भारत के विशालकाय उपभोक्ता बाजार की आंखों में उपभोग और खुशहाली के जो सपने हैं, उनको पूरा करने के लिए देश-विदेश की बड़ी-बड़ी कंपनियां नई रणनीतियां बना रही हैं। जहां अपनी उपभोक्ता शक्ति के कारण भारत आर्थिक महाशक्ति बनने का सपना लेकर आगे बढ़ रहा है, वहीं खरीदारी क्षमता के कारण दुनिया को आकर्षित भी कर रहा है। निश्चित रूप से देश की बढ़ती जनसंख्या का उपभोक्ता बाजार के तेजी से बढ़ने से सीधा संबंध है। इस समय भारत की जनसंख्या दुनिया में सबसे अधिक तेजी से बढ़ रही है। वर्तमान में भारत की आबादी 134 करोड़ और चीन की आबादी 141 करोड़ है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा वैश्विक जनसंख्या पर प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया था कि 2024 में भारत की जनसंख्या चीन से अधिक हो जाएगी। निश्चित रूप से देश में जैसे-जैसे औद्योगिकरण, कारोबारी विकास तथा शहरीकरण बढ़ रहा है, वैसे-वैसे उपभोक्ता बाजार तेजी से बढ़ रहा है। जहां एक ओर गांवों से रोजगार की चाह में लोगों का प्रवाह तेजी से शहरों की ओर बढ़ रहा है वहीं शिक्षा, स्वास्थ्य और आधारभूत सुविधाओं के कारण लोग शहरों में ही रहना पसंद करते हैं। प्रतिभाएं शहरों में इसलिए रहना चाहती हैं कि शहरों में विस्तरीय रोजगार अवसर सृजित हो रहे हैं।

भारत दुनिया का सबसे बड़ा प्लेसमेंट सेंटर बनता जा रहा है। स्थिति यह है कि भारत के शहरों की ओर से विकसित देशों के लिए आउटसोर्संिग का प्रवाह तेज होता जा रहा है। भारत में अंग्रेजी बोलने वाले पेशेवर सरलता से मिल जाते हैं, और शहरों में व्यावसायिक कार्यस्थल पश्चिमी देशों के मुकाबले काफी कम दरों पर उपलब्ध हैं। इसमें कोई दोमत नहीं कि भारत में बढ़ते उपभोक्ता बाजार के पीछे मध्यम वर्ग की अहम भूमिका है। हाल ही में ग्लोबल कंसल्टेंसी फर्म पीडब्ल्यूसी ने कहा है कि  2019 में भारत फ्रांस को पीछे छोड़ते हुए क्रय शक्ति के आधार पर दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होगा। निस्संदेह देश के उपभोक्ता बाजार को गति देने में इंटरनेट का अहम योगदान है। देश के 62 करोड़ से अधिक लोग इंटरनेट उपभोक्ता हैं। दुनियाभर में डेटा आधारित व्यवस्थाओं में बढ़ोतरी की तुलना में भारत में डेटा उपभोग में वृद्धि सबसे अधिक हो रही है। भारत में डेटा और वायस कॉल की लागत वि में सबसे कम है। 40 प्रतिशत से ज्यादा लोग स्मार्टफोन चला रहे हैं। ऑनलाइन माध्यमों से लेन-देन आसान हुआ है।
ऐसे में जब देश का उपभोक्ता बाजार बढ़ रहा है, तब उपभोक्ताओं को किसी भी प्रकार की ठगी से बचाने और उनके हितों के संरक्षण की चुनौतियां मुंह बाएं खड़ी हैं। जो उपभोक्ता आज बाजार की आत्मा कहा जाता है, वह कई बार बाजार में मिलावट, बिना मानक की वस्तुओं की बिक्री, अधिक दाम, कम नापतौल जैसे शोषण से पीड़ित दिखाई दे रहा है। उपभोक्ता संरक्षण के वर्तमान कानून पर्याप्त नहीं हैं। उत्पादों की गुणवत्ता संबंधी शिकायतों के संतोषजनक समाधान के लिए नये नियामक सुनिश्चित किए जाने जरूरी हैं। नई वैश्विक आर्थिक व्यवस्था के तहत भविष्य में डेटा की वही अहमियत होगी जो आज तेल की है।
चूंकि आने वाली दुनिया उपभोक्ताओं डेटा पर आधारित होगी, अतएव उपभोक्ताओं के उपयुक्त संरक्षण तथा मोबाइल डेटा उपभोग मामले में सबसे पहले भारत को डेटा सुरक्षा पर विशेष ध्यान देना होगा। जिस देश के पास जितना ज्यादा डेटा संरक्षण होगा, वह आर्थिक रूप से उतना मजबूत होगा। चूूंकि ‘आर्थिक संदर्भ में डेटा एक ऐसा क्षेत्र है, जहां कोई नियम-कानून नहीं हैं। अतएव उपयुक्त नियम-कानून जरूरी हैं। डेटा के देश में ही भंडारण की आवश्यकता इसलिए है, ताकि उपभोक्ताओं की व्यक्तिगत जानकारी का संरक्षण हो सके। निश्चित रूप से बढ़ते उपभोक्ता बाजार से जहां उपभोक्ताओं की संतुष्टि बढ़ेगी वहीं देश की विकास दर बढ़ेगी और अर्थव्यवस्था चमकीली बनेगा।

डा. जयंतीलाल भंडारी


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