पाक में हिंदू : रीना अब रेहाना क्यों है?
पहली बार नहीं है जब पाकिस्तान से हिंदू लड़कियों के जबरन धर्मातरण और निकाह कराने की खबरें आई हों।
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लेकिन हां शायद यह पहली बार है जब पाक में रह रहे हिंदुओं के साथ वहां होने वाले किसी अत्याचार की खबर पर भारत के विदेश मंत्री ने सीधे वहां मौजूद भारतीय उच्चायोग से इसकी विस्तृत रिपोर्ट मांगी हो। भारत सरकार ने पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय को इस मामले में आधिकारिक नोट लिख कर वहां मौजूद अल्पसंख्यकों की रक्षा के लिए आवश्यक कदम उठाने के लिए भी कहा है। गौरतलब है कि सिंध से दो लड़कियों के अपहरण की उक्त खबर के कुछ ही देर बाद मुल्तान से भी दो हिंदू लड़कियों के वीडियो सामने आए हैं, जिसमें वे सरकार से खुद को कट्टरपंथियों से बचाने की मिन्नत कर रही हैं।
हिंदू लड़कियों को अगवा करके उनसे जबरन इस्लाम कबूल करवा कर उनका निकाह करवा देना पाकिस्तान में कितनी बड़ी समस्या है, इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इमरान खान ने 2018 के अपने चुनावी भाषणों में यह वादा किया था कि अगर वे सत्ता में आते हैं तो हिन्दू लड़कियों के जबरन धर्मांतरण को रोकने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे। दरअसल आतंकवाद को सरंक्षण देने के मामले में जिस प्रकार पाक पूरे विश्व के सामने बेनकाब हो चुका है, उसी प्रकार अब हिन्दू लड़कियों का जबरन धर्मांतरण करने के बाद उनका निकाह करवाने के मामले में भी उनका सच अब धीरे-धीरे दुनिया के सामने आने लगा है। एक अनुमान के मुताबिक पाकिस्तान में हर महीने लगभग 20 से 25 लड़कियों का अपहरण कर धर्मांतरण कराया जाता है। और अब तो वहां का मानवाधिकार आयोग ही कट्टरपंथियों की इस दलील को खोखला बता रहा है, जो अक्सर उनके द्वारा दी जाती है कि अगवा हुई लड़की ने अपनी मर्जी से एक मुसलमान से शादी की है और वह अब अपने पुराने धर्म या परिवार में लौटना नहीं चाहती।
वास्तव में, 2010 की अपनी रिपोर्ट में पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग ने स्पष्ट कहा था कि अधिकांश मामलों में हिंदू लड़कियों का अपहरण कर उनके साथ बलात्कार किया जाता है और बाद में उन्हें धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर किया जाता है। आयोग का यह भी कहना है कि यह घटनाएं सिंध प्रांत तक ही सीमित नहीं है बल्कि देश के अन्य भागों जैसे थार, संघार, जैकोबाबाद इलाकों में भी ऐसा हो रहा है। सिंध और इन इलाकों में हिन्दुओं की गिरती हुई जनसंख्या ही अपने आप में वहां के हालात के बारे में बयां करने के लिए काफी है।
स्थिति यह हो गई है कि अब पाक में मानवाधिकार कार्यकर्ता, पत्रकार और आम लोग भी इस प्रकार की घटनाओं पर अपना आक्रोश व्यक्त करने लगे हैं। वे अपनी ही सरकार को अल्पसंख्यक समुदाय की सुरक्षा करने में असफल रहने का आरोप लगा रहे हैं। इसी कारण अब पाक में धर्मांतरण को रोकने के लिए कानून बनाने की मांग तेज़ हो गई है। इससे पहले भी 2016 में सिंध विधानसभा में धर्म परिवर्तन पर रोक लगाने का बिल पास हुआ था, लेकिन कट्टरपंथी संगठनों के विरोध के चलते लागू नहीं हो पाया था। लेकिन अब मौजूदा परिस्थितियों में इमरान खान और उनका ‘नया पाकिस्तान’ धर्मांतरण जैसे इस नाजुक मुद्दे पर अपने ही द्वारा जगाई गई पाक आवाम और खास तौर पर वहां के अल्पसंख्यकों की उम्मीदों पर कितना खरा उतरते हैं, यह तो समय ही बताएगा।
लेकिन उन्हें इस प्रकार नाबालिग और कम उम्र की बच्चियों के धर्मातरण से उठने वाले कुछ सवालों के जवाब तो देने ही होंगें जैसे, आखिर हर बार सिर्फ लड़कियां या महिलाएं ही क्यों ‘अपनी मर्जी’ से धर्मांतरण करती हैं; कभी कोई लड़का या पुरुष क्यों नहीं? धर्मातरण की मंज़िल आखिर हर बार निकाह’ ही क्यों होती हैं? क्यों हर बार लड़की धर्मांतरण के बाद ‘पत्नी’ ही बनाई जाती है, बहन या बेटी नहीं? क्यों इन लड़कियों को धर्मांतरण के बाद हमेशा ‘पति’ ही मिलता है भाई या पिता नहीं? और आखरी सवाल 18 साल से कम उम्र के किसी आज़ाद युवा को अपने देश की सरकार चुनने का अधिकार नहीं है, लेकिन एक ‘अपहृत’नाबालिग लड़की को धर्मातरण और निकाह करके अपनी पहचान बदल लेने का अधिकार है? इन सवालों के ईमानदार उत्तर में ही धर्मातरण की समस्या का समाधान छुपा हुआ है।
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